ट्रम्प के टैरिफ: कनाडा ने स्वदेशी आंदोलन का अनोखा जवाब दिया

एक अनोखे संयोग के तहत, 4 मार्च 2025 को, जिस दिन अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प 2.0 सरकार ने पहले से घोषित टैरिफ को कनाडाई सामानों पर लागू करने की योजना बनाई है, उसी दिन कनाडा में एक नागरिक प्रतिरोध आंदोलन भी गति पकड़ रहा है। यह आंदोलन महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित बताया जा रहा है।
यह संयोग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 4 मार्च 1929 को ही गांधीजी को ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन का आह्वान करने के बाद गिरफ्तार किया गया था। यह आह्वान भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था, जिसने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया और ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा विदेशी कपड़ों को जलाने की लहर शुरू कर दी थी।
आज, जब “बाय कैनेडियन” अभियान जोर पकड़ रहा है, कनाडा के लोग महात्मा गांधी के सत्याग्रह के इतिहास को याद कर रहे हैं। कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है, जो मौजूदा परिस्थितियों में घरेलू उद्योग का समर्थन करने के लिए तैयार है। उनके लिए स्वदेशी का विचार अमेरिकी व्यावसायिक हितों के बजाय स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सहायक साबित हो रहा है। पहले ही, कई लोगों ने दक्षिणी सीमा (अमेरिका) की यात्रा की योजनाओं को रद्द करना शुरू कर दिया है।
यह विडंबना ही है कि अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने महात्मा गांधी के स्मारक स्थल और गुजरात स्थित उनके घर का दौरा किया था। फिर भी, अपनी ज़ेनोफोबिक (विदेशी विरोधी) नीतियों के तहत, वे न केवल प्रवासी समुदायों के लिए बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं, बल्कि भारतीयों और अन्य राष्ट्रीयताओं के लोगों को अमेरिका से निष्कासित (डिपोर्ट) कर रहे हैं। ऐसे में कनाडा में रहने वाले भारतीयों के पास अन्य कनाडाई नागरिकों के साथ मिलकर अमेरिकी सामान और सेवाओं के बहिष्कार का पूरा कारण है।
हालाँकि, स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा यह चेतावनी भी दी जा रही है कि इस बढ़ती देशभक्ति की भावना का उपयोग कनाडा के सत्ताधारी नेता अपने विवादास्पद प्राकृतिक संसाधन-आधारित परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए न करें। ये परियोजनाएँ पर्यावरण और स्वदेशी समुदायों (इंडिजिनस पीपल्स) के अधिकारों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। कुछ कनाडाई राजनेताओं और बड़े कॉर्पोरेट समूहों ने गैस पाइपलाइनों के निर्माण को तेज करने के लिए अभियान शुरू किया है, ताकि अमेरिका के बजाय अन्य देशों के साथ व्यापार किया जा सके। लेकिन इससे दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन और फर्स्ट नेशंस के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसे राष्ट्रवाद के नाम पर स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि राष्ट्रवाद बड़े व्यवसायों के लिए एक सुरक्षित शरणस्थली बनता जा रहा है। गौरतलब है कि गांधीजी का स्वदेशी आंदोलन केवल ब्रिटिश व्यापार के बहिष्कार तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य भारतीय कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना भी था, ताकि गाँवों और दूरदराज के समुदायों में रहने वाले लोग आत्मनिर्भर बन सकें। इतिहासकारों का मानना है कि गांधीजी द्वारा संचालित स्वदेशी आंदोलन का दृष्टिकोण कनाडा के इंडिजिनस (मूलनिवासी) समुदायों के जीवन-दर्शन के अनुरूप है, जो देश की भूमि और पर्यावरण के सच्चे संरक्षक हैं।
बाय कैनेडियन” अभियान के साथ उभर रही यह जागरूक बहस निस्संदेह इसकी स्थिति को एक नए युग के स्वदेशी आंदोलन के रूप में मजबूत करती है, जो कनाडाई विशेषताओं के साथ विकसित हो रहा है। यह अभियान अभी शुरुआत में है, लेकिन दुनिया भर के लोग इसकी दिशा और इसके संभावित परिणामों पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं।