भारत में सात चरणों में पूरे होने वाले लोकसभा चुनावों में 13 मई को 96 सीटों पर हुए मतदान के साथ चौथे चरण में प्रवेश कर गया है,लेकिन इसके साथ ही जनता के मन में चुनाव आयोग की निष्पक्षता के प्रति संदेह भी बढ़ रहा है।
11 मई को हज़ारों नागरिकों और सिविल सोसायटी के संगठनों ने एक संयुक्त प्रदर्शन किया जिसमे चुनाव आयोग का आह्वान किया गया कि ‘निडर बनो या त्याग पत्र दो (ग्रो स्पाइन ऑर रिजाइन)।हजारों नागरिकों और बड़ी संख्या में नागरिक समाज संगठनों ने इस नारे के साथ विशेष रूप से तैयार किए गए पोस्टकार्ड चुनाव आयोग को भेजे। इस पोस्टकार्ड-अभियान द्वारा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित उसके नेता जो हिंदुत्व के नाम पर सांप्रदायिक प्रचार कर रहे थे,जिसका स्पष्ट उद्देश्य सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ कर चुनावी लाभ लेना है,उनके खिलाफ ईसीआई द्वारा समुचित कार्रवाई न करने का मुद्दा उठाया गया।
इससे एक दिन पहले, 10 मई को, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), एक गैर-सरकारी संगठन, जिसका भारतीय चुनावों के साथ-साथ शासन और नीतिगत मुद्दों के अध्ययन और विश्लेषण के मामले में शानदार रिकॉर्ड है, ने सुप्रीम कोर्ट में एक अंतरिम आवेदन दायर किया था। इसमें सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों में पड़े वोटों को सारणीबद्ध करने में ईसीआई की ओर से अत्यधिक देरी पर सवाल उठाया गया था।एडीआर ने कहा कि याचिका यह सुनिश्चित करने के लिए दायर की गई थी कि चुनावी अनियमितताओं से लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित न हो।
एडीआर की याचिका में बताया गया कि “ईसीआई द्वारा 30 अप्रैल को जारी 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले दो चरणों के लिए मतदाता मतदान के आँकड़े 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को आयोजित दूसरे चरण के मतदान के 4 दिन बाद प्रकाशित किया गए है। ईसीआई द्वारा 30 अप्रैल, 2024 को प्रेस विज्ञप्ति में प्रकाशित वोटिंग प्रतिशत जिस दिन वोटिंग हुई उस दिन शाम 7 बजे घोषित वोटिंग प्रतिशत से असमान्य रूप से 5-6% अधिक है।याचिका में स्पष्ट किया गया है कि 30 अप्रैल, 2024 के चुनाव आयोग के प्रेस नोट में 5 प्रतिशत से अधिक की असामान्य बढ़ोतरी ने आंकडो की सटीकता को लेकर जनता में संदेह है।
पांच प्रमुख पत्रकार संगठनों – द प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प, फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और प्रेस एसोसिएशन – ने भी ईसीआई को एक पत्र लिखा, जिसमें संस्थान द्वारा “फाइनल डेटा ” जारी करने की अनिच्छा के बारे में आश्चर्य व्यक्त किया गया। सात चरणों वाले लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरणों में वोट डाले जा चुके हैं । मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) को संबोधित किए गए पत्र में पत्रकार संगठनों के अध्यक्षों ने बताया कि 2019 के आम चुनाव में, हर चरण के बाद ईसीआई द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करना सामान्य प्रक्रिया रही है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पत्रकार संदेह और भ्रम का दूर करते रहे है जिससे पाठकों को सही और सटीक जानकारी दे सके।चुनाव आयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से मतदाताओं से सीधे बात भी कर सकते हैं ।”
इन हस्तक्षेपों ने संवैधानिक संस्था के कामकाज में पारदर्शिता की कमी को रेखांकित किया है । ईसीआई के आचरण पर ये गंभीर संदेह और आशंकाएं कई सार्वजनिक मंचों पर व्यक्त की जा रही हैं। मुंबई स्थित सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता मनोरंजन एस रॉय ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के उपयोग और विशेष रूप से इन मशीनों के सारणीकरण और तैनाती के संदर्भ में ईसीआई द्वारा अपनाई गई प्रणालियों के उपयोग पर लगातार नजर रखी है और उनका अध्ययन किया है। उन्होंने पूरी प्रक्रिया में कुछ विसंगतियों की ओर इशारा किया है।
The AIDEM से बात करते हुए, रॉय ने कहा कि ईसीआई ने जिन दो मनोनीत विनिर्माण कंपनियों – अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद, और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), बेंगलुरु- से ईवीएम की प्राप्ति और और उपयोग का सारणीकरण किया है,वो हमेशा से संदिग्ध रही है (जनहित याचिका -पीआईएल – जो उन्होंने इस मामले पर 2018 में दायर की थी वह अभी भी अदालतों में लंबित है) लेकिन 2024 के चुनावों के संबंध में, संस्था द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति भी विसंगतियों से भरी हुई है। रॉय ने बताया कि 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के संबंध में जारी ईसीआई प्रेस विज्ञप्ति की तुलना से कई संदिग्ध बातें सामने आती हैं,ई सीआई प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि 2019 और 2024 के बीच 7.2 करोड़ मतदाताओं की वृद्धि हुई है तथा 2024 के चुनावों के लिए देश भर में कुल 15000 मतदान केंद्रो की बढ़ोतरी हुई है,जिससे वास्तविक मतदान केंद्रों की संख्या 10.35 लाख से बढ़कर 10.50 लाख हो गई है। हालांकि, अजीब बात यह है कि इन मतदान केंद्रों पर तैनात की जाने वाली ईवीएम की संख्या में कोई आनुपातिक वृद्धि नहीं हुई है।
ईवीएम के उपयोग पर 2019 की प्रेस विज्ञप्ति में, ईसीआई ने ईवीएम का गठन करने वाली विभिन्न इकाइयों का विवरण दिया था। तत्कालीन प्रेस विज्ञप्ति (दिनांक 10 मार्च, 2019) में निम्नलिखित विवरण के साथ कुल 57.05 लाख मशीनें सूचीबद्ध की गई थीं। बैलेट यूनिट (बीयू) – 23.3 लाख, कंट्रोल यूनिट (सीयू) – 16.35 लाख और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपीएटी) -17.4 लाख।
ईसीआई द्वारा ईवीएम पर प्रकाशित मैनुअल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “ईवीएम का मतलब बैलेट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और वीवीपैट यूनिट है”। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस परिभाषा को दोबारा दोहराया है।
मनोरंजन एस रॉय के अनुसार, उन्हें कंपनियों से जो प्रतिक्रियाएं मिली हैं, उनसे यह भी पता चलता है कि उन्होंने जो मशीनें बनाई हैं और ईसीआई को आपूर्ति की हैं, वे खरीद आदेश में उल्लिखित विशिष्टताओं के अनुसार नहीं हैं। जबकि दोनों कंपनियों के बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिटस की क्षमता 2000 प्रति मशीन है, बीईएल की वीवीपैट क्षमता 1400 और ईसीआईएल की 1500 है। रॉयस ने ईसीआई से सवाल किया कि कंट्रोल यूनिटस और वीवीपैट के बीच क्रमशः 600 और 500 का अंतर गिनती करते समय तर्कसंगत कैसे हो जाएगा।
आरटीआई कार्यकर्ता ने आगे बताया कि उन्हें बीईएल से प्राप्त एक आरटीआई जवाब (दिनांक 1 फरवरी, 2024) में एमके वी (एमके 5) नामक ईवीएम के एक मॉडल का संदर्भ दिया गया है। दरअसल, 2021 जून के आदेश के अनुसार 2022-23 में बीईएल ने ईसीआई को जो भी बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिटस की आपूर्ति की है, वे सभी इसी मॉडल के हैं। यह सप्लाई 4,87,000 बैलेट यूनिट और 4,08,500 कंट्रोल यूनिटस की है। रॉय ने The Aidem को बताया कि इस मॉडल की तकनीकी जानकारी उनके जैसे अनुभवी ईवीएम पर नजर रखने वालों को भी नहीं पता है और ईसीआई को एक विस्तृत नोट के माध्यम से मॉडल की विशेषताओं को जनता को समझाने की जरूरत है। भारत में वर्तमान में उपयोग की जा रही ईवीएम एम 3 और एम 2एम 3 मॉडल की हैं। पहले, एम2 मॉडल ईवीएम का भी उपयोग किया जाता था, लेकिन रॉय के अनुसार, उन मशीनों को अब मतदान उद्देश्यों के लिए तैनात नहीं किया जाता है, क्योंकि उन्हें पुराना और बेकार माना जाता है।
एक ऐसे विशेषज्ञ के रूप में जिसने ईवीएम के उपयोग के संबंध में ईसीआई के कामकाज का गहन विश्लेषण किया है, रॉय बताते हैं कि उन्होंने 2018 की शुरुआत में ही न्यायपालिका सहित सार्वजनिक मंचों पर ईसीआई की घोर विसंगतियों और सारणी में त्रुटियों को सामने रखा था। उन्होंने मार्च 2018 में बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें बताया गया कि निर्माताओं द्वारा वितरित लाखों ईवीएम ईसीआई के कब्जे से “गायब” हैं। जनहित याचिका दायर करने से पहले रॉय ने आरटीआई से जानकारी हासिल करने के अनेक प्रयास किए थे। उसमें उन्होंने 1989 से 2017 के बीच की अवधि के लिए ईसीआई को आपूर्ति की गई ईवीएम (बैलेट यूनिट-कंट्रोल यूनिटस और वीवीपीएटी सहित) की विशिष्ट आईडी संख्या, परिवहन की चालान प्रति के साथ-साथ परिवहनकर्ता का नाम और तरीके के बारे में राज्य-वार जानकारी मांगी थी।
मनोरंजन एस रॉय की दलील थी कि लगती है ईवीएम के उपयोग में जान बूझकर कोई साज़िश की गईं,इसी कारण से शायद कई बार ईवीएम निजी गोदामो,सड़कों के किनारे कूड़ेदानों सहित अप्रत्याशित स्थानों पर मिलने के छिटपुट मामले पिछले कुछ वर्षों में लगातार सामने आए हैं।उन्होंने मांग की कि ईवीएम की खरीद और तैनाती की गहन जांच शुरू की जानी चाहिए और जांच से सामने आए तथ्यों पर एक व्यापक रिपोर्ट जनता के सामने रखी जानी चाहिए।
जनहित याचिका दायर करने से पहले रॉय ने आरटीआई से जानकारी हासिल करने के अनेक प्रयास किए थे। उसमें उन्होंने 1989 से 2017 के बीच की अवधि के लिए ईसीआई को आपूर्ति की गई ईवीएम (बैलेट यूनिट-कंट्रोल यूनिटस और वीवीपीएटी सहित) की विशिष्ट आईडी संख्या, परिवहन की चालान प्रति के साथ-साथ परिवहनकर्ता का नाम और तरीके के बारे में राज्य-वार जानकारी मांगी थी।
लोकसभा चुनाव 2019 से पूर्व जनहित याचिका दायर की गई थी और तब से अब तक इस मामले में करीब 20 सुनवाई और इतनी ही स्थगन प्रक्रिया हुई है।
अब अगले चुनाव की प्रक्रिया भी आधी से ज्यादा हों चुकी है।स्पष्ट है कि ईसीआई ने किसी भी जांच को स्वीकार नहीं किया है और यह मामला लंबा खिंचता जा रहा है।
राय का छह साल का लंबा इंतजार जारी है,लेकिन इसी अवधि में यह देखा गया है कि ईसीआई जो जनता द्वारा इसके खिलाफ उठाए गए सभी प्रश्नों और आलोचनाओं से बेफिक्र और सत्ताधारी दल के हितों की तत्परता और दृढ़ता से रक्षा करता हुआ लगता है,वह जनता द्वारा उठाए गए संदेहों एवं सवालों का कब कितनी स्पष्टता से जवाब देगा या देगा ही नही।