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सामाजिक न्याय के लिए खतरनाक है आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) का आरक्षण 

  • December 12, 2022
  • 1 min read
सामाजिक न्याय के लिए खतरनाक है आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) का आरक्षण 
1. शिक्षा और सरकारी नौकरियों में EWS यानी की आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के केंद्र सरकार के फैसले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की संविधान न्यायपीठ ने मंजूरी दे दी है ।
2. सामाजिक रूप से प्रभावशाली समूह में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए इस  आरक्षण  की मांग लंबे समय से  हो रही थी । केंद्र की भाजपा सरकार ने 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले  आरक्षण संबंधी बिल लोकसभा में पारित करवाया था।
3.  साल 1989 में वी.पी. सिंह सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 27 % आरक्षण प्रदान संबंदित मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू करने की घोषणा की ।आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए  आरक्षण की मांग इसी कदम की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप पहली बार अपने वजूद में आई।
 4. EWS कोटा को ललकारने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय कंस्टीटूशन बेंच ने चार साल बाद 3-2 से आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया. यह आरक्षण कोटा 103 वें संवैधानिक संशोधन के तहत लाया गया था।
5. मुख्य न्यायाधीश सहित बेंच के दो सदस्यों ने EWS कोटा को भेदभावपूर्ण मानते हुए अपनी असहमति व्यक्त की।
6. इस बीच, सरकार ने आरक्षण के फैसले को अमल में लाते हुए केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे शैक्षणिक संस्थानों में सीटें बढ़ा दीं।
7. EWS कोटा को लागू करने की शुरुवात पहले से 12 राज्यों ने कर दि है। EWS कोटा पर सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी की मुहर के बाद , सामान्य रूप से प्रतिवर्ष उत्पन्न होने वाले 90 ,000 हज़ार सरकारी नौकरियों में से लगभग  9000   नौकरियां EWS के लिए अलग रख दी जाएंगे।
8. देश भर में आम जनता की राय अब इस बुनियाद पर बंटी हुई है के कौन समाज  को बांटने वाली बाढ़ के किस तरफ खड़ा है ।
9. इस फैसले ने अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के बीच प्रतिकूल प्रतिक्रिया पैदा की है , विशेष रूप से तमिलनाडु जैसे राज्यों में, जहां आरक्षण के लिए लड़ने और कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ने और जीतने की सदियों पुरानी परंपरा है।
10. समीक्षको का कहना है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय का बहुमत वाला फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। और यह कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की  उन्नति के लिए ठोस कार्रवाई करने की सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। वास्तव में, यहां जो पीड़ित है यह वह बहुमत है जो सामंती समाज और इसकी जाति व्यवस्था के सदियों से किए गए अन्याय का शिकार है।
11. पहले से ही बहिष्कृत अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों को अपनी योजना से अलग करके और सामाजिक और ऐतिहासिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को ओर विशेषाधिकार प्रदान करके, प्रभावी रूप से, EWS कोटा इतिहास को ही बदल दे गा ।
12. ऐतिहासिक ज्ञान और अन्वेषण से यह साबित हुआ है की उच्च जाति के हिंदू आय और संपत्ति के मामले में आर्थिक रूप से समाज के सबसे उन्नत वर्ग हैं।
13. साल 2019 में नितिन तगाड़े, सुखदेव थोराट और अजय नाइक द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है की हिंदू उच्च जातियां, जो भारत की 22.8 % आबादी का हिस्सा है, वे 41 % संपत्ति के हिस्सेदार है। और अनुसूचित जाति, जो 18.38 % देश की आबादी का भाग है, वे केवल 7.6 % देश की संपत्ति का हिस्सा है.
14. साल 2018 में पेरिस के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में किए गए एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि उच्च जातियों की उपस्थिति गरीबी से जूझ रही हर पांचवे भारतीयों की तुलना में अत्यंत कम है। यह भी दर्शाता है कि उच्च जातियों के लोग भारत के सबसे अमीर लोगों का एक बड़ा हिस्सा हैं।
15. जाहिर है, EWS कोटे को मंजूरी देने के तर्क और देश की वास्तविकताओं में कोई मेल नहीं है ।
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