डॉ एमएस स्वामीनाथन की याद में।
डॉ एमएस स्वामीनाथन ने पूरे देश की किस्मत बदल दी और बेहतर कृषि उपज की दिशा में मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह सिर्फ एक कृषि वैज्ञानिक नही थे, बल्कि एक दूरदर्शी व्यक्ति थे,जिनके पास भारतीय वास्तविकता की सम्पूर्ण तस्वीर थी।
भारत के सबसे कुशल विज्ञान पत्रकारों में से एक पल्लव बागला ने भारतीय हरित क्रांति के जनक को श्रद्धांजलि देने के लिए The AIDEM इनरैक्शन में आनंद हरीदास से बात की।
भारत में हरित क्रांति के वास्तुकार डॉ एमएस स्वामीनाथन अब नहीं रहे। The AIDEM इस ऐतिहासिक व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिसने भारतीय कृषि की नियति बदल दी। इस ऐतिहासिक व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के लिए हमारे साथ विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला हैं जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर व्यापक रूप से लिखने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार प्रकाशनों में योगदान देते रहे हैं। पल्लव बागला जी The AIDEM इंटरेक्शन में आपका स्वागत है। आप एमएस स्वामीनाथन के साथ लंबे समय से जुड़े हुए हैं, लेकिन हम इस पर बाद में बात करेंगे। शुरुआत करते हैं इस प्रश्न से कि एमएस स्वामीनाथन ने अपने पीछे क्या विरासत छोड़ी है?
पल्लव बागला: देखा जाए तो, हम जो चावल खाते हैं, जो चपाती खाते हैं, वह सब एमएस स्वामीनाथन, डॉ. सुब्रमण्यम और टीम की कड़ी मेहनत का नतीजा है, जिसने हरित क्रांति की शुरुआत की, जिसने भारत को खाद्यान्न की कमी वाले देश से खाद्य अधिशेष वाले देश में बदल दिया। अनाज की कमी थी और खाद्यान्न का आयात किया जाना था, लेकिन हरित क्रांति ने स्थिति बदल दी। इसलिए जब भी आप चावल या चपाती खाएं तो आपको एमएस स्वामीनाथन और उनकी टीम को धन्यवाद देना चाहिए। अगर हम खाद्यान की कमी वाले देश बने रहते तो आज चंद्रयान भेजने में सक्षम नहीं होते न ही जी20 शिखर सम्मेलन की सफलता का स्वाद चख पाते। 50 साल पहले भारत में भोजन की कमी थी और हम खाद्य सुरक्षित या खाद्य स्वतंत्र बन गए, यह वैज्ञानिकों और विशेष रूप से एमएस स्वामीनाथन और उनकी दूरदर्शिता की कड़ी मेहनत का परिणाम है।
मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। ‘मैंने एक महान शुभचिंतक खो दिया है।’ जहाँ तक उनकी विरासत का सवाल है। उनकी तीन बेटियाँ हैं। हर एक दूसरे से बेहतर है। न केवल गेहूं और चावल में बल्कि उनकी बहुत योग्य बेटियों में भी स्वामीनाथन का थोड़ा सा अंश जीवित है।
हमें देश के लिए उनके योगदान का जश्न मनाने की जरूरत है। उन्होंने देश का इतिहास बदल दिया।
आनंद हरिदास: 60 के दशक में अकाल जैसी स्थिति के दौरान, उन्होंने खेती के पारंपरिक तरीकों को बदलते हुए अधिक उपज देने वाली किस्मों की ओर रुख किया, जिसे स्वीकार करने में किसान अनिच्छुक थे। उनकी यात्रा बहुत कठिन रही होगी। आप क्या कहते हैं?
पल्लव बागला: जाहिर तौर पर कोई भी बदलाव लाना कठिन है। वह इन उच्च उपज देने वाली किस्मों को लाए और किसानों को विशेष रूप से पश्चिमी यूपी और हरियाणा के किसानों को आश्वस्त किया। यह एक ऊपर से नीचे तक का प्रयास था और सरकार भी इसका समर्थन कर रही थी। लेकिन किसानों को एक भरोसेमंद सलाहकार की जरूरत थी, एक ऐसा व्यक्ति जिसकी आवाज पर वे भरोसा कर सकें। जहां एमएस स्वामीनाथन बहुत महत्वपूर्ण हो गए। उन्होंने कई पदों पर कार्य किया और वास्तव में शिप टू माउथ देश की दिशा बदलकर एक ऐसा देश बना दिया जो गेहूं का निर्यात कर रहा हो। कल्पना कीजिए कि क्या बदलाव आया !
आनंद हरिदास: दूसरी ओर, उर्वरकों के उपयोग की उनकी तकनीकों की भी आलोचना की गई, हालांकि यह 1960 में समय की आवश्यकता थी। हम 2023 के संदर्भ में इसकी समीक्षा नहीं कर सकते। 1960 में मानसिकता काफी अलग थी लेकिन फिर भी वह इसके उपयोग की आवश्यकता को समझाने में सफल रहे। एकल फसल के कारण मिट्टी की प्राकृतिक क्षमता समाप्त हो गई। तो उन पर आपकी क्या राय है ?
पल्लव बागला: यदि आप भूखे हैं तो प्रथम आवश्यकता है कि आपको खाना मिले उस समय भारत बहुत भूखा था। 1960,70 और 80 के दशकों में भारत में अन्न की कमी थी। मुझे याद है कि मैं चावल खरीदने के लिए अपने पिता के साथ राशन की दुकान में कतार में खड़ा रहता था।और आज की पीड़ी क्या करती है? विभिन्न व्यंजन खरीदने के लिए फूड कोर्ट में खड़ी रहती है। जब आपके पास खाद्यान की कमी होती है तो पहली प्राथमिकता यह होती है कि लोगों को पर्याप्त कैलोरी मिलें जैसा कि हरित क्रांति में हुआ। बाद में मैंने उनसे हरित क्रांति के दुष्परिणामो पर बात कि जैसे मिट्टी का प्रदूषित होना, वायु प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य का प्रभावित होना। इस मुद्दे पर मेरी उनसे विस्तार से बातचीत हुई। उन्होंने बड़े भावपूर्ण तरीके से कहा कि अब हरितक्रांति से सदाबहार क्रांति कि ओर बढ़ने का समय आ गया है। वह स्वयं इन प्रभावों के बारे में सोच रहे थे। हरित क्रांति के कारण मिट्टी प्रदूषित हुई और मानव स्वास्थ्य पर इसका खराब प्रभाव पड़ा। वह इन समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे थे जहां कीटनाशकों की हर बूंद मायने रखती है। सरकार जैविक उर्वरकों और न्यूनतम कीटनाशकों के उपयोग पर जोर दे रही है। हमें पारंपरिक और बुनियादी कृषि पद्धतियों की ओर जाने की जरूरत है। यह बात हमेशा एमएस स्वामीनाथन के दिमाग में थी। यदि आप चेन्नई में स्वामीनाथन फाउंडेशन में जाएं, आपको एहसास होगा कि पर्यावरण स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रणाली के बारे में पर्याप्त चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि फसल अपशिष्ट को एकत्र किया जाना चाहिए, मोलेसु के साथ मिलाया जाना चाहिए और पशुधन फ़ीड के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन वह नाखुश थे क्योंकि उनकी अपील कभी नहीं सुनी गई थी। किसानों द्वारा फसल जलाने से गंभीर वायु प्रदूषण हुआ। जबकि हम खाद्यान उगाने में आत्मनिर्भर हो गए और कैलोरी का सेवन सामान्य हो गया। लेकिन उन्होंने भारतीय भूख के बारे में भी बात की, यानी सूक्ष्म पोषक तत्व।
वह भारतीय भूख को बड़े पैमाने पर संबोधित करना चाहते थे। वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे और आने वाले कई वर्षों तक मार्गदर्शक बने रहेंगे और मुझे यकीन है कि इन दुष्परिणामों को कम करने के बारे में कुछ नीतियां बनाई जाएंगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पहले से ही जैविक और प्राकृतिक खेती के बारे में बात कर रहे हैं।’
जब आप भूखे थे तो आपको भोजन की आवश्यकता थी और इसके लिए हम एमएस स्वामीनाथन और उनकी टीम के आभारी हैं।
आनंद हरिदास: बाद के दशकों में उन्होंने दीर्घकालिक खेती के बारे में बात की। मुझे याद है कि उन्होंने जी एम क्रॉप्स की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि यह हरित क्रांति होनी चाहिए न कि लालच क्रांति। वह टिकाऊ कृषि को जारी रखने के तरीके तलाश रहे थे।
पल्लव बागला: बिल्कुल। मैं उनसे कोविड संकट के दौरान मिला था। वह 95 वर्ष के थे लेकिन उनकी यादाश्त अभी भी बहुत तेज़ थी। वह हरित क्रांति के प्रभावों को कम करने और इसे सदाबहार क्रांति की स्थिति बनाकर पर्यावरण की रक्षा करने के तरीकों की तलाश कर रहे थे, जिसके लिए बहुत अधिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती है और साथ ही उपज भी पर्याप्त बनी रहती है। आज अगर हम उस स्थिति को याद करें जब देश खाद्यान की कमी का सामना कर रहा था और देश को खाद्यान्न आयात करना पड़ा था, यह कोई स्थाई स्थिति नहीं थी। हम उससे बाहर आ गए हैं और युवा पीढ़ी ने राशन की दुकान पर कतारें नहीं देखी हैं। मेरी अपनी मां ने, 50 साल पहले, चीनी खाना बंद कर दिया था क्योंकि राशन की दुकान पर पर्याप्त चीनी नहीं थी, पूरे परिवार के लिए पर्याप्त नहीं थी। लोगों ने कतारों में लगकर सीमित मात्रा में अन्न खरीदा।जिसने भी इसे देखा है वह एमएस स्वामीनाथन और टीम के योगदान के लिए आभारी होगा।
आनंद हरिदास: स्वामीनाथन के बारे में कोई भी चर्चा उनकी बेटियों के उल्लेख के बिना अधूरा होगी, जिसमें एस एन फाउंडेशन द्वारा किए गए जीन पूलिंग प्रयास भी शामिल हैं। हालांकि यह चेन्नई के मध्य में है, यह एक प्रकार का द्वीप है जहां उन्होंने कई प्रकार के पौधों को संग्रहीत किया है। एसएन फाउंडेशन द्वारा बहुत काम किया गया है। और अब उनकी बेटी सौम्या स्वामीनाथन, जो एसएन रिसर्च फाउंडेशन की प्रमुख हैं। मुझे उम्मीद है कि इस विषय में उनके प्रयास सफल होंगे। पिता द्वारा पैदा की गई समस्या का समाधान बेटी द्वारा कर दिया जाएगा। .स्वामीनाथन ने इन समस्याओं का समाधान तो दिया लेकिन उन्हें उस हद तक लागू नहीं किया गया, जिस हद तक किया जाना चाहिए था।
आनंद हरिदास: मेरा प्रश्न वियानाडु में छोटे किसान द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में है, जिन्हें स्वदेशी चावल की 16 किस्मों को विकसित करने के लिए पद्मश्री दिया गया है, जिनमें से अधिकांश विलुप्त होने के कगार पर हैं। एसएन फाउंडेशन द्वारा किए गए कार्यों को क्या अलग या अधिक व्यवस्थित और संगठित बनाता है ?
पल्लव बागला: हमें इसे दो तरह से देखना होगा, एक एसएन फाउंडेशन द्वारा किया गया काम या हाल के दिनों में छोटे पैमाने पर किया गया काम, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और भारतीय संसद के सदस्य थे, .भारत को अपना राष्ट्रीय जीन बैग मिल गया जहां फसलों की बड़ी किस्मों को बहुत लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है। यह वह स्थान है जो भारत की मदद करेगा यदि चीजें गलत हो जाती हैं और हमें पारंपरिक या अन्य किस्मों से समाधान ढूंढना होगा।कृषि क्षेत्र में उनका योगदान सर्वोच्च है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें आर्थिक पारिस्थितिकी का जनक कहा। उन्होंने अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन पाया।
आनंद हरिदास: बातचीत समाप्त करने से पहले मैं इस अद्भुत व्यक्तित्व के कई चेहरों से परिचित कराने के लिए आपको धन्यवाद देता हूं।
पल्लव बागला: मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं। वह बहुत विनम्र, मृदुभाषी और स्पष्टवादी व्यक्ति थे। यदि आप उनसे कोई प्रश्न पूछते हैं, तो वह आपको उत्तर देंगे और मुझे उनके साथ बातचीत करने में सदैव आनंद आता था।
आनंद हरिदास: हमें कौन सा रास्ता अपनाना चाहिए और आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक से क्या सबक सीखना चाहिए।
पल्लव बागला: पारंपरिक प्रथाओं पर वापस जाएं, रसायनों का उपयोग कम करें और जैविक और प्राकृतिक खेती करें। यहां तक कि हरियाणा के बीचों बीच में भी हमें बड़े जैविक खेत मिलते हैं लेकिन सेंध लग चुकी है। मेरे पास उनके साथ समय बिताने की अद्भुत यादें हैं, मैं आभारी हूं उनके साथ समय बिताने के लिए। कहीं न कहीं लोग उन्हें एक ऐसे दिग्गज के रूप में याद रखेंगे जिन्होंने भारत को खाद्य सुरक्षित बनाने और फिर खाद्य स्वतंत्र बनाने में योगदान दिया और अब हम न केवल बासमती बल्कि अन्य खाद्यान्न भी निर्यात कर रहे हैं। एक ऐसे व्यक्ति की बहुत सुखद यादें हैं जो दूरदर्शी था। उसके पास देने के लिए हमेशा कुछ न कुछ होता था।
आनंद हरिदास: धन्यवाद पल्लव बागला जी। उस दूरदर्शी व्यक्ति के बारे में आपसे बातचीत करके अच्छा लगा, जिसने न केवल कृषि के लिए दिशा तय की, बल्कि यह भी बताया कि एक राष्ट्र कैसे आत्मनिर्भर हो सकता है और एमएस स्वामीनाथन को याद करने के लिए AIDEM बातचीत में हमारे साथ शामिल होने के लिएआ पका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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