A Unique Multilingual Media Platform

The AIDEM

Articles Development Law National Politics

महुआ या मोदानी? कृष्णा नगर में चुनावी लड़ाई का महत्त्व

  • March 20, 2024
  • 1 min read
महुआ या मोदानी? कृष्णा नगर में चुनावी लड़ाई का महत्त्व

आंकड़ों की दृष्टि से, पश्चिम बंगाल में कृष्णानगर लोकसभा की पांच सौ तैंतालीस सीटों में से एक संसदीय क्षेत्र है। लेकिन 2024 के चुनाव में कृष्णानगर का खास महत्त्व है । पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पहले ही घोषणा कर चुकी है कि इस सीट से एक बार फिर महुआ मोइत्रा को मैदान में उतारा जाएगा ।  मोइत्रा, जो कृष्णा नगर से मौजूदा सांसद थीं, ने 2019 में 63,000 से अधिक वोटों के अंतर के साथ सीट जीती थी और निकटतम पराजित उम्मीदवार भाजपा से था। एक सांसद के रूप में वह अपनी प्रखर वक्तृत्व कला और सशक्त अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती थीं और इसने उन्हें थोड़े समय के लिए भारतीय राजनीति में ध्यान का केंद्र बना दिया था। वास्तव में, एक सांसद के रूप में उनकी इसी निपुणता के कारण वे  नरेंद्र मोदी शासन का निशाना बन गई ।  अंततः मनगढ़ंत आरोप लगाकर उन्हें लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिसने भारतीय संसद के निचले सदन को मान्यता प्राप्त मनकों की अनदेखी करने वाले “कंगारू कोर्ट” में बदल दिया।

कृष्णानगर में आगामी चुनावी लड़ाई को इसी पृष्ठभूमि में देखने की जरूरत है।  निश्चित रूप से भाजपा मोइत्रा के विरोध में जो भी उम्मीदवार खड़ा करेगी वह अंततः दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक गौतम अडानी का प्रतिनिधित्व करेगा। महुआ मोइत्रा राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दों पर संसद के सदस्यों के साथ-साथ राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम रहीं, जिसमें कानून का घोर उल्लंघन, आम लोगों का दमन और अडानी समूह द्वारा अपने व्यापारिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए  भ्रष्टाचार फैलाने वाली साजिशें शामिल थीं । उन्होंने संसदीय क्षेत्र के स्थानीय विकास के मुद्दों के बजाय इन मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।  अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने  भी महुआ की बातों में  दिलचस्पी दिखाई।

यह तृणमूल कांग्रेस नेता  फिर से चुने जाने की हक़दार हैं क्योंकि उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से राष्ट्र के साझा भविष्य के बारे में चिंताओं को संसद के अंदर और बाहर पूरी गंभीरता के साथ उठाया। निःसन्देह किसी ओर  सांसद  ने मोदी-अडानी संबंधों का इतनी बारीकी से अध्ययन करके इसे लगातार और दृढ़ता से लोगों तक नहीं पहुंचाया । इसके परिणामस्वरूप  उन्हें अपनी संसदीय सदस्यता  से हाथ धोना पड़ा ।

इसमें कोई संदेह नहीं  है कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक गौतम अडानी ने महुआ मोइत्रा को झूठे मामलों और चालों के माध्यम से फंसाने की योजना बनाई थी ताकि उनकी व्यक्तिगत गरिमा को नुकसान पहुंचाया जा सके। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि टीम अडानी मोइत्रा को दोबारा निर्वाचित होने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। उनकी पिछली उपलब्धियों पर नज़र डालने से पता चलेगा कि क्यों टीम अडानी मोइत्रा को हराने के लिए हर संभव कोशिश करेगी।

महुआ मोइत्रा ने बंदरगाहों, कोयला खदानों, बिजली आपूर्ति अनुबंधों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मोदी शासन की अनुकंपा का लाभ उठाकर कर अडानी द्वारा अर्जित की गई अवैध मुफ्त सुविधाओं के बारे में संसद  के अंदर और बाहर कई सवाल उठाए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से हर एक खुलासे में ऐसे पुख्ता सबूत थे जिनका खंडन नहीं किया जा सकता था। महुआ ने अडानी समूह की अन्य गतिविधियों पर भी तीखे सवाल उठाए, जिसमें उसके विदेशी पोर्टफोलियो निवेश साझेदार भी शामिल हैं। खासकर एक चीनी नागरिक के साथ लेनदेन, जिसने अडानी समूह की कंपनियों में बीस हज़ार करोड़ रुपये का रहस्यमय निवेश किया था। मोइत्रा ने संसद में इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे अडानी को  ओडिशा के सीमित भंडारण क्षमता वाले धामरा बंदरगाह टर्मिनल का वर्ष 2042 तक उपयोग करने के लिए बिना किसी निविदा प्रक्रिया के 46,000 करोड़ रुपये का अनुबंध मिला।

महुआ मोइत्रा द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने में असमर्थ, भाजपा ने उनका मजाक उड़ाया  और व्यक्तिगत रूप से उन पर हमला करने की कोशिश की । इसकी शुरुआत यह आरोप लगाने से हुई कि महुआ को लोकसभा में उठाए गए सवालों के लिए देश के एक व्यापारिक समूह से धन मिल रहा है। लेकिन बीजेपी द्वारा उठाए गए ‘कैश फॉर क्वेरी’ के आरोप को सही ठहराने के लिए आज तक कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। एक राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट को दिए एक साक्षात्कार में, महुआ ने आरोप लगाया कि जब ये साजिशें विफल हो गईं, तो कुछ भाजपा सांसदों ने व्यक्तिगत रूप से उनसे मुलाकात की और उनसे कहा कि वे 2024 के आम चुनाव खत्म होने तक उन्हें चुप कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

बीजेपी के लिए चिंता की बात यह थी कि महुआ लगातार  मोदी और अडानी के खिलाफ तीखे सवाल उठा रही थीं । भगवा पार्टी इस बात से भी चिंतित थी कि धमकियाँ और उकसावे उसे अपने मिशन को आगे बढ़ाने से नहीं रोक पाए। इसी संदर्भ में भाजपा ने महुआ के खिलाफ कई तकनीकी मुद्दे उठाने का फैसला किया और यह आरोप भी लगाया कि लोकसभा में उनके सवालों  के लिए उन्हें  निहित स्वार्थों द्वारा भुगतान किया गया था। संसद की आचार समिति, जिसने संसद में एक मुस्लिम सदस्य को सबसे अभद्र और अश्लील भाषा में संबोधित करने के लिए भाजपा सांसद रमेश बिधौरी को न्यूनतम सजा देने से भी परहेज किया था, ने महुआ के मामले में अनुचित जल्दबाजी के साथ काम किया.  यहाँ तक कि उनसे व्यक्तिगत रूप से अपमानजनक प्रश्न भी पूछे गए।

संसदीय आचार समिति के समक्ष शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति महुआ के पूर्व साथी और वकील अनंत देहाद्राई थे जिनका पहले से ही महुआ मोइत्रा के साथ मतभेद था। देहाद्राई की शिकायत का  कोई ठोस आधार नहीं था, खासकर स्पष्ट और अंतर्निहित ‘हितों के टकराव’ के संदर्भ में। एथिक्स कमेटी द्वारा प्रकाशित हैंडबुक के अनुसार, शिकायत करने वाले व्यक्ति या सदस्य को आरोपों के समर्थन में सबूत देना होगा। हालाँकि, आचार समिति ने शिकायतकर्ता द्वारा कोई सबूत उपलब्ध नहीं कराए जाने पर मामले को अपने हाथ में लेकर, सत्ता के प्रभाव में, मामले को  रिकॉर्ड किया । लोकसभा में अडानी से जुड़े सवाल उठाने के लिए महुआ को भारतीय कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से पैसे मिलने के आरोप भी  साबित नहीं हुए ।

भाजपा सदस्य विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली आचार समिति ने देश की सबसे सक्रिय महिला सांसदों में से एक की लोकसभा सदस्यता छीनने के लिए असफल पारिवारिक संबंधों, झूठी शिकायतों और यहां तक ​​कि दोस्तों पर उन्हें बदनाम करने के दबाव जैसी युक्तिओं का प्रयोग किया । लोकसभा सदस्य के रूप में महुआ ने 69 प्रश्न पूछे थे। यह कोई रिकॉर्ड तोड़ने वाली संख्या नहीं है। इसी सदन में और भी सदस्य हैं जिन्होंने करीब 130 सवाल उठाए हैं। लेकिन यहां अहम बात ये है कि 69 सवालों में से 9 सवाल अडानी से जुड़े हैं।

गौरतलब है कि ये सभी सवाल अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उठे थे और राष्ट्रीय हितों से जुड़े हैं. एक पूर्व बैंकर के रूप में, महुआ मोइत्रा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश सहित निवेश संबंधी मामलों की जटिलताओं को समझती थीं। इसलिए, उन्होंने जो सवाल उठाए उनमें वे सवाल भी शामिल थे जिनमें पूछा गया था कि अडानी के स्वामित्व वाली कंपनियों के इलिक्विड स्टॉक का मालिक कौन है? अडानी समूह उचित निविदाओं और अनुबंध प्रक्रियाओं के बिना बंदरगाहों और हवाई अड्डों की खरीद कैसे कर रहा है? अडानी कंपनियां जिनके पास फ्री फ्लोट नहीं है, उनके शेयर किसके पास हैं? कंपनी के अप्रकट निवेशक कौन हैं? यह सच है कि प्रशासन उनके सावधानी से तैयार किए गए सवालों और मीडिया को दिए गए साक्षात्कारों में उनके प्रस्तुत करने के तरीके से डरता था। इन सब आशंकाओं का भय उन्हें संसद से बाहर करने के कदम में परिलक्षित होता है। तथ्य यह है कि गौतम अडानी का बाजार पूंजीकरण 2014 में 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 तक 43 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक सबसे असाधारण तरीके से पहुंच गया, यह भी इन आशंकाओं को भड़काने वाला एक  कारक था।

इस प्रक्रिया में, भाजपा ने महुआ के खिलाफ एक अभियान चलाया था जिसमें उनकी संसद लॉगिन आईडी को एक बाहरी व्यक्ति को सौंपने के आरोप पर गंभीर गलत काम का हवाला दिया गया था। यह आरोप वास्तव में हास्यास्पद था क्योंकि संसद सदस्यों के बीच नामित व्यक्तियों की सहायता लेना आम बात है, जिन्हें संसद सदस्य को विधायी सहायता (एलएएमपी) योजना के तहत प्रशिक्षित भी किया जाता है। एलएएमपी सहायक सांसदों को प्रश्न तैयार करने, विधायी शोध और डेटा विश्लेषण को बढ़ाने, संसदीय बहसों और स्थायी समिति की बैठकों की पृष्ठभूमि अनुसंधान को पूरक करने, सदस्यों के लिए निजी बिल की तैयारी पर काम करने और प्रेस विज्ञप्ति बनाने और मीडिया के साथ साक्षात्कार आयोजित करने में सहायता  करते हैं।

संसद लॉगइन आईडी किसी और को दिए जाने को लेकर महुआ ने साफ सफाई दी है । प्रश्न और उत्तर अपलोड करने के लिए पासवर्ड का उपयोग संसद में बजट दस्तावेजों या अन्य गोपनीय दस्तावेजों तक पहुंचने के लिए नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में संसद सदस्यों के लिए कोई विशेष नियम नहीं बनाए गए हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि ऐसे तर्क और नैतिकता के सवालों की मौजूदा शासन व्यवस्था में कोई प्रासंगिकता नहीं है।

प्रशासन ने सवाल उठाने वालों को क्षति पहुँचाने के लिए विशेष कौशल विकसित कर लिया  है और केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सभी एजेंसियों का उपयोग उस उद्देश्य के लिए किया जाता है। अडानी और अंबानी के स्वामित्व वाले गोदी मीडिया का उपयोग मुख्यता मोदी शासन के लिए प्रचार करने के लिए  किया जाता है। यह सब निश्चित रूप से महुआ मोइत्रा की प्रासंगिकता को बढ़ाता है क्योंकि वह मोदी-अडानी सांठगांठ और भारतीय व्यापार प्रणालियों और राजनीतिक ढांचे पर इसके अभूतपूर्व प्रभाव के बारे में दुनिया के सामने लगातार आवाज़ उठाने के साहस का प्रतिनिधित्व करती हैं।

About Author

के सहदेवेन

लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के सहदेवेन ने अपने लेखों और सक्रिय गतिविधियों के माध्यम से दशकों से पर्यावरण, सामाजिक और अर्थव्यवस्था संबंधी चिंताओं पर प्रकाश डाला है।