निर्माता, विध्वंसक और अवतार: 2023 में भारतीय राजनीति की गाथा
28 मई, 2023 को नए संसद भवन का अर्पण एक से अधिक कारणों से हमेशा स्वतंत्र भारत के राजनीतिक मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण निशान छोड़ जाएगा। यह वास्तव में संसद के बुनियादी ढांचे, इसके डिजाइन और वास्तुकला के इतिहास में एक नई शुरुआत का प्रतीक है। हालाँकि, एक कटु तथ्य यह भी है कि अपने उद्घाटन के बाद से, नरेंद्र मोदी सरकार ने संसदीय लोकतंत्र के लोकाचार को खुलेआम ध्वस्त करना शुरू कर दिया है, जो दर्शाता है कि देश चुनावी निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है।
एक जाने-माने संपादकीय कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने हाल ही में 140 से अधिक सांसदों के सिलसिलेवार निलंबन की विडंबना को बड़ी सटीकता से रेखांकित किया है, और दिखाया है कि “यह कैसे शुरू हुआ” और कहां जा रहा है। उन्होंने एक्स पर जो कार्टून शेयर किया उसमें दो नरेंद्र मोदी को दर्शाया गया है। पहली तस्वीर में उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में पुरानी संसद के मुख्य द्वार की सीढ़ियों पर सम्मान के संकेत के रूप में झुकते हुए दिखाया गया है, जब वे 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सेंट्रल हॉल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसदीय दल की बैठक के लिए पहुंचे थे। दूसरी तस्वीर में नई संसद को मानवीय छवि के रूप में मोदी के पैरों पर झुकते हुए, हाथ जोड़कर विनती करते हुए, “कृपया मुझे निलंबित न करें” की तरह प्रस्तुत किया गया है ।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़, जो भारत के उपराष्ट्रपति भी हैं, दोनों पर स्पष्ट रूप से भाजपा के प्रति पूर्वाग्रह के साथ काम करने का आरोप लगाया गया है। इस संदर्भ में एक हालिया वायरल वीडियो क्लिप की व्यापक रूप से चर्चा की जा रही है, जिसमें प्रधान मंत्री मोदी के सामने धनखड़ की विनम्र शारीरिक भाषा दिखाई गई है। अपने सार्वजनिक भाषणों में धनखड़ अपने संवैधानिक पद से समझौता करते हुए पीएम मोदी की जमकर तारीफ करते रहे हैं । ऐसे ही एक भाषण में उन्होंने मोदी की तुलना महात्मा गांधी से करते हुए मोदी को इस सदी का “युगपुरुष” बताया था।
इससे पहले सितंबर में, ओम बिड़ला ने द इंडियन एक्सप्रेस में संसद और लोकतंत्र के महत्व पर प्रकाश डाला था। मोदी ने इसकी प्रशंसा करते हुए कहा, “उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे संसद ने सभी प्रकार के विचारों को एक जैसे सम्मान के साथ अपनाकर ‘लोकतंत्र की स्वर समता ‘ बनाई है, साथ ही संवैधानिक मूल्यों, राष्ट्रीय हित और आम भलाई के लिए भी संसद तैयार रही है।” लेकिन लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा सांसदों के बड़े पैमाने पर निलंबन के बाद, “लोकतंत्र की स्वर समता ” “निरंकुशता के कटु स्वर ” में बदल गई है, इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं कि कैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को बिना चर्चा के पारित कराने के लिए संसद को विपक्ष की आवाजों से मुक्त किया जा रहा है।
गौरतलब है कि यह यह भी दर्शाता है कि पिछले कुछ दशकों में भाजपा और लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में उसकी स्वयंभू समझ में कैसे बदलाव आया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के शासनकाल के दौरान, दिवंगत भाजपा नेता सुषमा स्वराज, जो लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, ने टिप्पणी की थी, “संसद को चलने न देना भी लोकतंत्र का एक रूप है।” इसी तरह, राज्यसभा में उनके समकक्ष अरुण जेटली ने भी संसदीय कार्यवाही को रोकने को सही ठहराते हुए कहा था, “संसद को बाधित करके, हमने देश को एक संदेश दिया है।” संसद के इस शीतकालीन सत्र ने भाजपा की हैरान कर देने वाली असलियत का पर्दाफाश किया है। मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में सत्तारूढ़ दल ने साबित कर दिया हैं कि जिस स्थान पर भाजपा खुद 2014 से पहले संसद में थी अब उस स्थान का वह सम्मान नहीं करती।
“सेंगोल” को प्राचीन चोल राजवंश द्वारा सत्ता हस्तांतरण के समय नए राजा को सौंपने की परंपरा थी। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नए संसद भवन में ” सेंगोल ” की स्थापना से मोदी की छवि एक करिश्माई संत के अवतार में शक्तिशाली नेता के रूप में मजबूत हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि मोदी ने भारत की वैश्विक छवि को गौरान्वित किया है। यह छवि उन्हें मीडिया और सार्वजनिक जांच से प्रतिरक्षित बनाती है।
विपक्षी सांसदों के क्रमिक निलंबन से पहले नए संसद भवन में “विनाशकारी” कृत्य अन्य रूपों में भी प्रकट हुए थे। दक्षिणी दिल्ली के सांसद और भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी ने सितंबर 2023 में लोकसभा में पूर्व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सांसद दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी की थी, तब कैमरे के फ्रेम में अन्य भाजपा सांसदों की हँसी में घृणा झलक रही थी । इस घटना पर जीवन के सभी क्षेत्रों से राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों की प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस घृणित घटना पर देश के माननीय राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष ने चुप्पी साध ली।
एक और इमारत या निर्माण की कहानी पर आते हैं, प्रधान मंत्री मोदी ने 5 अगस्त, 2000 को भारत में कोरोनोवायरस मामलों की वृद्धि की परवाह किए बिना अयोध्या में हिंदू भगवान राम के एक भव्य मंदिर की आधारशिला रखी थी। यह नया मंदिर उस स्थान पर बनाया जा रहा था जहां कभी मुगलकालीन बाबरी मस्जिद थी। मोदी ने उस दिन की तुलना भारत के स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, 1947 से की। इस तुलना ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समावेशी और धर्मनिरपेक्ष चरित्र की विरासत को कमजोर कर दिया।
अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार जनवरी 2024 में राम मंदिर का अभिषेक समारोह आयोजित करने के लिए जल्दबाज़ी कर रही है। आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए, मोदी का इसमें शामिल होने का कार्यक्रम है. यह समारोह “हिंदू राष्ट्र” की स्थापना के प्रतीक समारोह के रूप में देखा जा रहा है। इस प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी 30 दिसंबर, 2023 को अयोध्या में हवाई अड्डे के उद्घाटन और मंदिर शहर में मोदी के भव्य रोड शो के साथ शुरू हो गई है। स्पष्ट रूप से, यह सब मोदी की भव्य छवि बनाने के लिए सावधानीपूर्वक बनाई गई रणनीति का हिस्सा है।
जैसे-जैसे केंद्र में भाजपा सरकार का दूसरा कार्यकाल समाप्त हो रहा है, इसने कई पार्टी नेताओं, मंत्रियों और यहां तक कि “पदम श्री” फिल्म-स्टार कंगना राणावत जैसी सार्वजनिक हस्तियों और समर्थकों द्वारा मोदी को भगवान का अवतार बताया जा रहा है। कंगना ने यह टिप्पणी तब की जब वह अपनी हालिया फिल्म तेजस को सफल बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही थीं। दरअसल, उन्होंने लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक विशेष स्क्रीनिंग की मेजबानी की और मीडिया से कहा, “सीएम योगी आदित्यनाथ ने हमें आश्वासन दिया है कि वह हमारा समर्थन करेंगे और राष्ट्रवादियों को फिल्म से जुड़ने के लिए प्रेरित करेंगे…” । पीएम मोदी, जिन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान “केरल स्टोरी” नामक विवादास्पद, सांप्रदायिक फिल्म का समर्थन किया था, कंगना के चापलूसी भरे कथन, “मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद 2014 में भारत वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र हुआ, “के बावजूद कंगना को ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया । 17 दिसंबर को, कंगना ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात की, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि वह भाजपा के टिकट पर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं।
2023 के अंत में, भाजपा ने “मोदी की गारंटी” रणनीति को लागू करते हुए, हिंदी भाषी राज्यों में रणनीतिक जीत हासिल की। हालाँकि, हाल ही में हुए चुनाव में भगवा पार्टी को सभी 14 विधानसभा सीटें देने के बावजूद छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की आदिवासी आबादी को चुनाव के बाद करारा झटका लगा। भले ही मोदी ने वादा किया था कि आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा की जाएगी, पहले आदिवासी सीएम के नेतृत्व वाली नई भाजपा राज्य सरकार जैव विविधता से समृद्ध हसदेव अरंड में खदानों के विस्तार की दिशा में आगे बढ़ गई है। यह क्षेत्र, अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) को प्रदान की गई परसा ईस्ट केंटे बसन (पीईकेबी) दूसरा चरण खनन परियोजनाओं का हिस्सा है। जहां गौतम अडानी पर मेहरबानी दिखाने के लिए मोदी की आलोचना की जाती है, वहीं छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक चुनावी रैली के दौरान चेतावनी दी थी, “अगर कमल का बटन दबाओगे तो वीवीपीएटी से अडानी निकलेगा।”
इन सबके साथ, 2023 में भारत के लिए एक नए संविधान की बढ़ती मांग भी देखी गई है। प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य बिबेक देबरॉय ने मिंट के लिए लिखे एक लेख में मौजूदा संविधान को एक नए संविधान में बदलने का आह्वान किया। उन्होंने लिखा, “हमारा वर्तमान संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इस अर्थ में, यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है,” हालांकि बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि लेख उनकी व्यक्तिगत राय को दर्शाता है। इसी तरह, एक प्रमुख कानूनी थिंक टैंक, विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के संस्थापक सदस्य अर्घ्य सेनगुप्ता ने अपनी पुस्तक “द कोलोनियल कॉन्स्टिट्यूशन” में एक बार फिर तर्क देते हुए लिखा है कि मौजूदा संविधान भारत सरकार अधिनियम 1935 से काफी प्रभावित था जिसे जवाहरलाल नेहरू ने “गुलामी का नया चार्टर” कहा और मदन मोहन मालवीय ने उस समय भारतीयों के पास जो भी थोड़ी बहुत आज़ादी थी, उसे छीनने का प्रयास बताया।
भारतीय संविधान पर ये तथाकथित नए तर्क संक्षेप में कुछ अतिवादी और आक्रामक विचारों का पुनरुत्थान हैं जो हिंदुत्व उन्मुख संघ परिवार के संस्थापक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) , के नेताओं के बयानों में भारतीय गणराज्य के गठन के समय से ही रहे हैं । आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक ” गुरुजी” एमएस गोलवलकर ने भारतीय संविधान को उसके शुरुआती दिनों से ही खारिज कर दिया था।
उनका तर्क था कि “हमारा संविधान पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों के विभिन्न अनुच्छेदों का एक बोझिल और विषम संयोजन मात्र है।” “इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे अपना कहा जा सके। क्या इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों में संदर्भ का एक भी शब्द है कि हमारा राष्ट्रीय मिशन क्या है और जीवन में हमारा मूलमंत्र क्या है? नहीं! संयुक्त राष्ट्र चार्टर या अब समाप्त हो चुके राष्ट्र संघ के चार्टर के कुछ लंगड़े सिद्धांत और अमेरिकी और ब्रिटिश संविधान की कुछ विशेषताओं को केवल एक दिखावे के रूप में एक साथ लाया गया है।
उस समय आरएसएस के मुखपत्र “ऑर्गनाइज़र” के एक संपादकीय में यह बताया गया था कि संघ परिवार का वास्तव में “हमारे अपने” मूल्यों से क्या मतलब है। संपादकीय में कहा गया है,“हमारे संविधान में प्राचीन भारत में अद्वितीय संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनु के नियम (मनुस्मृति) स्पार्टा के लाइकर्गस या फारस के सोलोन से बहुत पहले लिखे गए थे। आज तक मनुस्मृति में प्रतिपादित उनके कानून दुनिया की प्रशंसा , सहज आज्ञाकारिता और अनुरूपता प्राप्त करते आए हैं। लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।” तो, अंततः भाजपा और संघ परिवार और “भगवान का अवतार” भारत को मनुस्मृति दुनिया में ले जाएगा।
हालांकि यह सीधे तौर पर “2023 की निर्माण और विनाश परियोजना” से संबंधित नहीं है, लेकिन एडटेक प्लेटफॉर्म अनएकेडमी से जुड़े प्रसिद्ध इतिहास शिक्षक अवध ओझा की एक टिप्पणी ने वर्तमान स्थिति, विशेष रूप से मोदी की अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलना और महानगरीय जीवन शैली का खंडन जैसी सत्तावादी प्रवृत्तियों की एक हास्यपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की हैं, ” मोदी जी किसका इंतजार कर रहे हैं, उन्हें संविधान को खत्म कर देना चाहिए। अब ताज पहनने का समय आ गया है. मुगल राजवंश को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है, अब समय आ गया है कि हम एक नए राजवंश – मोदी राजवंश के बारे में पढ़ें,” शिक्षक ने एक ऑनलाइन कक्षा के दौरान कहा। शिक्षक ने कहा, “यह कितना सुंदर है कि वे एक-दूसरे को गालियां दे रहे हैं “। उसने नए संसद भवन को “मोदी महल” के रूप में वर्णित किया , जिसे कई लोगों ने इसकी वास्तुकला शैली के कारण उपहासपूर्वक “शादी के केक” के रूप में लेबल किया है।
“तो क्या हुआ अगर मोदी जी की कोई संतान नहीं है। यह कोई मुद्दा ही नहीं है. मुहम्मद गौरी के पास भी नहीं था। उनके कमांडर उनके बच्चे थे, ”उन्होंने कहा। उनकी टिप्पणियाँ अनअकेडमी द्वारा अपने छात्रों को चुनाव के दौरान शिक्षित उम्मीदवारों को वोट देने के लिए प्रेरित करने के लिए एक शिक्षक, करण सांगवान को बर्खास्त करने के एक महीने बाद आई हैं। अवध ओझा ने व्यंग्यात्मक रूप से टिप्पणी की, “यदि आपातकाल घोषित किया जाता है, तो मैं नेपाल सीमा पार कर जाऊंगा क्योंकि यह मेरे गृहनागर गोंडा (उत्तर प्रदेश )के पास है ।” अनअकेडमी वेबसाइट अब अवध ओझा को एक पूर्व-शिक्षक के रूप में वर्णित करती है जो अब इससे जुड़ा नहीं है। अगस्त 2023 में करण सांगवान की बर्खास्तगी क्यों हुई?अनअकेडमी ने शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई की क्योंकि उन्होंने एक कक्षा के दौरान छात्रों से शिक्षित उम्मीदवारों के लिए वोट करने की अपील की थी ।भले ही उन्होंने किसी नाम या पार्टी का उल्लेख नहीं किया था। वीडियो क्लिप वायरल होने के बाद से शिक्षक और संस्थान का दक्षिणपंथी लोगों द्वारा विरोध किया गया। वीडियो क्लिप में कुमार अपने छात्रों से ब्रिटिश-युग आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए लोकसभा में पेश किए गए बिलों पर चर्चा कर रहे थे ।वे आग्रह कर रहे थे, “यह न भूलें, जब आप अगली बार वोट करें तो किसी ऐसे व्यक्ति को वोट दें जो पढ़ा-लिखा हो, ताकि आपको दोबारा इस (परीक्षा) से न गुजरना पड़े। ऐसे व्यक्ति को चुनें जो शिक्षित हो और चीजों को समझता हो। किसी ऐसे व्यक्ति को न चुनें जो केवल नाम बदलना जानता हो। ठीक से फैसला करो।”
अनअकेडमी बड़ी संख्या में युवाओं को सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए तैयार करने के लिए प्रसिद्ध है। दूसरे शब्दों में, भारत की नौकरशाही और प्रशासनिक संरचनाओं का हिस्सा बनने के लिए प्रशिक्षण देती है । एक तरह से, इन शिक्षकों को शिक्षण दस्तों से हटाने के साथ, शैक्षणिक संस्थान यह कह रहा था कि उसने विध्वंसकों, बिल्डरों और ईश्वर के अवतार के संबंध में नए आलेखों को स्वीकार कर लिया है। यह नए युग के सिविल सेवकों के लिए निश्चित रूप से एक ठोस आधार सिद्ध होगा जो 2023 के निराशाजनक युगांतकारी वर्ष के बाद सत्तारूढ़ ढांचे का हिस्सा बनेंगे।
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