खाद्य, तेल और न्याय: सीओपी 28 संवाद आक्रोश पैदा करना जारी रखते हैं
वैश्विक जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन, सीओपी 28 में जीवाश्म ईंधन को ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्त’ करने या ‘चरणबद्ध तरीके से कम करने’ को लेकर विरोधाभासी स्थिति सामने आ रही है। इस बहस ने शिखर सम्मेलन की चर्चाओं को तेज़ कर दिया है. सीओपी 28 के अध्यक्ष और तेल उद्योग के कार्यकारी सुल्तान अल-जबर की टिप्पणी है कि ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जो जीवाश्म ईंधन को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ता हो। इसके तुरंत बाद एक क्षति नियंत्रण प्रेस वार्ता में, अल-जबर ने बताया कि उनके शब्दों का गलत मतलब निकाला गया। हालाँकि, पूरा प्रकरण इस बात पर चिंता पैदा करता है कि आने वाले लंबे समय तक कई देशों और व्यक्तिगत संस्थाओं द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग का बचाव किया जा सकता है। यह चिंताजनक है क्योंकि अध्ययनों ने निश्चित रूप से साबित कर दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री के दायरे में रखने के लिए, जीवाश्म ईंधन के उपयोग में काफी तेज़ी से कटौती की जानी चाहिए।
शिखर सम्मेलन के तीसरे दिन , 50 तेल कंपनियों ने 2030 तक लगभग शून्य मीथेन उत्सर्जन प्राप्त करने से संबंधित एक विवादास्पद समझौते, ‘द ऑयल एंड गैस डीकार्बोनाइजेशन चार्टर’ पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने एक समय सीमा तक फ्लेरिंग ( अतिरिक्त मीथेन को जलाने ) को रोकने का भी वादा किया था । सुल्तान अल-जबर, जो संयुक्त अरब अमीरात के उद्योग और उन्नत प्रौद्योगिकी मंत्री और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के प्रमुख भी हैं, ने सीओपी 28 के तीसरे दिन यह घोषणा की। पर्यावरण समूहों ने तुरंत चेतावनी के साथ प्रतिक्रिया दी और इसे तेल और गैस का उपयोग जारी रखने के लिए एक स्मोकस्क्रीन कहा । इन आपत्तियों के बावजूद, यह भी सच है कि जिन कंपनियों ने संधि पर हस्ताक्षर किए हैं वे सामूहिक रूप से दुनिया के आधे तेल उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं।
उपर्युक्त समझौते को एक ऐसी रणनीति के रूप में देखा जाता है जो तेल कंपनियों को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने और उन देशों के बजाय जो तेल और गैस को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैँ, वैश्विक ऊर्जा मंच पर पकड़ बनाए रखने में मदद करेगी । ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना सबसे आवश्यक और एकमात्र प्रभावी कदम माना गया है। इस संधि का एक और अस्पष्ट लेकिन महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भले ही तेल कंपनियां अपने मीथेन उत्सर्जन को कम कर दें, अंतिम उपयोगकर्ता, यानी तेल और गैस के उपभोक्ता, उनका उपयोग करना जारी रखेंगे और कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में छोड़ते रहेंगे ।
एक सकारात्मक बात यह है कि सीओपी 28 वार्ता के लिए दुबई में एकत्र हुए विश्व नेताओं ने दुनिया की खाद्य प्रणालियों को और अधिक दीर्घाकलिक बनाने का संकल्प लिया है। यह हमारे ग्रह के देशों के बीच पहला औपचारिक अनुबंध है जो जलवायु परिवर्तन को भोजन से जोड़ता है।
शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन हस्ताक्षरित समझौते का शीर्षक है, ‘ सतत कृषि, लचीली खाद्य प्रणाली और जलवायु कार्रवाई पर सीओपी 28 यूएई घोषणा’ और जलवायु परिवर्तन शमन की दिशा में निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए दुनिया द्वारा महसूस की गई तात्कालिकता के स्तर की ओर इशारा करता है। समझौते में, राष्ट्रों ने पृथ्वी की बदलती जलवायु के अनुकूल होने में मदद करने के लिए अपनी खाद्य प्रणालियों को परिवर्तित करने के लिए विस्तृत योजनाएँ तैयार करने पर सहमति व्यक्त की। इस प्रकार 2025 तक, यानी दो वर्षों में, विश्व नेता कृषि और खाद्य उत्पादन से संबंधित सभी प्रकार की नीतियों और कदमों में जलवायु कार्रवाई को शामिल करने का वादा करते हैं।
134 देश पहले ही इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं और 12 दिसंबर को सीओपी 28 शिखर सम्मेलन समाप्त होने से पहले और अधिक देशों के हस्ताक्षर करने की उम्मीद है। इस लेख के लिखे जाने तक तो भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
शिखर सम्मेलन के मौके पर, एक और प्रगति हुई है, संयुक्त अरब अमीरात और बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बीच कृषि अनुसंधान के साथ-साथ जलवायु अनुकूल खेती के लिए कृषि नवीनीकरण अनुसंधान करने के साथ-साथ तकनीकी नवीनीकरण को लागू करने के वित्तपोषण के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना था ताकि सीओपी 28 की सतत खाद्य उत्पादन घोषणा को अमल में लाया जा सके.
सतत कृषि संधि के निहितार्थ व्यापक हैं। इस बात को समझते हुए कि उसके कुल ग्रीनहाउस उत्सर्जन का 10% क़ृषि से होता है, अमेरिका पहले से ही अपनी कृषि को जलवायु के अनुकूल बनाने की राह पर है । 2021 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग ने 3 बिलियन डॉलर की एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की, जो मुख्य रूप से उन किसानों को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है जो सतत कृषि प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं का उपयोग करते हैं।
इस योजना का नाम है, जलवायु अनुकूलन और लचीलापन योजना, ‘क्लाइमेट-स्मार्ट कमोडिटीज़ के लिए साझेदारी’। जलवायु अनुकूलन के लिए नुकसान और क्षति सहायता के रूप में अमेरिका ने विकसित और विकासशील देशों को जो मात्र 17.5 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था और देश ने अपने किसानों की सहायता के लिए जो 3 बिलियन डॉलर अलग रखे हैं, उनके बीच के अंतर को कोई भी नहीं भूल सकता।
हालाँकि, शिखर सम्मेलन में एक अन्य वार्ता में, अमेरिका ने ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) जिसकी स्थापना 2010 में की गई थी को 3 बिलियन डॉलर देने का वादा किया । यह फंड अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी के बाद ही जारी किया जाएगा। यह एक फंड है जिसका उपयोग विकासशील/अल्पविकसित देशों में जलवायु अनुकूलन और शमन का समर्थन करने के लिए किया जाता है।
जब किसानों के लिए अमेरिकी जलवायु अनुकूलन योजना शुरू की गई थी तो पर्यावरण समूहों द्वारा उठाई गई एक बड़ी चिंता यह थी कि बड़ी कृषि कंपनियां लाभ झपट लेंगी और छोटे और मध्यम किसानों को अपने दम पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए छोड़ दिया जाएगा। सभी जलवायु शमन उपायों का मूल्यांकन और निगरानी सभी की चिंताओं को ध्यान रखते हुए की जानी चाहिए, जहां योग्य राष्ट्रों के साथ-साथ किसानों या उद्योगों जैसी अन्य संस्थाओं के बीच धन का समान वितरण हो।
जलवायु कार्रवाई का आगामी और अपनी तरह का पहला वैश्विक स्टॉकटेकिंग सीओपी 28 का मुख्य आकर्षण होगा। प्रतिज्ञाओं और वादों के अलावा, इस स्टॉकटेकिंग से पता चलेगा कि जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में जमीन पर वास्तव में कितनी प्रगति हुई है।
एक साक्षात्कार में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने शिखर सम्मेलन में होने वाली चर्चाओं को तीन प्रमुख श्रेणियों में संक्षेपित किया है। एक वीडियो साक्षात्कार में उन्होंने जो कहा, उसकी विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है- सबसे पहले, देशों को अपने एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान- स्वयं तैयार कार्य योजना और प्रतिबद्धताओं) को सही मायने में संरेखित करके ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री की सीमा के भीतर सीमित करने के लक्ष्य के साथ खुद को प्रतिबद्ध करना होगा। ) । दूसरा, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना होगा और दुनिया को इसे पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा में बदलने का निर्णय लेना होगा, और यह ऊर्जा सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। तीसरा प्रमुख लक्ष्य पूरी प्रक्रिया में तेजी लाना है ताकि किसी को भी जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली तबाही का सामना न करना पड़े। महासचिव ने सभी को याद दिलाया कि स्पष्ट रूप से इस तीसरे लक्ष्य का मतलब विकासशील/अल्पविकसित देशों को ढेर सारी वित्तीय सहायता देना है।
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