अडानी एफपीओ के बाद क्या भारतीय पूंजी बाजार की विश्वसनीयता और अखंडता दाव पर है?
वी श्रीधर
February 1, 2023
1 min read
अडानी एंटरप्राइज का फॉलो- ऑन पब्लिक ऑफर जो मंगलवार 31 जनवरी को बंद हो गया, इसे बाजार पर्यवेक्षकों द्वारा ‘ सेल्स थ्रू ‘ के रूप में रेट किया गया, लेकिन इससे आने वाले दिनों में शेयरों के निपटान में अस्थिरता की संभावना खत्म नहीं हुई है।
एफपीओ का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था गैर संस्थागत निवेशकों द्वारा 5.08 करोड़ शेयरों में से 3.19 करोड़ शेयरों के लिए बोली लगाना – यानि 63% । लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि एनआईआई की श्रेणी में भी 10 लाख रुपए से अधिक की बोली लगाने वाले 99.75% थे। इस प्रकार सबसे बड़े दिग्गज , जिनके लिए 64 लाख शेयर आरक्षित थे, उन्होंने 3.185 करोड़ शेयरों की बोली लगाई ।इस प्रकार इस उपश्रेणी में लगभग 5 गुना सब्सक्रिप्शन हुआ। कुल मिलाकर एनआईआई का सब्सक्रिप्शन आरक्षित कोटे से 3.32 गुना ज्यादा था।
इस श्रेणी ने अभी के लिए भले ही एफपीओ को बचा लिया हो लेकिन यह कई सवाल खड़े करता है क्योंकि एफपीओ का निर्धारित उद्देश्य अडानी शेयर की हिस्सेदारी को प्रमोटरों के बीच विकेंद्रित करना था । इस विषय पर बाद में बात करेंगे।
एक अन्य श्रेणी जिसने अडानी ग्रुप को शर्मिंदा होने से बचाया वह थी क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स ( क्यूआईबी) श्रेणी की 1.28 करोड़ अरक्षित शेयरों के बदले 1.61 करोड़ शेयरों की बोली।इसका मतलब यहां ओवर सब्सक्रिप्शन उनके कोटे से 1.26 गुना हुआ।
विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा लगाई गई बोलियों की संख्या क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स द्वारा लगाई गई बोलियों का 77% रही विशेष रूप से म्युचुअल फंड, बैंक और वित्तीय संस्थान इस श्रेणी में अनुपस्थित रहे।
निवेशकों की अन्य सभी श्रेणियों के बीच एफपीओ फ्लॉप शो रहा।अडानी एंटरप्राइज के अपने कर्मचारी ,जिनके लिए 1.61 लाख शेयर आरक्षित थे , उन्होंने आरक्षित शेयरों के आधे शेयरों के लिए बोली लगाने का विकल्प चुना। परिस्थितियों को देखते हुए अडानी ग्रुप के लिए सबसे बड़ा झटका खुदरा निवेशकों के बीच था और यह अप्रत्याशित बिल्कुल नहीं था। इस श्रेणी में 2.29 करोड़ आरक्षित शेयरों में से केवल 26.98 लाख शेयरों के लिए बोली लगाई गई ,जिसका तात्पर्य है 11.78%की स्वकृति दर।
सबसे बड़ी बात ,71% बोलियां न्यूनतम मूल्य पर प्राप्त हुईं आधार मूल्य रु 3112. ( ऊपरी सीमा रु 3276 ,प्रति शेयर) ।बेशक ये बोलियां रु 64 प्रति शेयर छूट की पात्र हैं।कुल मिलाकर अडानी एंटरप्राइज एफपीओ को 4.55 करोड़ शेयर की पेशकश के एवज में 5.08 करोड़ शेयरों की बोलियां मिलीं- 1.12 गुना का ओवर सब्सक्रिप्शन।
शानदार जीत? बिल्कुल नहीं।ऐसा लगता है पर ऐसा है नहीं।बहुत से प्रश्न उठते हैं , उनमें से कई परेशान करने वाले हैं।खासकर इसलिए क्योंकि “सफलता ” एफपीओ को बचाने वाले धनकुबेरों पर निर्भर है,जिन्होंने अडानी ग्रुप को उस मुसीबत से बचा लिया है जो आज दोपहर तक अडानी के सामने मुंह बाएं खड़ी थी।
सर्वप्रथम,यदि मकसद प्रमोटर की हिस्सेदारी कम करके एफपीओ की तरह शेयरधारिता को विकेंद्रित करना था तो जिस तरह से एफपीओ ने काम किया है वह इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरे, एफपीओ की ‘इनोवेटिव’ बुक – नाउ पे – लेटर संरचना जिसके अंतर्गत निवेशकों को आवंटित शेयरों की केवल आधी कीमत अभी चुकानी होगी, स्टॉक की अस्थिरता के कारण निवेशकों की दिलचस्पी खत्म कर सकता है।
यदि शेयर की कीमत और नीचे जाती है तो वे निवेशक जिन्होंने ‘ओवरपेड ‘ किया है बोली लगाने के अपने निर्णय पर पछता सकते हैं।वास्तव में इस कारक ने खुदरा निवेशकों को दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है।
हिंडेनबर्ग द्वारा उठाए गए मुद्दों में से एक मुख्य मुद्दा उन शेयर होल्डिंग्स के बारे में था जो अडानी समूह के नज़दीकी थे और शायद कथित रूप से उन्हें पब्लिक होल्डिंग्स दिखाने का ढोंग किया गया। निवेशकों के हित का सबसे अहम मुद्दा यह जानना होगा कि वे कौन से प्रभावशाली लोग हैं जिन्होंने एफपीओ को मुसीबत से बचाया।
नियमानुसार एक संस्था के लिए अपने निवेशकों को जानना ( केवाईआई) उतना ही जरूरी है जितना अपने ग्राहकों को जानना ( केवाईसी) । और यह केवल भारत में तेजी से बढ़ते हुए समूह या उस संगठन प्रमुख के भविष्य की बात नहीं है जो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक है बल्कि भारतीय पूंजी बाज़ार की विश्वसनीयता की बात है।
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