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30 जनवरी,2023 को गांधीजी की शहादत की 75वीं बरसी मनाई गई। आज के बढ़ते धार्मिक अतिवाद के समय में गांधीजी की शहादत बहुत महत्त्व रखती है। द ऐडम प्यार में विश्वास करने वाले गांधीजी की स्मृति को श्रृद्धांजलि देता है।
मानवता धर्म से परे गांधीजी की अंतिम भूख हड़ताल उनकी हत्या के 17 दिन पहले हुई थी।धार्मिक सद्भाव बनाए रखने के लिए करो या मरो का फैसला था।गांधीजी तब 78 साल के थे लेकिन उनके शरीर का वजन सिर्फ 49 किलो था।उनके पास नैतिकता के आदर्शों द्वारा संचालित एक अभूतपूर्व गुरुत्व शक्ति थी जिसका स्वप्न मानवजाति ने कई सदियों से देखा था । ठीक वैसी ही जैसी यीशु मसीह द्वारा क्रॉस को वहन करते समय थी।
भूख हड़ताल के तीसरे दिन एक अमेरिकी पत्रकार गांधीजी से मिलने आया। उस मुलाकात के करीब 15 दिन बाद पत्रकार ने अपनी पत्नी को यह संदेश भेजा ,” गांधी लकड़ी की चारपाई पर सिमटे हुए एक भ्रूण की तरह पड़े थे ।” लेकिन यह भ्रूण वास्तव में क्या था और वह किस गर्भ में स्थित था।
गांधीजी ने एक बार कहा था, ” लिखित इतिहास युद्धों का है और मनुष्य जीवित रहे क्योंकि वे एक दूसरे से प्यार करते थे।”
सितंबर 1947 में जब गांधीजी कोलकाता से दिल्ली लौटे तो रेलवे स्टेशन पर सरदार पटेल ने उनका स्वागत किया। गांधीजी ने एक दार्शनिक की उत्कट व्यथा से सरदार पटेल से कहा ” यह शहर ऐसा लगता है जैसे मृतकों का शहर, हमें वही करना है जो किया जाना चाहिए,अन्यथा हमें मर जाना चाहिए।
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गांधीजी जानते थे कि उस समय हिंदू कट्टरपंथी क्या प्रचार कर रहे थे।सरदार पटेल से बात करते हुए उन्होंने कहा,” संघ परिवार किन्हें अपना बनाने की कोशिश कर रहा है? वे क्या चाहते हैं ? वे क्या कह रहे हैं? मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि वे इस देश के मुसलमानों को कहां खदेड़ना चाहते हैं? वे जो अभी मुसलमानों को हटाने की कोशिश कर रहे हैं , कल ईसाइयों को निशाना बनाएंगे ,फिर पारसियो को निशाना बनाएंगे। हमें जो करना है अभी करना है ।नहीं तो मर जाना चाहिए।
जिस स्थान पर गांधीजी ने भूख – हड़ताल की थी,वहां सभी धर्मों के लोग आते थे।आओ, और उन्हें देखो।लेकिन 14 जनवरी को कट्टरपंथी हिंदुओं का एक समूह वहां आया और चिल्लाया,” गांधी को मरना चाहिए। ” सरदार पटेल मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू बाहर आए और उस भीड के पास जाकर नेहरू ने आवाज़ लगाई ,” आप कह रहे हैं बापू को मर जाना चाहिए? उससे पहले मुझे मार डालो।” उन्होंने पंडित नेहरू को नहीं मारा। वे तो पूर्व के यीशु मसीह का लहू चाहते थे।
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1947 में आरएसएस की एक बैठक की रिपोर्ट में गोलवलकर ने कथित तौर पर यह कहा था,” दुनिया की कोई ताकत मुसलमानों को हिंदुस्तान में नहीं रख सकती। उन्हें बस यहां से जाना होगा।महात्मा गांधी कहते हैं कि उन्हें भारत में ही रहना चाहिए।वह कांग्रेस के लिए वोट लेने के लिए ऐसा कह रहे हैं।यह लंबे समय तक नहीं चलेगा।हम जानते हैं कि ऐसे लोगों को कैसे चुप कराया जाए।लोगों को परेशान करने की हमारी परंपरा नहीं रही है,लेकिन जरूरत पड़ी तो हम वह भी करेंगे।”
20 जनवरी,1948 को गांधीजी एक प्रार्थना सभा में बोल रहे थे।वह थके हुए थे परंतु उनके दृढ़ संकल्प और उद्देश्य की शक्ति उनके चेहरे और उनकी आंखों को एक सहज सुंदरता प्रदान कर रही थी। कट्टरपंथी हिंदुओं ने उस बैठक में बम फेंक दिया।इस घटना का वीडियो फुटेज है। उस बम विस्फोट ने गांधीजी को तनिक भी विचलित नहीं किया।सब लोग उत्तेजित हो गए परंतु गांधीजी बिल्कुल स्थिर और शांत बने रहे ठीक वैसे जैसे क्राइस्ट थे जब वह क्रॉस लेकर कैल्वरी गए थे। उन्होंने कहा,” क्या मैं ऐसे मरने वाला हूं ? तो मरने दो। शांत रहो।”
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गांधीजी ने प्लेटो द्वारा लिखित ‘ द एपोलॉजी ‘ का हिंदी अनुवाद किया है,जो महान यूनानी दार्शनिक सुकरात के अंतिम दिनों पर आधारित है। यह 1908 की बात है जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे। चरमपंथी,जो लगातार अपनी तलवार को तेज़ कर रहे थे,किसी ऐसे व्यक्ति के दृढ़ संकल्प और मूल्यों को कैसे समझ सकते थे जो सुकरात को इतिहास का पहला सत्याग्रही मानता था।गांधीजी को यह भ्रम कतई नहीं था कि वे लोग उन्हें समझेंगे।
हमें यह मानना होगा कि बाद के दशकों में गांधीजी ने अपनी राजनीति में से धार्मिक प्रतिकियावाद को मिटा दिया। अपनी मृत्यु से पूर्व वे जिस पूजा स्थल पर गए थे वह था महरौली में ख्वाजा बख्तियार की दरगाह।आज 2023 में यदि कोई चरमपंथी उस दौरे को अपने राजनीतिक संदर्भ में वर्णित करने की कोशिश करता है तो यह ऐसा होगा जैसे सुकरात की मृत्यु को आत्महत्या मानना।आज की त्रासदी यह है कि हम बड़े मुद्दों को नजरंदाज करके छोटे – छोटे मुद्दों में उलझे रह जाते हैं।
एस गोपालकृष्णन एक लेखक,प्रसारक और स्तंभकार हैं जो गांधी और गांधीवादी विचारों के गहन अध्यन के लिए जाने जाते हैं।वे संगीत- अध्यन के भी विशेषज्ञ हैं। उनके पॉडकास्ट ‘ दिल्ली- डाली ‘ के प्रशंसक दुनिया भर में हैं।
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