“ए वतन मेरे वतन”; योगेन्द्र यादव द्वारा फिल्म का संक्षिप्त परिचय
मैं आम तौर पर फ़िल्मों की चर्चा नहीं करता, लेकिन यह एक विशेष संदर्भ में एक विशेष आग्रह है। आज Amazon Prime Video पर एक फिल्म “ए वतन मेरे वतन” रिलीज हो गई है। फिल्म हमारे एक वैचारिक साथी दाराब फारुक़ी ने लिखी है और कनन अय्यर उसके निर्देशक हैं।
फिल्म 1942 के “कॉंग्रेस रेडियो” और उषा मेहता के संघर्ष की कहानी से प्रेरित है। राममनोहर लोहिया इस फिल्म में पहली बार पर्दे पर एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका में दिखाईं देते हैं। ये हमारे समय की एक बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है! ये फिल्म हमें शब्द देती है, विचार देती है। लेकिन उससे भी ज्यादा हमें भरोसा और आत्म विश्वास देती है।
फ़िल्म के कई सीन आज की दुनिया के दर्पण हैं। आपको लगेगा जैसे आप 1942 की नहीं आज की फिल्म देख रहे हैं। आज देश जिस हालात से गुजर रहा है, वही हाल अंग्रेज़ों के ज़माने में भी था। यही तानाशाही, यही क्रूरता और अमानवीयता।
आप ना ख़ुद इसे देखिए बल्कि अपने समस्त परिवार को इसे दिखाईए। प्रोपेगेंडा के इस समय ये फिल्म कई मायनों में आपको साहस भी देगी, ऊर्जा भी और धैर्य भी। ये हमारी फिल्म है। हमारी सोच की फिल्म है, हमारी उम्मीद की फिल्म है, हमारे संघर्ष की फिल्म है, हमारी विचारधारा की फिल्म है। इसके संदेश को घर घर पहुंचाना हमारी ज़िम्मेदारी है।