अमेरिकी आरोपों ने अडानी की अजेयता के मिथक को कैसे तोड़ दिया
यह मामला न केवल अडानी के व्यापारिक साम्राज्य की पड़ताल करता है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके संबंधों का भी जांच करता है जिन्होंने लगातार इस दिग्गज उद्योगपति के हितों को बढ़ावा दिया है।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि गौतम अडानी, उनके भतीजे और उनके सहयोगियों पर अमेरिका में अभियोग चलाए जाने से भारत और दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को झटका लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नज़दीकी रखने वाले इस प्रमुख उद्योगपति को इससे पहले कभी इस तरह से झटका नहीं लगा था। उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। और इसके साथ ही उनकी कारोबारी योजनाएं भी दांव पर हैं।
जनवरी 2023 में प्रकाशित न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट–सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की 30,000 शब्दों की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अडानी “कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला कर रहे हैं”, और खोजी पत्रकारों की अनगिनत रिपोर्टें, जिनमें ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) के लोग भी शामिल हैं, उन पर, उनके परिवार के सदस्यों और उनके साथ मिलकर काम करने वाले अन्य लोगों पर लगाए गए आरोपों की गंभीरता और गहराई के सामने महत्वहीन हो जाती हैं, जो अमेरिका की संघीय सरकार की दो एजेंसियों: न्याय विभाग (DoJ) और उस देश के वित्तीय बाज़ारों के नियामक, प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) द्वारा लगाए गए हैं। ये आरोप, मुख्यतः संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) की जांच पर आधारित हैं।
अपने ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट के बावजूद अडानी अपने जनसंपर्क तंत्र की मदद से साहसी मोर्चा खोलने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन शायद उन्हें, उनके संरक्षक मोदी की तरह, एहसास है कि दीवानी और आपराधिक आरोपों के इस दौर के बाद चीज़ें फिर कभी वैसी नहीं हो सकतीं। ऐसा सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि भारत में कोई भी पूंजीपति देश की सरकार के मुखिया के इतने क़रीब नहीं रहा है – दोनों सियामी जुड़वां की तरह हैं और इस कारण सोशल मीडिया पर उनके उपनामों का एक साथ मिलकर ‘मोदानी‘ के रूप में उभरना स्वाभाविक हो गया है।
भारत का राजनीति–व्यवसाय गठजोड़
बड़े व्यवसाय और राजनीति के बीच गठजोड़ भारत के लिए न तो नया है और न ही अनूठा है। यहां इस देश के अतीत के केवल दो उदाहरण दिए गए हैं। मोहनदास करमचंद गांधी 30 जनवरी, 1948 तक “राष्ट्रवादी“व्यवसायी घनश्याम दास बिड़ला के घर से काम करते थे। इसी दिन नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी। उन्होंने ऐसा क्यों किया इसके बारे में उनके बयान को पढ़ना उचित है। धीरूभाई अंबानी ने 1979 में एक सार्वजनिक सभा में इंदिरा गांधी का उस समय खुलकर समर्थन किया था, जब वह सत्ता से बाहर थीं। और प्रणब मुखर्जी अंबानी परिवार के करीबी दोस्त थे। लेकिन मोदी और अडानी के बीच संबंध ऊपर दिए गए उदाहरणों से अलग है।
मौजूदा प्रधानमंत्री ने अडानी के व्यावसायिक हितों को अन्य सभी भारतीय व्यापारियों के हितों से कहीं अधिक बढ़ावा दिया है। यह कभी–कभी देश के हितों के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है, उदाहरण के लिए बांग्लादेश,श्रीलंका और केन्या जैसे अन्य देशों में। इसलिए, मोदी अडानी के ख़िलाफ़ साजिश और धोखाधड़ी के आरोपों के नतीजों से खुद को पूरी तरह से अलग करने की उम्मीद नहीं कर सकते।
21 नवंबर को न्यूयॉर्क और वाशिंगटन डीसी में दोपहर का समय था, जब भारतीय गहरी नींद में थे, तभी खबर आई कि न्याय विभाग ने 62 वर्षीय व्यवसायी, उनके भतीजे सागर अडानी, उनके सहयोगी विनीत जैन (सभी अडानी समूह के एक इकाई में निदेशक हैं) के साथ–साथ कनाडा स्थित पेंशन फंड से जुड़े चार अन्य लोगों पर अभियोग दस्तावेज (एक आरोप पत्र के समान) पेश किया है। इसके तुरंत बाद यह घोषणा की गई कि एसईसी ने भी उनके ख़िलाफ़ दीवानी और आपराधिक शिकायतें दर्ज की हैं। एक ग्रैंड जूरी समन (अदालत में जूरी के सामने पेश होने के लिए एक समन की तरह) जारी किया गया था और सबसे महत्वपूर्ण बात, उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट तैयार किया गया था।
उस दिन सुबह जब भारत जागा तो शेयर बाज़ारों में उथल–पुथल मची हुई थी। दिन भर में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर अडानी समूह के शेयरों में 7.2 प्रतिशत से लेकर 22 प्रतिशत तक की गिरावट आई। दुनिया भर से इस पर प्रतिक्रियाएं आईं। तब तक, जो लोग DoJ के 54 पृष्ठ के अभियोग आदेश और SEC के आरोपों को पढ़ चुके थे, वे उन दो दस्तावेज़ों में शामिल विवरणों को देखकर दंग रह गए जिन्हें सार्वजनिक किया गया था। पता चला कि डेढ़ साल से भी ज़्यादा पहले 17 मार्च 2023 को FBI के विशेष एजेंटों ने न्यायिक रूप से अधिकृत तलाशी वारंट के साथ सागर अडानी से पूछताछ की थी और उनके निजी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अपने कब्ज़े में ले लिया था।
उनका दावा है कि इन उपकरणों में अन्य चीज़ों के अलावा उन व्यक्तियों और संगठनों के नामों की सूची मिली है जिन्हें चार भारतीय राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश: तमिलनाडु, ओडिशा, छत्ती
आरोपों की जांच
आरोप क्या थे? अडानी ग्रीन एनर्जी और एज़्योर पावर ने भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया यानी SECI (अमेरिका की SEC नहीं) से सौर ऊर्जा तैयार करने के लिए निविदाएं हासिल की थीं और अनुबंध प्राप्त किए थे। यह मानी गई कि बिजली बहुत महंगी थी और SECI को राज्य बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) से खरीदार नहीं मिल रहे थे। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए रिश्वत देने की ज़रूरत थी कि उत्पादित बिजली वास्तव में बेची जाए। डीओजे (DoJ) ने ये आरोप लगाया।
इस विभाग के अनुसार, उस समय के प्रचलित विनिमय दरों के मुताबिक़ वादे के तहत भारत में “अधिकारियों” को कथित रूप से दी गई या दी जाने वाली रिश्वत की कुल राशि 265 मिलियन डॉलर यानी लगभग 2,029 करोड़ रुपये थी। इस राशि का बड़ा हिस्सा (228 मिलियन डॉलर) कथित तौर पर आंध्र प्रदेश के अधिकारियों को गया, जिसके तत्कालीन मुखिया वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी थे जिनका नाम SEC के दस्तावेजों में छोटे अक्षरों में लिखा है। हालांकि जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) ने किसी भी गलत काम में शामिल होने से इनकार किया है, लेकिन जो दस्तावेज़ में दर्ज है वह यह है कि राज्य सरकार द्वारा बिजली खरीदने के लिए सौदे पर हस्ताक्षर करने से पहले गौतम अडानी ने अगस्त 2021 में जगन रेड्डी से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी और सागर अडानी ने अगले महीने उनसे मुलाकात की थी।
जो दावा किया गया है वह अभूतपूर्व और आश्चर्यजनक है: रिश्वत के रूप में वादा की गई राशि का हिसाब खरीदी गई प्रत्येक मेगावाट (MW) बिजली के आधार पर की गई थी। एक दावा यह है कि इसका दर 25 लाख रुपये प्रति मेगावाट था।
इन चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश का चयन क्यों किया गया? जिस समय कथित तौर पर रिश्वत दी गई या देने का वादा किया गया, उस समय केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की इन चारों राज्यों में से किसी में भी सरकार नहीं थी। हालांकि, पार्टी के सदस्य जम्मू–कश्मीर सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। क्या ऐसा हो सकता है कि भाजपा शासित राज्यों में अधिकारियों को रिश्वत देने की जरूरत नहीं थी? क्या नई दिल्ली की ओर से सिर्फ़ एक मंज़ूरी ही अडानी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए पर्याप्त होगी?
भले ही भाजपा के प्रवक्ता अडानी के मुद्दे का जोरदार समर्थन कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जैसी अपनी एजेंसियों से क्यों नहीं पूछ रही है, जिनका इस्तेमाल वह पहले भी तत्परता से करती रही है। इन एजेंसियों से वह जगन रेड्डी (जो अब भाजपा से जुड़े नहीं हैं), कांग्रेस के भूपेश बघेल, बीजू जनता दल के नवीन पटनायक, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के मौजूदा मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों की जांच क्यों नहीं करवा रही है? जम्मू–कश्मीर के उपराज्यपाल और भाजपा से जुड़े मनोज सिन्हा से जांच की उम्मीद करने के बारे में सोचना शायद बहुत ज्यादा होगा।
जो भी हो, इस समय सबसे बड़ी दुविधा में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू हैं जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अडानी का पक्ष लेने के लिए जगन रेड्डी की सरकार पर खूब हमला बोला था। नायडू के समर्थकों ने इस संबंध में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की थी। आज नायडू के विश्वासपात्र असमंजस में हैं। उनमें से एक (आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री पय्यावुला केशव) ने पहले कहा था कि अडानी के साथ राज्य सरकार का समझौता रद्द किया जा सकता है और फिर जल्दी ही यह कहते हुए पीछे हट गए कि “कानूनी” विकल्पों पर विचार किया जाएगा।
बार–बार यह सवाल पूछा जा रहा है कि ये आरोप अमेरिका में क्यों लगाए गए। इसका कारण यह है: अडानी ग्रीन एनर्जी सहित अडानी समूह की कंपनियों ने वित्तीय साधनों के जरिए धन जुटाया है – इनमें से कुछ के नाम ऐसे हैं जो आम लोगों को अजीब लग सकते हैं, जैसे “ग्रीन बॉन्ड” और “सीनियर सिक्योर्ड नोट्स”– और इन्हें अमेरिका और भारत सहित विभिन्न देशों के निवेशकों ने सब्सक्राइब किया था। इनमें से एक फ्लोटेशन अगस्त–सितंबर2021 में हुआ था, जिसकी राशि 750 मिलियन डॉलर थी जिसमें से 175 मिलियन डॉलर अमेरिकियों के लिए रिज़र्व था। अडानी समूह की संस्थाओं द्वारा 409 मिलियन डॉलर के बॉन्ड का एक अन्य मुद्दा हाल ही में मार्च 2024 में हुआ।
अमेरिका में क़ानून, खास तौर पर 1977 का फॉरेन करप्ट प्रेक्टिस एक्ट (FCPA) कहता है कि रिश्वत या रिश्वत देने की पेशकश किसी भी देश में की गई हो जिससे अमेरिका का कोई नागरिक या संस्था प्रभावित होती है तो इसे अमेरिकी कानून के तहत संज्ञेय अपराध (cognisable offence) माना जाएगा। इस मामले में आरोप यह है कि अडानी ने जानबूझकर अमेरिकी निवेशकों से यह बात छिपाई कि उनके और उनके सहयोगियों की अमेरिकी सरकारी एजेंसियों द्वारा भारतीय अधिकारियों को अनुचित व्यापारिक लाभ के लिए रिश्वत देने के लिए जांच की जा रही है।
दूसरे शब्दों में, वित्तीय साधनों के जारीकर्ताओं द्वारा “मूल्य संवेदनशील” (price sensitive) जानकारी का खुलासा नहीं किया गया था – संयोग से यह इस देश में भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) (लिस्टिंग ऑब्लिगेशन एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स) विनियमन 2015 के
भारत का हरित ऊर्जा क्षेत्र
अमेरिका में की गई जांच को भी अडानी ग्रीन एनर्जी की वार्षिक रिपोर्ट में जगह नहीं मिली, जबकि इस समूह ने दावा किया था कि रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के प्रति उसकी “ज़ीरो टॉलेरेंस” है और वह कॉर्पोरेट प्रशासन के “उच्चतम मानकों” का पालन करता है।
दो वरिष्ठ वकील, भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जिन्होंने पहले अडानी का प्रतिनिधित्व किया है और भाजपा से जुड़े राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी दोनों ने 27 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आरोप “कमजोर”, “निराधार”, “दुर्भावनापूर्ण” और “झूठे” थे। उस दिन की शुरूआत में अडानी ग्रीन एनर्जी ने एनएसई को अपना पहला सार्वजनिक बयान जारी किया था जिसमें मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया गया था कि उस पर एफसीपीए के तहत आरोप लगाए गए थे, जबकि उसने स्वीकार किया था कि डीओजे और एसईसी ने उस पर साजिश, प्रतिभूतियों के लेनदेन में धोखाधड़ी और “वायर धोखाधड़ी” या अमेरिका के भीतर और अमेरिका से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से गलत जानकारी प्रसारित करने के तीन मामलों में आरोप लगाए थे।
पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगीइस बयान के बाद कंपनी के शेयर की कीमतों में उछाल आया। यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारत में शेयर की कीमतें विभिन्न कारकों के आधार पर बढ़ती और घटती हैं, जिसमें विदेशी निवेशकों के साथ–साथ जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक जैसे बड़े संस्थागत निवेशकों के खरीद और बिक्री के फैसले शामिल हैं। पहली हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने से पहले जनवरी 2023 में कंपनी के शेयर की कीमत अपने अधिकतम स्तर से 83 प्रतिशत गिर गई है। इस बीच, अडानी ने 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड की एक नई पेशकश को रद्द कर दिया। देश भर में गैस की आपूर्ति करने वाली अडानी टोटल गैस में 37.4 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली फ्रांस की टोटलएनर्जीज ने कहा कि वह कंपनी में नया निवेश नहीं करेगी। इसका अडानी ग्रीन एनर्जी में 19.7 प्रतिशत शेयर भी हैं।
अंतरराष्ट्रीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधियों ने कई ऑफ–द–रिकॉर्ड बयान दिए हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने कहा है कि अडानी के खिलाफ आरोपों का भारत की अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ाने की योजनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। द इकोनॉमिस्ट ने लिखा कि अमेरिका में अभियोग “भारत के कारोबारी माहौल पर संदेह पैदा करता है जो विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित कर सकता है और अन्य भारतीय कंपनियों की विदेश में धन जुटाने की योजनाओं में बाधा डाल सकता है”। सुशांत सिंह जैसे भारतीय टिप्पणीकारों ने द कारवां में लिखते हुए कहा कि “अडानी प्रकरण भारत को वैश्विक मंच पर रणनीतिक रूप से कमजोर बना देगा”।
ऑस्ट्रेलिया स्थित फाइनेंसर राजीव जैन के नेतृत्व वाली जीक्यूजी पार्टनर्स जिसने पहली हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद समूह की कंपनियों के शेयरों के गिरने पर अडानी की मदद की थी उसने अभियोग को कम करके दिखाने और लोगों को कॉर्पोरेट इकाई से दूर रखने की कोशिश की। दूसरे लोगों ने बताया कि सौर ऊर्जा अडानी समूह के कुल कारोबार का केवल एक छोटा सा हिस्सा है। आलोचकों ने इन तर्कों को बेबुनियाद बताया। संयोग से, जीक्यूजी ने अडानी टोटल गैस में निवेश करने से खुद को दूर रखा है।
भारत में ए. रेवंत रेड्डी की अध्यक्षता वाली तेलंगाना सरकार ने प्रस्तावित शैक्षणिक संस्थान के लिए अडानी से 100 करोड़ रुपये का अनुदान अस्वीकार कर दिया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अडानी की गिरफ्तारी की मांग की है और आश्चर्य जताया है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन गौतम अडानी को नहीं। संसद के शीतकालीन सत्र का पहला सप्ताह बेकार चला गया है। हालांकि,इंडिया ब्लॉक एकजुट नहीं दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सबसे पहले कहा कि संसद को केवल एक मुद्दे यानी अडानी के लिए बर्बाद नहीं कर देना चाहिए।
गौतम अडानी के अलावा उनके भतीजे सागर, जैन और चार अन्य आरोपी कनाडाई पेंशन फंड सीडीपीजी (कैस डे डेपोट एट प्लेसमेंट डु क्यूबेक) से जुड़े हैं या थे जिसने एज़्योर पावर में निवेश किया है और जिसके अधिकारियों ने कथित तौर पर भारतीयों को रिश्वत देने के लिए अडानी के साथ मिलकर साजिश रची थी। ये अधिकारी सिंगापुर में रहने वाले ऑस्ट्रेलियाई–फ्रांसीसी मूल के सिरिल कैबनेस और तीन अन्य व्यक्ति हैं जो भारतीय मूल के हैं वे हैं सौरभ अग्रवाल, रूपेश अग्रवाल और दीपक मल्होत्रा। “द इकोनॉमिक टाइम्स के अरिजीत बर्मन ने रिपोर्ट किया है कि एज्योर से जुड़े दो व्यक्ति, यूके के ऐलन रोस्लिंग और मुरली सुब्रमण्यम—जो पहले भारत में काम कर चुके थे—संभवतः व्हिसलब्लोवर्स थे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली अमेरिकी एजेंसियों को सूचित किया था।”
इसी संस्थान ने यह भी बताया है कि अडानी द्वारा अब तक आंध्र प्रदेश के लिए SECI को एक भी यूनिट (किलोवाट घंटा) बिजली की आपूर्ति नहीं की गई है। ट्रांसमिशन परिसर अभी तक तैयार नहीं हैं और अदानी द्वारा उत्पादित बिजली की अपेक्षाकृत थोड़ी मात्रा को राज्य के डिस्कॉम के साथ सहमत मूल्य से 40 प्रतिशत अधिक क़ीमत पर बिजली एक्सचेंजों के माध्यम से बेचा गया है।
क्या ट्रंप अडानी के बचाव में आएंगे?
अब क्या होगा? क्या वही गौतम अडानी जिन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च के नाथन एंडरसन पर मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी थी, लेकिन लगभग दो साल तक ऐसा नहीं किया, उन्हें अब न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले में ग्रैंड जूरी के सामने पेश होना पड़ेगा? या उनके वकील उनके लिए पेश होंगे? क्या 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के पदभार ग्रहण करने और उनके नॉमिनी द्वारा डीओजे, एसईसी और एफबीआई का नेतृत्व करने के बाद स्थिति बदल जाएगी?
ट्रंप ने कई बार कहा है कि वे “ख़ौफनाक” एफसीपीए के ख़िलाफ़ हैं क्योंकि यह अमेरिकी व्यापारिक हितों के ख़िलाफ़ है। लेकिन क्या वे इस क़ानून को कमज़ोर कर पाएंगे? या इसे पूरी तरह से निरस्त कर पाएंगे? गौतम अडानी ने ट्रंप के फिर से चुने जाने का भरपूर स्वागत किया और सार्वजनिक रूप से वादा किया कि उनका समूह अमेरिका की ऊर्जा परिसरों और बुनियादी ढांचे में 10 बिलियन डॉलर (वर्तमान में 84,000 करोड़ रुपये के बराबर) का निवेश करेगा, जिससे उस देश में 15,000 नए रोज़गार सृजित होंगे। क्या उन्हें इस बात का अंदाजा था कि कुछ सप्ताह बाद उनके साथ क्या होने वाला है?
भारत सरकार ने 29 नवंबर को पहली बार अडानी के अभियोग पर प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “यह निजी फर्मों और व्यक्तियों तथा अमेरिकी न्याय विभाग से जुड़ा एक क़ानूनी मामला है। ऐसे मामलों में स्थापित प्रक्रियाएं और क़ानूनी रास्ते हैं, हमें विश्वास है कि इनका पालन किया जाएगा। भारत सरकार को इस मुद्दे के बारे में पहले से सूचित नहीं किया गया था। हमने इस मामले पर अमेरिकी सरकार से कोई बातचीत भी नहीं की है… किसी विदेशी सरकार द्वारा समन/गिरफ़्तारी वारंट की तामील के लिए किया गया कोई भी अनुरोध आपसी क़ानूनी सहायता का हिस्सा है। ऐसे अनुरोधों की मेरिट के आधार पर जांच की जाती है। हमें इस मामले में अमेरिकी पक्ष से कोई अनुरोध नहीं मिला है। यह एक ऐसा मामला है जो निजी संस्थाओं से जुड़ा है और भारत सरकार, इस समय किसी भी तरह से क़ानूनी रूप से इसका हिस्सा नहीं है।”
भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधियां हैं, लेकिन क्या अडानी को प्रत्यर्पित किया जाएगा? क्या भारत में उनके ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए जा सकते हैं ताकि उन्हें भारत छोड़ने से रोका जा सके? ख़बर है कि सेबी ने कंपनियों के “अंतिम लाभकारी मालिकों” से संबंधित नियमों के कथित उल्लंघन और “प्रमोटर समूह” द्वारा रखे जा सकने वाले शेयरों की सीमा को पार करने की जांच पूरी करने के बाद अडानी समूह की एक इकाई के ख़िलाफ़ कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच का हालिया ट्रैक रिकॉर्ड और उनके ख़िलाफ़ लगाए गए हितों के टकराव के आरोप अडानी समूह के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई करने की बाज़ार नियामक की क्षमता में विश्वास पैदा नहीं करते हैं। न ही यह संभावना है कि अमेरिका में लगाए गए आरोपों के आधार पर, हमारे देश में कानून प्रवर्तन एजेंसियां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988, धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 या प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 जैसे क़ानूनों का इस्तेमाल करके उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगी।
लीफलेट ने अनुराग कटारकी सहित चैंबर ऑफ लिटिगेशन के कानूनी विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि नया ट्रम्प प्रशासन सैद्धांतिक रूप से अभियोजन को स्थगित कर सकता है या जुर्माना अदा करने पर अडानी को कुछ आरोपों से मुक्त करने के लिए याचिका दायर कर सकता है।
व्यक्तिगत तौर पर, 21 नवंबर की सुबह जब मैं और मेरी पत्नी ट्रेन से गुजरात पहुंचे तो मेरी पत्नी ने बेटी को फोन करके गौतम अडानी के ख़िलाफ़ गिरफ्तारी वारंट के बारे में बताया। बात साफ नहीं सुनाई दी और हमारी बेटी को लगा कि मेरे ख़िलाफ़ एक और गिरफ़्तारी वारंट जारी किया गया है, जैसा कि जनवरी 2021 में हुआ था। हमने उसे बताया कि वारंट मेरे ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उस उद्योगपति के ख़िलाफ़ है। जब हम लोगों को यह मामला सुनाते हैं, तो वे मुस्कुराते हैं।
Translated into English by M Obaid.
This article was originally published in English on Frontline. Click here to read.