विलुप्त प्रजातियों की वापसी और डायर वुल्फ: नवाचार या हस्तक्षेप?

यह शुरुआत किसी प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि एक किंवदंती से हुई—दो नाम जो मिथक से उधार लिए गए: रोमुलस और रेमस। लेकिन यह कोई प्राचीन रोमन कथा नहीं है। ये जीव गुर्राते हैं, सांस लेते हैं, और आज की दुनिया में शिकार करते हैं—विज्ञान की सबसे साहसिक महत्वाकांक्षा से जन्मे: विलुप्ति को उलटने की कोशिश।
जैसे ही डायर वुल्फ़ फिर से धरती पर कदम रखते हैं, एक सवाल बाकी सब पर भारी पड़ता है—क्या हमने पृथ्वी को ठीक करने की सीमा पार कर उसके अतीत को फिर से लिखना शुरू कर दिया है? यह केवल आनुवंशिक इंजीनियरिंग नहीं है, यह पारिस्थितिक पुनरुत्थान है। और हर पुनरुत्थान की तरह, यह हमें एक सवाल पूछने को मजबूर करता है: क्या सिर्फ इसलिए कि हम कर सकते हैं, इसका मतलब है कि हमें करना चाहिए?
हाल के हफ्तों में, एक असाधारण वैज्ञानिक उपलब्धि ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है—रोमुलस और रेमस का जन्म, जो दुनिया के पहले विलुप्ति से वापस लाए गए जीव हैं। हालाँकि उनका जन्म 1 अक्टूबर 2024 को हुआ था, परंतु उनकी उपस्थिति का महत्व अब जाकर व्यापक चर्चा का विषय बन गया है।
ये दो नर डायर वुल्फ़ (Aenocyon dirus), एक ऐसी प्रजाति जो प्लीस्टोसीन युग (लगभग 26 लाख से 11,700 वर्ष पूर्व) के दौरान उत्तरी अमेरिका में विचरण करती थी, आनुवंशिक इंजीनियरिंग में एक ऐतिहासिक उपलब्धि का प्रतीक हैं। उनके साथ एक मादा डायर वुल्फ़, खलीसी, भी 30 जनवरी 2025 को जन्मी—जिससे अब यह पुनर्जीवित प्रजाति की पहली ज्ञात त्रयी (तीकड़ी) बन गई है।
छह महीने की उम्र में, रोमुलस और रेमस की लंबाई लगभग 4 फीट (122 सेंटीमीटर) है और वजन लगभग 80 पाउंड (36 किलोग्राम)। उम्मीद है कि वे वयस्क होने पर 6 फीट (183 सेंटीमीटर) लंबे और 150 पाउंड (68 किलोग्राम) वज़नी होंगे। तीन महीने की खलीसी भी इसी विकास पथ पर आगे बढ़ रही है।
डायर वुल्फ एक विशाल प्रागैतिहासिक शिकारी कुत्ता था, जो आधुनिक ग्रे वुल्फ़ (Canis lupus) से अलग था। इसका कपाल (खोपड़ी) कहीं अधिक विशाल, मस्तिष्क छोटा और अंग-प्रत्यंग अपेक्षाकृत हल्के थे। इसके जीवाश्म पूरे उत्तरी अमेरिका में पाए गए हैं, विशेष रूप से ला ब्रेआ टार पिट्स में। यह प्रजाति लगभग 57 लाख साल पहले अस्तित्व में आई थी और ग्रे वुल्फ़ से अलग विकास पथ पर चली—और 10,000 साल से अधिक समय पहले विलुप्त हो गई।
रोमुलस, रेमस और खलीसी का पुनर्जीवन उन्नत आनुवंशिक इंजीनियरिंग के जरिए संभव हो सका, जिसे Colossal नामक बायोटेक्नोलॉजी कंपनी ने अंजाम दिया। वैज्ञानिकों ने 11,500 से लेकर 72,000 साल पुराने जीवाश्मों से निकाले गए प्राचीन डीएनए का इस्तेमाल करके डायर वुल्फ का संपूर्ण जीनोम पुनर्निर्मित किया। फिर सटीक जेनेटिक संपादन द्वारा उन्होंने इस प्रजाति को डायर वुल्फ जैसे गुणों वाले हाइब्रिड जीवों के रूप में पुनर्जीवित किया।
हालांकि, ओटागो विश्वविद्यालय के डॉ. निक रॉलेंस ने बीबीसी से कहा कि यह प्राचीन डीएनए क्लोनिंग के लिए बहुत अधिक क्षतिग्रस्त था—उन्होंने इसकी तुलना 500 डिग्री के ओवन में पड़े डीएनए से की, जो टुकड़ों में टूट चुका था और अनुपयोगी हो गया था। इसलिए वैज्ञानिकों ने सिंथेटिक बायोलॉजी का सहारा लिया। उन्होंने प्रमुख आनुवंशिक संकेतकों की पहचान कर ग्रे वुल्फ के डीएनए को संपादित किया, जिससे डायर वुल्फ की विशेषताएं—जैसे बड़ी खोपड़ी और सफेद फर—फिर से उभर आईं।
Colossal Biosciences की डॉ. बेथ शापिरो ने बताया कि हालांकि डायर वुल्फ और ग्रे वुल्फ के बीच 2.5 से 6 मिलियन साल पहले विभाजन हुआ था और वे अलग वंश (genus) से संबंध रखते हैं, फिर भी 14 जीन में 20 विशेष संपादन करके डायर वुल्फ की मूलभूत विशेषताओं को फिर से बनाया गया। इन संपादनों के परिणामस्वरूप जो जीव पैदा हुए, उन्हें कार्यात्मक रूप से पुनर्जीवित डायर वुल्फ माना जा सकता है।
Colossal कंपनी “कार्यात्मक पुनर्जीवन” (Functional De-Extinction) को इस प्रकार परिभाषित करती है:
“ऐसे जीव का निर्माण करना, जो न केवल किसी विलुप्त प्रजाति से दिखने और अनुवांशिक रूप से मेल खाने वाला हो, बल्कि उस प्रजाति के मुख्य जीन के खोए हुए वंश को पुनर्जीवित करे; उसमें प्राकृतिक प्रतिरोध क्षमताएँ जोड़े; और उसकी अनुकूलनशीलता को बढ़ाए ताकि वह आज के पर्यावरणीय संकटों—जैसे जलवायु परिवर्तन, सीमित संसाधन, रोग और मानवीय हस्तक्षेप—के बीच भी जीवित रह सके।”
शुद्ध वैज्ञानिक जिज्ञासा से आगे बढ़कर, विलुप्ति पुनर्जीवन को “गहन पारिस्थितिक समृद्धि” (Deep Ecological Enrichment) के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है—यानी उन पारिस्थितिकीय कार्यों की बहाली, जो प्रजातियों के विलुप्त होने से खो गए थे। Colossal का मानना है कि यदि इन प्रजातियों को उपयुक्त आवासों में दोबारा बसाया जाए, तो यह जैव विविधता को बढ़ावा देने और पारिस्थितिकीय तंत्र की सहनशीलता को मजबूत करने में मदद कर सकता है।
इसका एक प्रमुख उदाहरण है उनका ऊन वाला मैमथ प्रोजेक्ट—जिसमें एशियाई हाथियों में मैमथ के गुणों को शामिल किया जा रहा है, ताकि आर्कटिक टुंड्रा को पुनर्जीवित किया जा सके।
इन मैमथ जैसे जीवों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे घने जंगलों को रौंदकर कार्बन-शोषक घासों को उजागर करेंगे, जमी हुई मिट्टी को हिलाएंगे, और टुंड्रा के पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करेंगे। इस प्रकार की गतिविधियाँ कार्बन अवशोषण (carbon sequestration) को बेहतर बनाकर और ग्रीनहाउस गैसों को घटाकर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकती हैं।
लेकिन, इस साहसी वैज्ञानिक प्रयास के साथ गंभीर नैतिक और पारिस्थितिक प्रश्न भी उठते हैं। आखिरकार, विलुप्ति विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है—प्रजातियाँ लाखों वर्षों से उभरती और मिटती रही हैं। तो क्या विज्ञान को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहिए?
और इससे भी बड़ा सवाल:
क्या यह ज़रूरी है कि हम विलुप्त प्रजातियों को वापस लाएँ, जब आज हज़ारों जीवित प्रजातियाँ खुद विलुप्ति के कगार पर हैं?

हालाँकि विलुप्ति पुनर्जीवन (De-Extinction) अनेक संभावनाएँ लेकर आता है, लेकिन इसके साथ एक बड़ा खतरा भी जुड़ा है—कि कहीं यह प्रक्रिया वास्तविक संरक्षण प्रयासों से ध्यान और संसाधन न भटका दे। आज हजारों मौजूदा प्रजातियाँ आवास विनाश, जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के कारण संकट में हैं।
क्या हमारी प्राथमिकता अतीत को वापस लाने की बजाय वर्तमान जैव विविधता की रक्षा और संरक्षण नहीं होनी चाहिए?
आख़िरकार, वैज्ञानिक नवाचार और पारिस्थितिकीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है।
विलुप्त प्रजातियों की वापसी हमें पर्यावरण पुनर्स्थापना और जलवायु अनुकूलन के लिए नए उपकरण जरूर दे सकती है,
लेकिन यह हमारे जीवित पर्यावरण की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता को पीछे नहीं छोड़नी चाहिए।
सारा मैसी का यह लेख मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था और इसे यहां पढ़ा जा सकता है।