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‘गोट लाइफ’ : मानव अस्तित्व की भयावह त्रासदी का एक वृत्तांतa

  • April 12, 2024
  • 1 min read
‘गोट लाइफ’ : मानव अस्तित्व की भयावह त्रासदी का एक वृत्तांतa

बेन्यामिन के मशहूर उपन्यास आदुजीविथम (गोट लाइफ) में नायक नजीब अपने जीवन के बुरे दौर को याद करते हुए कहता है, “अब जब मैं वह सब याद करता हूँ, तो मुझे चौथे दर्जे का फिल्मी दृश्य याद आ जाता है, जिसे देखकर उबकाई आती है। कभी-कभी हमारा जीवन सिनेमा से भी अधिक बेतुका लगता है, है ना?” एक एकालाप (मोनोलॉग) जो व्यंग्य में डूबा हुआ है। इस उपन्यास पर आधारित ब्लेसी-पृथ्वीराज फिल्म की रिलीज के कुछ दिनों बाद दर्शकों ने इसकी क्लासिक संरचना और इसकी अंतरराष्ट्रीय अपील पर टिप्पणी करना शुरू कर दिया। यह एकालाप (मोनोलॉग) हमारे अंदर कौन से विचार,अनुभव और यादें जागृत करेगा ?

 

फिल्म के कलात्मक महत्त्व का आलोचनात्मक मूल्यांकन उपन्यास की इस टिप्पणी में ढूंढा जा सकता है। यह एकालाप ( मोनोलॉग ) उपन्यास में तब आता है जब नजीब जेल में बंद होता है। उसे याद आता है कि कैसे विदेश जाते समय वह अपनी गर्भवती पत्नी से विदा लेते समय अपने अजन्मे बच्चे से कहता है कि वह उसे वापिस आने के बाद ही देख पाएगा । कई पाठक जो साहित्य को गंभीरता से लेते हैं, वे उपन्यास ‘ गोट लाइफ ‘ को केवल एक औसत लेखन के रूप में देखते हैं। हालांकि यह मलयालम का एक बेस्टसेलर उपन्यास बन गया और अब केरल के साहित्यिक इतिहास का एक हिस्सा है। वास्तव में, नैरेटर का जीवन, जिसे उसने स्वयं चौथे दर्जे के फिल्म दृश्य के रूप में देखा था, अब एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म है जिसकी मलयालम सिनेमा के इतिहास में कोई बराबरी नहीं है।

गोट लाइफ, उपन्यास की कथा में न कोई चौंकाने वाले प्रयोग थे, न कोई अभूतपूर्व दार्शनिक पहलू थे और न ही भाषा की विशिष्टता थी। फिर भी, उपन्यास की पाठक संख्या ने अभूतपूर्व रिकॉर्ड बनाया। दरअसल, उपन्यास में नजीब के जीवन को पूरी ईमानदारी से पेश किया गया, जिसने इसकी सफलता सुनिश्चित की। ‘गोट लाइफ ‘ गहन जीवनी के भावनात्मक उतार -चढ़ाव की कथा है जिसने इसे साहित्यिक कार्यों के सीमित पाठक वर्ग को लाँघने में मदद की। जब ब्लेसी ने उपन्यास गोट लाइफ को सिनेमाई रूप में तैयार किया, तो अंततः इसने उन्हें अपनी निर्देशन की कला को बेहतर बनाने में मदद की।

फिल्म की रिलीज के दिन, मैंने थोड़े उत्साह के साथ सुबह का शो देखा और उस दिन एक फेसबुक नोट लिखा – ‘बेन्यामिन का उपन्यास ‘ आदुजीविथम ‘ नजीब के वास्तविक जीवन पर आधारित है, जिसकी गहन पीड़ा इस कहानी को जन्म देती है। इसी कहानी पर आधारित अभिनेता पृथ्वीराज की ब्लेसी निर्देशित फिल्म का आज पहला शो था। बकरियों का बकरियों जैसा जीवन जीना स्वाभाविक है। लेकिन गरिमा के बिना मानव जीवन – गुलामी का जीवन – वास्तव में गोट लाइफ की सबसे काली और कठोर वास्तविकता है। कहा जा सकता है कि निर्देशक और अभिनेता – ब्लेसी और पृथ्वीराज – इस फिल्म के माध्यम से मानवीय अनुभव, क्रूरता, त्रासदी, असहायता, दुख और आतंक की चरम अनुभूति को रिकॉर्ड कर रहे हैं। पृथ्वीराज द्वारा अभिनीत पात्र नजीब हमारी आंखों में अनजाने में आंसू लाता है क्योंकि यह हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन कितना ‘ सुखद ‘ है। यह किसी कला कृति की सर्वोच्च उपलब्धि है। इसी तरह, फिल्म के कुछ दृश्यों में बकरियों और ऊंटों की कोमलता ने मुझे अवाक कर दिया। तो मुझे बस यही कहना है कि आदुजीविथम हमारे सिनेमा के इतिहास में अद्वितीय है।”

कुछ महत्वपूर्ण कारणों की वजह से गोट लाइफ की तुलना अन्य फिल्मों से करना आसान नहीं लगता। यह सच है कि साहित्य में अपना अलग नाम कमाने वाली कलाकृति के फिल्म रूपांतरण ने मलयाली लोगों के बीच ज़ोरदार बहस छेड़ दी है। ब्लेसी, नजीब के वास्तविक जीवन की कहानी और उपन्यास के रूप में कथा की तकनीक के साथ न्याय करते हुए हमें आश्वस्त करते हैं कि सिनेमा मूल रूप से एक दृश्य कला है।

फिल्म के शीर्षक फ्रेम में नजीब थका हुआ, अंधेरे में, अपनी बकरियों के लिए रखे गए टैंक से पानी पीते हुए दिखाई देता है। फिल्म एक ऐसे फ्रेम के साथ शुरू होती है जहां हम आदमी और बकरी के चेहरों के बीच अंतर करने के लिए संघर्ष करते हैं। निःसंदेह, हम ब्लेसी की गोट लाइफ को एक अद्वितीय कलकृति के रूप में अपनी पहचान स्थापित करते हुए देखते हैं। ब्लेसी ने एक ओर नजीब की जन्मभूमि में ‘जलीय जीवन ‘ और दूसरी ओर रेतीले रेगिस्तान को सरलता से चित्रित किया है । वातानुकूलित सिनेमा हॉल में भी हम रेगिस्तानी भूमि की गर्मी और सूखी हवा का अनुभव करते हैं।

नजीब के रूप में पृथ्वीराज

रेगिस्तानी पारिस्थिति की सारी प्रणलियां, साँपों के साथ-साथ वहाँ के अन्य जीव, रेगिस्तान में छिपे अनेक खतरे और रेगिस्तान के हरित क्षेत्र सब नजीब की यात्रा में उसके साथ जुड़ गए हैं। रेगिस्तान की अविश्वसनीय छिपी हुई दुनिया, जो खालीपन, अस्तित्व के लिए संघर्ष और कई रूपों में गहन आध्यात्मिकता का प्रतीक है, को पहले ही ‘रोड टू मक्का’ जैसी कलकृतियों में चित्रित किया जा चुका है। फिर भी, गोट लाइफ में उल्लेखनीय रूप से भिन्न भावनात्मक क्षेत्र और उसके संघर्ष प्रकट होते हैं। फिल्म में इन अभिव्यक्तियों के बहुत सारे उदाहरण हैं। एक ध्यान आकर्षित करने वाला दृश्य , जिसमें प्यासा हकीम पीने का पानी न ढूंढ पाने के कारण रेत उगलता है और खून की उल्टी करता है, दर्शकों के मन – मस्तिष्क में लंबे समय तक छाया रहेगा । एक तरह से यह हमारे द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और उनकी बर्बादी पर सुनाया गया फैसला है।

 

गोट लाइफ से लेकर वैश्विक ‘सर्वाइवल सिनेमा’ गैलरी तक

सर्वाइवल पर ‘गोट लाइफ ‘ से पहले बनी कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्में जैसे कि सोसाइटी ऑफ द स्नो, द रेवेनेंट, द इम्पॉसिबल, 127 ऑवर्स, अलाइव, एवरेस्ट और कास्ट अवे हमारे दिमाग़ में आती हैं । ऐसी फिल्मों के पात्र दर्शकों को उनकी शांत जीवन परिस्थितियों से दूर ऐसी दुनिया में ले जाते हैं जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच बहुत कम दूरी रह जाती है । यह भी सच है कि सर्वाइवल फिल्में आम तौर पर दर्शकों को पसंद आती हैं, भले ही उन्हें देखने का अनुभव कितना भी कष्टदायक क्यों न हो। इसका मुख्य कारण वह सहानुभूति होती है जो दर्शक फिल्मों में दर्शाई गई चुनौतीपूर्ण स्थितियों और गंभीर आपदाओं को देखते समय महसूस करते हैं। बहादुरी, सहनशक्ति और बड़ी बाधाओं से लड़ने की उस पात्र की क्षमता का चित्रण दर्शकों को बांधे रखता है। यह जानने के बाद कि कहानी किसी मनुष्य के वास्तविक जीवन के अनुभव पर आधारित है, चित्रित पात्रों के प्रति दर्शकों की संवेदनाएं बढ़ जाती हैं।

सर्वाइवल फ़िल्म ‘द रेवेनेंट ‘ भी ‘ गोट लाइफ ‘ की तरह वास्तविक जीवन की कहानी पर आधारित है। इसी तरह, ‘कास्ट अवे’ इस शैली की एक और यादगार फिल्म है। यहां, हम अभिनेता टॉम हैंक्स द्वारा निभाए गए किरदार को एक हवाई जहाज दुर्घटना के बाद भारी बाधाओं का सामना करके एक निर्जन द्वीप में जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हुए देखते हैं । इस फिल्म में हैंक्स का प्रदर्शन वास्तविकता के बहुत करीब है। गोट लाइफ में पृथ्वीराज भी उतने ही समर्पित, और अच्छा प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। फिल्म में नजीब बनने के लिए उन्होंने 36 किलो वजन कम किया, यह तथ्य उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रमाण है। कई मायनों में, नजीब के चित्रण को पृथ्वीराज का “नया अवतार” कहा जा सकता है जो उनके अभिनय करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा ।

कास्ट अवे में टॉम हैंक्स

हैंक्स ने चक नोलैंड की भूमिका निभाई है, जो एक सिस्टम विश्लेषक है और दुनिया भर में यात्रा करता है। जब विमान दक्षिण प्रशांत में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तो वह एक निर्जन द्वीप पर अकेला फंस जाता है और हर स्थिति में जीवित रहने के लिए संघर्ष करता है। ऐसे में फिल्म दर्शकों को एक भावनात्मक यात्रा पर ले जाती है और नायक के प्रति सहानुभूति पैदा करती है। यह भी कहा जा सकता है कि हैंक्स ने पूरी फिल्म को लगभग अकेले ही संभाला है। यह फिल्म इस बात का बेहतरीन उदाहरण बन जाती है कि सब कुछ खो जाने के बाद भी कोई कैसे और किस हद तक मजबूत बना रह सकता है। इसी तरह की भावना हमारे मन में तब आती है जब हम गोट लाइफ में इब्राहिम कादरी के शब्दों को सुनते हैं जहां वह सुरक्षित भाग निकलने की यात्रा के दौरान नजीब से कहता है कि “हमें तब तक चलना चाहिए जब तक हम मर न जाएं”।

(बाएं से) एआर रहमान, ब्लेसी और रसूल पुकुट्टी

तकनीकी पक्ष पर, एआर रहमान और रसूल पुकुट्टी फिल्म के अनुभव को गहन बनाते हैं। रहमान का गाना, ‘पेरियोन रहमाने’ एक प्रार्थना और विलाप की तरह लगता है। वहीं ब्लेसी नजीब के विश्वास-आधारित अस्तित्व के प्रयास को पृष्ठभूमि में कायम रखते हैं । इसके माध्यम से निर्देशक नजीब की आंतरिक शक्ति को भी व्यक्त करते हैं, जो उसकी आध्यात्मिकता में निहित है। इसी तरह रसूल पुक्कुट्टी का ध्वनि मिश्रण भी उल्लेखनीय है। इब्राहिम कादिरी की भूमिका निभाने वाले जिमी जेनलॉइस की उपस्थिति निश्चित रूप से अविस्मरणीय है। हकीम का किरदार निभाने वाले केआर गोकुल को भी यह फिल्म नए मौके देने से नहीं चूकेगी।अमला पॉल, जो नजीब की पत्नी ज़ैनू की भूमिका निभाती हैं, उनकी नियति को सुरक्षित करती है और हमें नजीब के “जलीय जीवन” की याद दिलाती हैं। सिनेमैटोग्राफर सुनील केएस ने गोट लाइफ के दृष्यों में निर्देशक ब्लेसी के दिल की भाषा को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। उस दृश्य में जहां गिद्ध नजीब पर हमला करते हैं और साथ ही उस दृश्य में जहां अरबाब के शादी में जाने पर नजीब जश्न मनाते हुए दिखाई देता है, ब्लेसी के निर्देशन की सजगता और कौशल उजागर होते हैं । रेगिस्तानी रेतीले तूफ़ान की निरंतर और भयावह उपस्थिति, अपनी भयानक आवाज़ों के साथ, एक निर्देशक के रूप में ब्लेसी के कौशल की गवाही देती है।

 

जलीय जीवन और रेगिस्तानी जीवन के बीच

उपन्यास के विपरीत, हम फिल्म में हामिद को अरबाब द्वारा सुजेसी जेल से वापस ले जाते हुए नहीं देखते हैं। दूसरी ओर, ब्लेसी, हकीम की मृत्यु और इब्राहिम कादिरी के अप्रत्याशित गायब होने का गहनता से चित्रण करते हैं । यह घटना नजीब को अथाह, चिंतनीय अकेलेपन का एक समानांतर रेगिस्तानी जीवन भी प्रदान करती है। उपन्यास में नजीब के एकाकी जीवन का चित्रण तब रेखांकित होता है जब वह बकरियों को अपने घर और अपने गाँव के प्रियजनों के नाम देना शुरू कर देता है। लेकिन फिल्म में ब्लेसी ने इसे एक काले मेमने के रोने के माध्यम से चित्रित किया है, जो नजीब की मदद करना चाहता है, साथ ही एक ऊंट की कोमल आंखों के माध्यम से, जो नजीब को देखता है। इन दो सूक्ष्म संदर्भों के माध्यम से, निर्देशक हमें शब्दों से परे नजीब के अस्तित्व के हृदय-विदारक अनुभव से परिचित कराते हैं।

बेनयामीन और नजीब

ब्लेसी की फ़िल्में एक प्रकार की सूक्ष्म मानवीय भावनाओं की प्रयोगशाला हैं। गोट लाइफ इसका एक और ज्वलंत उदाहरण है। उपन्यास के विपरीत, फिल्म धार्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं करती है या उस परिप्रेक्ष्य से स्थिति की कल्पना नहीं करती है।

गोट लाइफ के सभी पात्र इंसान के अच्छे और बुरे के प्रतिरूप में मौजूद हैं। ऐसे में ये समझना भी मुश्किल है कि फिल्म को खाड़ी देशों में क्यों और कैसे प्रतिबंधित किया गया। फिल्म गोट लाइफ में नजीब का मालिक या अरबाब उसका असली प्रायोजक नहीं है। इस फिल्म की दिशा अप्रत्यक्ष रूप से इस तथ्य से नियंत्रित और निर्धारित होती है कि एक धोखेबाज अरब कैसे दो मलयाली युवाओं, जिन्हें भाषा का कोई ज्ञान नहीं है, को धोखा देता है और उनका शोषण करता है । फिल्म के अविस्मरणीय अंतिम दृश्य में नजीब इस एहसास के साथ रोने लगता है कि वह किसी और के लिए नियत जीवन जी रहा था।इसका तात्पर्य यह बिल्कुल भी नहीं कि सभी प्रायोजक धोखेबाज़ हैं। दरअसल खाड़ी क्षेत्र कई प्रवासियों के लिए रोजगार का स्थान है। नजीब के अरबाब अरब के ठीक विपरीत, एक दयालु अरब भी है जो उसे सड़क से उठाकर कार में शहर ले जाता है…!

जॉर्डन में गोट लाइफ के कलाकार और कर्मी दल

फिल्म ‘गोट लाइफ’ ब्लेसी की पिछली फिल्म “काली मन्नू” के बाद उनके 16 साल के लंबे संघर्ष और रचनात्मकता के विकास को उजागर करती है। कई मायनों में, गोट लाइफ केवल नजीब की जीवित रहने की कहानी का चित्रण नहीं है। यह फिल्म निर्माता ब्लेसी के कलात्मक अस्तित्व का भी प्रतीक है। क्योंकि गोट लाइफ में हम जो देखते हैं वह निश्चित रूप से एक सपने को पूरा करने की दिशा में बिना थके और बिना हार माने ब्लेसी की अपनी यात्रा का पूरा होना है।

About Author

रघुनाथन परली

लेखक, फ़िल्म समीक्षक और अनुवादक