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अलविदा, प्रोफेसर इम्तियाज अहमद!

  • June 20, 2023
  • 1 min read
अलविदा, प्रोफेसर इम्तियाज अहमद!
प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक प्रोफेसर इम्तियाज अहमद का सोमवार, 19 जून 2023 को निधन हो गया। उन्होंने राजनीतिक अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में 1972 से 2002 तक पढ़ाया।
एक राजनीतिक समाजशास्त्री के रूप में, वह भारत में मुसलमानो के बीच जाति पर अपने काम के लिए सबसे प्रसिद्ध थे। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में ‘ भारत में मुसलमानो के बीच जाति और सामाजिक स्तरीकरण ‘ (1973) पुस्तक है, जिसका उन्होंने संपादन किया।
निश्चित रूप से मुझसे अधिक योग्य लोग प्रो. इम्तियाज अहमद के लिए मृत्युलेख लिखेंगे और उनके काम का विश्लेषण करेंगे । बहरहाल, मैं एक आयोजन की सुखद स्मृति साझा करना चाहता हूं जिसमें उन्होंने शानदार प्रतिक्रिया दी थी।
‌प्रो. इम्तियाज अहमद के सेवानिवृत्त होने के वर्षों बाद मैं एक छात्र के रूप में जेएनयू में शामिल हुआ; फिर भी मुझे विश्वविद्यालय की जनसभाओं में उनके द्वारा दिए गए कुछ भाषणों को सुनने का सौभाग्य मिला।
विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा छात्रावास के मैस हॉल में आयोजित रात्रि भोज जनसभाएं,जेएनयू में जीवन की नियमित और आकर्षक विशेषता हुआ करती थी।
जेएनयू में जनसभाओं की मेरी पसंदीदा यादों में से एक जनसभा वह थी जिसमे प्रो इम्तियाज अहमद मुख्य नायक थे।
सच्चर समिति ने भारत में मुसलमानों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसके बाद हुई चर्चाओं के मद्देनजर यह जनसभा आयोजित की गई थी।
 कार्यक्रम का आयोजन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) द्वारा किया गया था; आयोजन स्थल जेएनयू में कावेरी हॉस्टल का मेस हॉल था। तीन वक्ता थे: प्रभात पटनायक,इम्तियाज अहमद, और एक और वक्ता जिनका नाम मुझे याद नहीं है।
इम्तियाज अहमद
भारत में मुस्लिमों की पिछड़ी राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर चर्चा करते हुए प्रभात पटनायक ने शानदार भाषण दिया । विभाजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ भारत में मुसलमानों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण भारत में रहने वाले अनेक समृद्ध मुसलमानो ने पाकिस्तान (पश्चिम और पूर्व) प्रस्थान किया। इम्तियाज अहमद ने देश में मुसलमानों की स्थिति पर एक प्रबुद्ध भाषण दिया। उन्होंने जो भी बातें कही, उनमें उन्होंने भारत में मुसलमानो में जातिगत भेदभाव की व्यापकता का उल्लेख किया।
जैसे ही तीनों वक्ताओं ने अपना भाषण समाप्त किया और प्रश्नों के लिए मंच खोल दिया गया, भगदड़ मच गई।
 कुछ ऐसा हुआ जो पहले (या बाद में, आज तक) नहीं हुआ – एक वक्ता दूसरे वक्ता से प्रश्न पूछने के लिए खड़ा हुआ। तीसरे वक्ता (जिसका नाम मुझे याद नहीं है) ने इम्तियाज अहमद के तर्कों को चुनौती देते हुए इसकी शुरुआत की।
कार्यक्रम में आए कई छात्रों ने सवाल पूछे। उनका मुख्य तर्क था: इस्लाम में कोई जाति नहीं है; इसलिए जातिगत भेदभाव करना संभव नहीं है । यह एक वक्ता पर किया जाने वाला सबसे जोरदार हमला था (बिल्कुल शारीरिक नहीं), जैसा मैंने कभी किसी जनसभा में नहीं देखा था। एक बार सभी प्रश्न पूछे जाने के बाद, वक्ताओं ने एक-एक करके अपने उत्तर देना शुरू किया। इम्तियाज अहमद जवाब देने वाले आखिरी व्यक्ति थे। वह लगभग मायूस दिखे, जवाब देने में अनिच्छुक, मानो वह अपने खिलाफ निर्देशित सवालों और टिप्पणियों की बाढ़ से हिल गए हों। प्रभात पटनायक मुस्कुराए और इम्तियाज अहमद को उकसाया, उनसे उठने का आग्रह किया।
और फिर प्रो. इम्तियाज अहमद उठे, शानदार प्रतिक्रिया देने के लिए। उन्होंने एक के बाद एक प्रश्नों को लिया। उन्होंने कहा कि इस्लाम में कोई जाति नहीं है, सच है, लेकिन जाति व्यवस्था मौजूद है। इसके बाद उन्होंने भारत में कुछ मुस्लिम जातियों के नाम दिए जिन्हें मुसलमानों के बीच “उच्च” जातियों द्वारा अछूत माना जाता है। उन्होंने भारत के कुछ हिस्सों में मुसलमानों के बीच प्रचलित प्रथाओं के बारे में भी बात की- उदाहरण के लिए, प्रमुख त्योहारों के दौरान उच्च वर्ग के मुसलमान पूरे समुदाय के लिए दावत देते, लेकिन “निम्न” जाति के मुसलमानों को सड़क के दूसरी ओर भोजन दिया जाता और उन्हें मेज़बान के घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती।
प्रो इम्तियाज अहमद की प्रतिक्रिया, सुस्पष्ट और लंबे वर्षों के अनुभव पर आधारित थी-गहन शोध और अनुभव इतना शक्तिशाली था कि इसने उन लोगों के रवैये को नरम कर दिया जो कुछ देर पहले उन पर जानलेवा हमला करने को तैयार थे। उन्होंने यह भी कहा कि शास्त्रों को सामाजिक ग्रंथों के रूप में माना जाना चाहिए जो निश्चित ऐतिहासिक संदर्भ में रचे गए और जिनकी आलोचना की जा सकती है। इससे एक और हंगामा खड़ा हो गया। शास्त्र ईश्वर की देन हैं | कुछ ने तर्क दिया। लेकिन मैं एक सामाजिक वैज्ञानिक हूं, और मेरे लिए शास्त्र सामाजिक ग्रंथ हैं, उन्होंने जोर दिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि, प्रो. इम्तियाज अहमद के लिए, मुस्लिम प्रतिक्रियावादी वर्गों के बीच नफरत थी और हिंदुत्व के बिसाती लोगों में भी।
जनसभा औपचारिक रूप से समाप्त होने के बाद भी चर्चा जारी रही। लोगों ने उन्हें घेर लिया और उनके साथ उसकी कार तक गए, सवालों और जवाबों के साथ ।
ये वो दौर था जब हमने जनसभाओं में भाषण रिकॉर्ड करना शुरू नहीं किया था, लाइव स्ट्रीमिंग तो भूल ही जाइए-इतने सारे शानदार भाषण और सवालों और जवाबों के सत्र इसलिए दर्ज नहीं हुए। मुझे नहीं लगता कि किसी के पास उस रात कावेरी मेस हाल के शानदार भाषणों, सवालों और जवाबों की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी है ।इसलिए मै घटना की अपनी यादें रिकॉर्ड करना चाहता था, विशेष रूप से इम्तियाज अहमद की शानदार प्रतिक्रिया, कम से कम इस रूप में।
अलविदा, महोदय! आप बहुत याद आओगे। लोग आपके जीवन और कार्यों से सीखना और प्रेरणा प्राप्त करना जारी रखेंगे।
About Author

सुबिन डेनिस

सुबिन डेनिस, ट्राईकॉन्टिनेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्री हैं।