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बाबा रामदेव और सहयोगियों द्वारा पतंजलि के फंड और निवेश को रोकने के लिए कर-मुक्त धर्मार्थ संस्थाओं के इस्तेमाल पर सवाल।

  • May 27, 2024
  • 1 min read
बाबा रामदेव और सहयोगियों द्वारा पतंजलि के फंड और निवेश को रोकने के लिए कर-मुक्त धर्मार्थ संस्थाओं के इस्तेमाल पर सवाल।

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक जांच में पाया गया है कि बाबा रामदेव और उनके सहयोगी पैसा और निवेश रोकने के लिए एक कर-मुक्त धर्मार्थ संगठन चलाते हैं। इसमें उपभोक्ता सामान बनाने वाली दिवालिया कंपनी रुचि सोया भी शामिल है, जिसका पतंजलि ने अधिग्रहण किया था।


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2016 में पतंजलि समूह से जुड़े लोगों ने योग और आयुर्वेद केंद्रों की स्थापना और प्रचार के लिए योगक्षेम संस्थान नामक एक गैर-लाभकारी धर्मार्थ संस्था की स्थापना की, जिससे इसे कर-मुक्त दर्जा मिला। हालांकि गैर-लाभकारी संस्था ने छह साल तक एक रुपये का भी दान नहीं किया। जांच के दौरान प्राप्त कंपनी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि इसका इस्तेमाल केवल करोड़ों रुपये के निवेश को रोकने के लिए किया गया, जिसमें रामदेव के करीबी सहयोगियों द्वारा रुचि सोया में किए गए निवेश भी शामिल हैं।

धर्मार्थ संगठनों को करों का भुगतान किए बिना लाभ कमाने के साधन के रूप में उपयोग करने से रोकने के लिए व्यावसायिक निवेश और वाणिज्यिक गतिविधियों के माध्यम से आय अर्जित करने वाले गैर-लाभकारी संस्थाओं पर कर कानून के अंतर्गत प्रतिबंध है। अतीत में कर अधिकारियों द्वारा कई गैर-लाभकारी संस्थाओं की जांच की गई है और छोटे-मोटे अपराधों के लिए उनपर मुकदमा चलाया गया। अपना घोषित धर्मार्थ कार्य न करके निवेश स्थानांतरित करने के बावजूद रामदेव की धर्मार्थ कंपनी जांच से बची रही।

पतंजलि समूह ने दावा किया था कि अरावली वनभूमि की जमीन आयुर्वेदिक दवाओं और उत्पादों के निर्माण के लिए कारखाने स्थापित करने के लिए प्रयुक्त की जाएगी। लेकिन हमारे द्वारा की गईं जाँच पड़ताल में पाया गया कि उन्होंने कई संदिग्ध और शून्य-राजस्व वाली कंपनियां बनाई, जो बड़ी चतुराई से अत्यधिक लाभ कमाने के लिए इस संवेदनशील वन भूमि में व्यापार करती थीं।

रुचि सोया के एफपीओ लॉन्च के दौरान मंच पर बाबा रामदेव

ऐसी संस्थाएं जो अपना निर्धारित कार्य नहीं करती हैं उनको स्थापित करने का उद्देश्य निश्चित रूप से स्वामित्व की सच्चाई को छिपाना है। जब पैसा एक इकाई से दूसरी इकाई में जाता है तो अस्पष्टता की परतें जुड़ जाती हैं और संभावित रूप से ऐसी संस्थाएं करों को कम करने के अवसर प्रदान करती हैं। अकाउंटेंट इसे ‘कर नियोजन’ कहते हैं। 

हालांकि योगक्षेम संस्थान ने रुचि सोया (जो अब पतंजलि फूड्स है) में किए गए निवेश से प्राप्त भारी आय पर कर चुकाया, लेकिन जिन शर्तों के आधार पर उसे कर छूट दी गई थी, उन्हें पूरा न करने के बावजूद कंपनी ने अपना कर-मुक्त दर्जा नहीं खोया।

हमने आचार्य बालकृष्ण और योगक्षेम संस्थान को प्रश्न भेजकर गैर-लाभकारी कंपनी के किसी भी प्रकार के दान करने में विफलता और केवल निवेश रोकने के पीछे के कारणों को बताने की मांग की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार को इंगित करके, भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान सत्तारूढ़ व्यवस्था का पक्ष लेकर और कई मौकों पर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाकर रामदेव ने सत्ता से निकटता बनाई। उन्होंने खुद को सदाचारी उपभोक्तावाद के दूत के रूप में ब्रांड किया। अपने व्यापारिक साम्राज्य को राष्ट्र की सेवा और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से लड़ने के लिए समर्पित देशभक्ति के गढ़ के रूप में चित्रित किया। लेकिन द कलेक्टिव द्वारा देखे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि रामदेव और उनके सहयोगी अपने मुनाफे को अधिकतम करने के लिए अकाउंटेंट और वकीलों की टीमों का उपयोग करके अक्सर व्यापारियों जैसी रणनीति अपनाते हुए परेशानियों से बच जाते हैं।

योगक्षेम संस्थान में निवेश करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक आचार्य बालकृष्ण हैं, जो रामदेव के दाहिने हाथ हैं और जिनके पास पतंजलि बिजनेस समूह का नियंत्रण है।

बालकृष्ण ने 2016 में एक पत्रकार को दिए साक्षात्कार में कहा, ” लोगों की सेवा करने के लिए हमें धन की आवश्यकता है। ” उसी वर्ष, पतंजलि समूह से जुड़े चार लोगों – आचार्य प्रद्युम्न, फूल चंद्र, सुमन देवी और सविता आर्य – ने योगक्षेम संस्थान की स्थापना की। गैर-लाभकारी संस्था की प्रारंभिक पूंजी चार लाख रुपये थी।

फूल चन्द्र को अब स्वामी परमार्थदेव के नाम से जाना जाता है। और भले ही वह प्रत्यक्ष तौर पर एक और आध्यात्मिक नेता बन गया है, वर्षों से वह एक निर्माण कंपनी प्लेज़ेंट विहार प्राइवेट लिमिटेड और पतंजलि नेचुरल बिस्कुट प्राइवेट लिमिटेड सहित एक दर्जन से अधिक लाभकारी कंपनियों में निदेशक हैं।

फूल चन्द्र को अब परमार्थदेव के नाम से जाना जाता है

सुमन देवी अब साध्वी देवप्रिया हैं। इस नाम के तहत, वह रामदेव साम्राज्य की एक अन्य फर्म, वैदिक ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड में निदेशक हैं।

रामदेव और उनके सहयोगियों द्वारा लाभ कमाने के लिए चलाई जाने वाली अधिकांश अन्य कंपनियों के विपरीत, इस कंपनी को औपचारिक रूप से एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था। इसके निगमन रिकॉर्ड कहते हैं कि कंपनी का प्राथमिक उद्देश्य योग केंद्र, कौशल विकास के लिए शैक्षणिक संस्थान और समाज के वंचित वर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवा केंद्र स्थापित करना और उन्हें बढ़ावा देना है। उन्होंने कहा कि कंपनी “बच्चों और युवाओं में प्रतिभा का पोषण करेगी, जिससे उनमें अच्छे नागरिक और सक्षम नेतृत्व की गुणवत्ता पैदा होगी”। इसके उद्देश्यों में समान उद्देश्यों वाले अन्य संगठनों को सहायता और दान देना भी शामिल है। तो, क्या इस गैर-लाभकारी संस्था ने समाज में इतने दान कार्य किए कि उसे कर में छूट दी जाए ?

कंपनी के गठन के बाद से उसके वित्तीय रिकॉर्ड की समीक्षा से पता चलता है कि कंपनी ने कभी भी वंचित लोगों के लिए कोई योग या स्वास्थ्य केंद्र या शैक्षणिक संस्थान स्थापित नहीं किए। अपने अस्तित्व के दूसरे वर्ष से ही योगक्षेम रामदेव के सहयोगियों के संदिग्ध निवेश करने की चाल का हिस्सा बन गया। सरकार को सौंपे गए योगक्षेम के रिकॉर्ड में कहा गया है कि 5 जनवरी, 2018को इसे बालकृष्ण, दिवंगत स्वामी मुक्तानंद (रामदेव के दूसरे करीबी लेफ्टिनेंट) और पतंजलि समूह से जुड़ी छह अन्य कंपनियों से एक मूल धनराशि दान में मिली।

यह धनराशि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (PAL) के 2.065 करोड़ शेयरों के रूप में थी, जिनकी कीमत 79.8 करोड़ रुपये थी। इनमें से दो करोड़ शेयर अकेले बालकृष्ण द्वारा उपहार में दिए गए थे, जिनके पास पतंजलि आयुर्वेद का 98.54% स्वामित्व था। जो अपने संचालन के एक दशक में वित्तीय वर्ष 2018 में 8,136 करोड़ रुपये की बिक्री के साथ एक आर्थिक महाशक्ति बन गया।

जनवरी 2018 में, योगक्षेम को कॉर्पस दान के रूप में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के 2 करोड़ से अधिक शेयर प्राप्त हुए। [स्रोत: योगक्षेम संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड]
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पतंजलि आयुर्वेद के शेयर दान किए जाने के बाद, योगक्षेम के 100% शेयर रामदेव और उनके सहयोगियों द्वारा स्थापित एक अन्य इकाई पतंजलि सेवा ट्रस्ट को दे दिए गए। रामदेव अपने नाम पर एक शेयर के साथ योगक्षेम संस्थान के नामांकित शेयरधारक बन गए। इसलिए, पतंजलि आयुर्वेद के शेयर उपहार में देने के 24 घंटे के भीतर, बालकृष्ण ने रामदेव और मुक्तानंद के साथ योगक्षेम का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।

गैर-लाभकारी कंपनी के मूल मालिकों से उनके शेयर छीन लिए गए, हालांकि वे अगले कुछ महीनों तक कागजों पर निदेशक बने रहे। सार्वजनिक रूप से, रामदेव ने लोगों और राष्ट्र की सेवा के प्रयास के रूप में इस रणनीतिक निवेश को बेच दिया।

पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड में शेयरों के दान के बाद, रामदेव और उनके सहयोगियों ने योगक्षेम संस्थान का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। [स्रोत: योगक्षेम संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड]
लेन-देन के उसी पखवाड़े की एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है, “योग गुरु से व्यवसायी बने बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को एक “गैर-लाभकारी” इकाई में बदल दिया जाएगा क्योंकि वह अपने व्यवसायों से होने वाली कमाई को दान में देना चाहती है।” रिपोर्ट में रामदेव के हवाले से कहा गया है, ”हम पतंजलि को स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध नहीं करेंगे। हम पतंजलि को लोगों के दिलों में स्थापित करेंगे। हम पतंजलि को एक गैर-लाभकारी संगठन में बदल रहे हैं।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पतंजलि सेवा ट्रस्ट सभी पतंजलि समूह की कंपनियों के लिए नियंत्रक इकाई होगी।
रामदेव के दावे सच हो सकते थे यदि योगक्षेम संस्थान स्वयं कोई धर्मार्थ कार्य करता जो इसने नहीं किया। बालकृष्ण और रामदेव के अन्य सहयोगियों ने पतंजलि आयुर्वेद में अपने शेयर निवेश करने के लिए गैर-लाभकारी कंपनी का इस्तेमाल किया, जबकि वे लगातार लाभ कमाने वाली पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रभावी प्रमुख मालिक बने रहे, जिससे व्यवसाय से होने वाली आय को दान में बदलने के रामदेव के दावे में बाधा उत्पन्न हुई।

योगक्षेम संस्थान ने योग को बढ़ावा देने के लिए एक साल तक कोई कदम नहीं उठाया, और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा उसे दिए गए दो करोड़ शेयरों पर कब्ज़ा किए रहा। दिलचस्प बात यह है कि दो वित्तीय वर्षों, 2017-18 और 2018-19 के लिए, योगक्षेम ने अपने अकाउंट बुक में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के शेयरों के दान को दर्शाया। लेकिन पतंजलि आयुर्वेद के वित्तीय रिकॉर्ड में बालकृष्ण को इसके 98.54% शेयरों का मालिक दिखाया जाता रहा। तकनीकी रूप से, यह असंगत है कि एक ही शेयर दो संस्थाओं के पास हैं। उन्हें अंततः उस असंगति का जवाब देना पड़ा जो दो वित्तीय वर्षों तक अस्पष्ट रही।

उत्तर को बैलेंस शीट में छोटे-छोटे अक्षरों में छिपा दिया गया था, जिनमें से अधिकांश चकरा देने वाली तकनीकी बातें थीं। इसमें जो कहा गया उसका सार यह था कि ये शेयर, जो योगक्षेम को दान किए गए थे, बालकृष्ण ने ऋण लेने के लिए बैंकों के पास गिरवी भी रखे थे। अब बैंक अपनी संपार्श्विक राशि योगक्षेम संस्थान को सौंपे जाने से बहुत खुश नहीं थे, एक ऐसी इकाई जिसके साथ उनका कोई संबंध नहीं था। इसलिए वित्त वर्ष 2020-21में शेयर हस्तांतरण को उलटना पड़ा।

ऋणदाता बैंक पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के शेयरों के कॉर्पस दान पर सहमत नहीं हुए। 2020-21 वित्तीय वर्ष में इसे उलट दिया गया। [स्रोत: योगक्षेम संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड]
जब तक योगक्षेम ने इस जटिल निवेश को रोकने के प्रयास को पूरा किया, तब तक दिसंबर 2019 में रामदेव के पतंजलि के नेतृत्व वाले समूह ने विवादास्पद रूप से रुचि सोया का अधिग्रहण कर लिया, जो सोया चंक्स के न्यूट्रेला ब्रांड के लिए प्रसिद्ध है। रुचि सोया कर्जदाताओं के 12,000 करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज के कारण दिवालिया हो गई थी। दिवालिया कानून के तहत बैंकरों के पास दो विकल्प थे – कर्ज का कुछ हिस्सा वापस पाने के लिए खरीदार ढूंढ़ना या कंपनी को टुकड़े-टुकड़े करके बेच देना। रामदेव ने मौके का फायदा उठाते हुए अदानी ग्रुप (जो आखिरी समय में नीलामी से हट गया) को पछाड़ते हुए रुचि सोया को खरीद लिया। इसे खरीदने के लिए एसबीआई और यूनियन बैंक जैसे बैंकों ने पतंजलि समूह को पैसे उधार दिए। दिसंबर 2019 में पतंजलि की 4350करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी मिल गई और जून 2022 में रुचि सोया पतंजलि फूड्स बन गई।

योगक्षेम ने रुचि सोया में रामदेव और उनके सहयोगियों के निवेश को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।

बाबा रामदेव पतंजलि के एफएमसीजी उत्पाद पेश करते हुए

वित्त वर्ष 2020-21 में, पतंजलि आयुर्वेद के शेयरों को उलटने के बाद योगक्षेम का मूल्य 79 करोड़ रुपये कम हो गया। उसी वर्ष, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, जो रामदेव का एक और गैर-लाभकारी संगठन है, जो रुचि सोया का अधिग्रहण करने वाले पतंजलि समूह का हिस्सा था, ने योगक्षेम को रुचि सोया के 42 करोड़ रुपये के 6 करोड़ शेयर उपहार में दिए। इसके साथ ही योगक्षेम अब रुचि सोया का 20.28% मालिक बन गया।

निवेश को योगक्षेम में रोका गया था लेकिन दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट पतंजलि सेवा ट्रस्ट से 60% से अधिक शेयर लेकर गैर-लाभकारी संस्था के बड़े भाग का मालिक बन गया। लाभ कमाने वाली फर्म में शेयरों की इस तरह की घुमावदार पकड़ अक्सर यह छिपाने में मदद करती है कि किसी कंपनी का वास्तविक नियंत्रण किसके पास है और कौन वास्तव में किए गए मुनाफे से लाभ प्राप्त कर रहा है। 

योगक्षेम संस्थान का स्वामित्व लगभग हर वर्ष बदलता रहा। वित्त वर्ष 2020-21 में दिव्य योग मंदिर को कंपनी में 60% हिस्सेदारी मिलने के एक साल बाद, उसने इसे दूसरे पतंजलि ट्रस्ट, पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दिया। बदले में, इस ट्रस्ट ने अगले वित्तीय वर्ष में अपनी हिस्सेदारी एक अन्य गैर-लाभकारी कंपनी पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क्स प्राइवेट लिमिटेड को दे दी।

रुचि सोया के शेयर योगक्षेम संस्थान को दान करने के बाद, दिव्य योग मंदिर धर्मार्थ कंपनी में 60% का मालिक बन गया। [स्रोत: योगक्षेम संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड]हमने आचार्य बालकृष्ण और योगक्षेम संस्थान को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी, जिसमें गैर-लाभकारी कंपनी के दान करने में विफलता, केवल निवेश रोके जाने और स्वामित्व में बार-बार बदलाव के कारणों की तलाश की गई। हमने पतंजलि आयुर्वेद, पतंजलि फूड्स और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से योगक्षेम संस्थान को शेयरों के दान और गैर-लाभकारी संस्था के स्वामित्व में बदलाव के बारे में भी सवाल पूछे। बाबा रामदेव के प्रवक्ता और आस्था टीवी के राष्ट्रीय प्रमुख एसके तिजारावाला की भी सभी मेल पर यह प्रश्नावली भेजी गई।

हमने तिजारावाला से फोन पर बात की और जैसा कि उन्होंने कहा था, उन्हें व्हाट्सएप पर प्रश्न भी भेजे। हमें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
एक धर्मार्थ इकाई के रूप में, योगक्षेम संस्थान को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर छूट प्राप्त है। यदि कंपनी अपनी आय का कम से कम 85% अपने धर्मार्थ कार्यों में उपयोग करती है तो उसे कोई कर देने की आवश्यकता नहीं है। यदि ऐसी कर-मुक्त गैर-लाभकारी संस्थाओं को किसी कंपनी में कुछ शेयर मिलते हैं, तो गैर-लाभकारी संस्थाओं को अगले वित्तीय वर्ष के ख़त्म होने से पहले इस पैसे को कर कानून द्वारा निर्दिष्ट उपकरणों में जमा करना होगा।

योगक्षेम, जिसने योग को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया, ने वित्त वर्ष 2022-23 में रुचि सोया के शेयरों पर 30 करोड़ रुपये का लाभांश अर्जित किया। इस वित्तीय वर्ष में, इसने अज्ञात संस्थाओं को दान पर 19.43 करोड़ रुपये खर्च किए, जो रुचि सोया के शेयरों के माध्यम से अपनी आय का 60% से थोड़ा अधिक है। नतीजतन, उसे इस लाभांश आय पर 10.48 करोड़ रुपये का आयकर देना पड़ा। लेकिन, इससे योगक्षेम संस्थान का उपयोग नहीं बदला। कंपनी यह दावा करती रही है कि वह एक धर्मार्थ संगठन है। सरकार इसे कर-मुक्त दर्जा देना जारी रखती है। नवीनतम वित्तीय आंकड़ों के अनुसार, रुचि सोया (अब पतंजलि फूड्स) में इसकी 16.52% हिस्सेदारी बनी रही। 

रामदेव का व्यापारिक साम्राज्य लगातार फल-फूल रहा है। योगक्षेम संस्थान जैसी उनकी कम चर्चित और संदिग्ध कंपनियां अभी भी रहस्य बनी हुई हैं।


यह प्रति मूल रूप से रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित की गई थी और इसे यहां पढ़ा जा सकता है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव समान विचारधारा वाले पत्रकारों का एक समूह है जो प्रभावशाली लोगों को जवाबदेह बनाए रखने वाली रिपोर्ताज पर ध्यान केंद्रित करता है।

The AIDEM ने अपने संसाधनों का उपयोग करके लेख का अनुवाद किया है और मूल अंग्रेजी लेख की तुलना में किसी भी विसंगति या त्रुटि के लिए जिम्मेदार है।

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तपस्या

तपस्या एक पत्रकार हैं जो नीति और संसाधन प्रशासन के बारे में लिखती हैं। वह बड़ी राजनीतिक संरचनाओं के संदर्भ में स्थानीय और गंभीर क्षेत्रीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने में रुचि रखती हैं। वह विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर पर ध्यान केंद्रित करती हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली (2018-19) की पूर्व छात्रा, तपस्या ने पहले द डिप्लोमैट, स्टोरीज़एशिया और द थर्ड पोल के लिए लिखा है। तपस्या को अपने खाली समय में कविता लिखना और फिल्में देखना पसंद है।