उस्ताद राशिद खान: शानदार ज़िन्दगी
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प्रख्यात हिंदुस्तानी (उत्तर भारतीय शास्त्रीय) गायक, उस्ताद राशिद खान का कल केवल 55 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे. बीमारी की जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु कैंसर के उस खतरे की एक बार फिर याद दिलाती है जो हम सभी पर मंडरा रहा है।
दरअसल, कैंसर, जैसा कि डॉ. सिद्धार्थ मुखर्जी कहते हैं, ‘सभी बीमारियों का सरताज’ है। हमें पर्याप्त जानकारी नहीं हैं कि इसे कैसे रोका जाए, और हममें से कोई भी किसी भी समय इसकी चपेट में आ सकता है।शायद ऐसी बीमारियां हमें विनम्र बनाए रखने के लिए जरुरी हैं। क्योंकि, जीवन में मृत्यु ही एकमात्र निश्चितता है. कोई नहीं बता सकता कि उसे कब जाना होगा।
हिंदी फिल्म “आनंद” का एक अमर संवाद है, “बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है। जहांपनाह! उसे ना तो आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है। कब, कौन, कैसे उठेगा, यह कोई नहीं बता सकता है!
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कैंसर जिस आकस्मिक ढंग से लोगों को अपनी चपेट में ले लेता है, उससे बेहतर उक्त कथन की सच्चाई को कोई और नहीं दर्शाता है। लेकिन उसी फिल्म की एक और पंक्ति भी अमर है: “जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं।”और इस पैमाने के अनुसार, राशिद खान निश्चित रूप से शानदार जीवन जिए , भले ही उनकी आयु लंबी नहीं रही।
उस्ताद से मेरा पहला परिचय 1993 में हुआ था, जब मैंने इंडिया आर्काइव म्यूजिक लेबल पर राग यमन की उनकी रिकॉर्डिंग सुनी थी। वह उस समय केवल 24 वर्ष के थे, और तब तक उस्ताद नहीं बने थे, और रिकॉर्डिंग कुछ साल पहले 1991 में जारी की गई थी। मैं उनकी तैयारी से अभिभूत हो गया था। भले ही मैंने वर्षों से वह रिकॉर्डिंग नहीं सुनी है, लेकिन मैं उसे कभी नहीं भूल सकता, खासकर वह ‘द्रुत ख्याल ‘ , जो मेरे दिमाग में बस गया है – “आओ आओ आओ बलमा।” प्रस्तुति की तैयारी अद्भुत थी।
उस्ताद राशिद खान हिंदुस्तानी गायन के रामपुर-सहसवान घराने के अग्रणी गायक थे, उन्होंने अपने चाचा उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान और अपने बड़े चाचा, घराने के खलीफा (प्रमुख) उस्ताद निसार हुसैन खान, से संगीत सीखा था। इस तरह की संगीतमय विरासत और अपनी जन्मजात अविश्वसनीय प्रतिभा के साथ, राशिद खान जल्द ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के समकालीन अग्रणी गायकों में से एक बन गए।
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हिंदुस्तानी गायन के अग्रणी , यकीनन हमारे समय के सबसे महान गायक, दिवंगत पंडित भीमसेन जोशी ने राशिद खान की एक प्रस्तुति को सुनने के बाद कहा था कि हिंदुस्तानी संगीत का भविष्य राशिद खान के हाथों में सुरक्षित है। भीमसेन जोशी के इस कथन ने राशिद खान को अवश्य हीं प्रेरित किया होगा। यदि हम राग मुल्तानी में प्रसिद्ध द्रुत ख्याल की उनकी शानदार प्रस्तुति सुने , “नैनन में आन बान, कौनसी परी रे,” और उसकी तुलना महान भीमसेन की निश्चित प्रस्तुति से करें तो पाएंगे कि यह एक शानदार प्रस्तुति है. इसी वजह से राशिद खान को अभी तक के सबसे महान गायक के रूप में याद किया जाएगा।
राशिद खान ने न केवल हिंदुस्तानी गायन के संजीदा प्रदर्शन में, जिसे ख्याल के रूप में जाना जाता है, बल्कि सुगम शास्त्रीय रूप में भी जिसे ठुमरी के नाम से जाना जाता है उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। राशिद खान की कोई प्रस्तुति हम सुन लेते हैं, तो उसे कभी नहीं भूलते। ऐसी ही एक ठुमरी थी राग किरवानी में जो मैंने दशकों पहले सुनी थी, लेकिन आज भी याद है, “तोरे बिना नहीं चैन, बृज के नंदलाला।” “पैयां पढ़ूं, बिनती करूं, डार गले माला” पंक्ति के भाव जानने के लिए उसको सुनना होगा।
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दुख की बात है कि उस्ताद चले गए, लेकिन वह अपने पीछे अपने बेटे अरमान राशिद खान को छोड़ गए, जो खुद एक अच्छे युवा संगीतकार हैं। मुझे हाल ही में उन्हें सुनने का अवसर मिला, जब मैं राग पूरिया धनाश्री की प्रस्तुति की तैयारी कर रहा था। उनके पिता द्वारा गाए गए गीत को सुनने के बाद,उसी गीत की अरमान राशिद खान द्वारा गाई “पायलिया झंकार” की एक बेहतरीन प्रस्तुति सुनी। राशिद खान के संगीत की परंपरा निश्चित रूप से कायम रहेगी.
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