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2022 में ,कानूनी और राजनीतिक पर्यवेशक , न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों के विद्वान न्यायधीशों के द्वारा की गई विचित्र घोषणाओं के साक्षी बने। एकसाथ देखें तो ये सारे बयान यह दर्शाते हैं कि न्यायधीश न केवल मूलभूत सामाजिक समझ और संवेदनशीलता से दूर जा रहे थे बल्कि आधिकारिक अचातसंहिता , कानून और तर्कशक्ति जैसे बुनियादी मापदंडों से भी दूर हो रहे थे। कानून की व्याख्या करते समय उन्होंने अपनी व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों को व्यक्त करते हुए कई वादविवादो को उत्पन्न किया।
ऐडम दिल्ली ब्यूरो के द्वारा ऐसे कुछ उदाहरणों की सूची दी गई है:
23 नवंबर,2022: पटना न्यायालय की एक लाइव स्ट्रीम ने न्यायपालिका में जातिवाद किस हद तक फैला है, उसे उजागर किया है। वीडियो में ज़िला भू – अर्जन अधिकारी ,अरविंद कुमार भारती से पूछताछ के दौरान न्यायधीश को आरक्षण का मज़ाक उड़ाते दिखाया गया है।पार्टी को हलफनामा दाखिल करने के लिए थोड़ा समय देने के लिए मामले को स्थगित करते हुए,न्यायधीश संदीप कुमार को यह कहते सुना गया , ” भारती जी, आरक्षण के आधार पर नौकरी में आए थे क्या ?” भारती जी के इस बात को स्वीकार करने पर अदालत के एक वकील ने कहा ” अब तो हजूर समझिएगा बात ।”हंसी की बौछारों के बीच भारती और उसकी जाति को निशाना बनाते हुए न्यायधीश और वकील को और भी कई टिपन्नियां करते देखा गया।
अगस्त 12, 2022: भारतीय दण्ड कोड की धारा 354 ए ( यौन उत्पीडन ) के तहत जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान कोजीकोड़ जिला सत्र न्यायधीश एस कृष्ण कुमार ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था। लेखक और सामाजिक कार्यकर्त्ता
सिविक चंद्रा को यौन उत्पीड़न मामले में अग्रिम जमानत देते समय न्यायधीश ने कहा ,” धारा 354 ए को लागू करने के लिए , अप्रिय और स्पष्ट रूप से शारीरिक संपर्क शामिल होना चाहिए। यौन की मांग या अनुरोध होना चाहिए। यौन रंजित टिपण्णी होनी चाहिए।अर्जी में अभियुक्तों द्वारा दी गई तस्वीरों से यह पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने यौन उत्तेजक कपड़े पहन रखे हैं ।प्रथम दृष्टया अभियुक्त के खिलाफ धारा 354 ए लागू नहीं होगा। “
अगस्त 11, 2022: विज्ञान ,तकनीकी,गणित और व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के कार्यक्रम में ,दिल्ली के उच्च न्यायालय के न्यायधीश प्रतिभा एम. सिंह ने भारतीय महिलाओं को।’धन्य’ बताया क्योंकि मनुस्मृति जैसे शास्त्र उन्हें ‘बहुत सम्मानजनक जनक दर्जा ‘ देते हैं ।महिला अधिकार समूहों ने इन विचारों की कड़ी आलोचना की । भारतीय महिलाओं के राष्ट्रीय संघ ने एक बयान में कहा : जस्टिस सिंह महिलाओं की दयनीय स्थिति के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ लगते हैं।सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं ,पूरी दुनिया भर में ,खास तौर पर ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित समुदायों की महिलाओं की स्थिति से।
जून 17, 2022: कर्नाटक के उच्च न्यायालय के न्यायधीश ने एक जमानती आदेश में कहा कि ,” एक महिला का बलात्कार के बाद सो जाना शोभा नहीं देता।” जस्टिस कृष्ण दीक्षित , 42 वर्षीय एच आर मैनेजर के बलात्कार से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहे थे।फरियादी ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि वह इस जुर्म को सहने के बाद थक गई थी। न्यायधीश ने फरियादी के इस तर्क को भारतीय महिला के लिए अशोभनीय बताया। न्यायधीश ने कहा,
“हमारी महिलाएं जब बलात्कार का शिकार होती है तब उनकी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं होती। हालांकि ,अदालत में शोरगुल के बाद ,न्यायधीश अपने विवादित विचारों पर चुप हो गए।
25 मई, 2022: कर्नाटका के उच्च न्यायालय ने प्रेम पीड़ित युवाओं से विनम्र निवेदन किया कि वे अपने जीवन साथी को चुनते समय अपने माता – पिता के विश्वास के साथ – साथ उनकी सहमति भी लें।अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतना पड़ सकता है। ” यह बात तब कही गई जब एक महिला के प्रेमी के साथ भागकर शादी करने की वजह से उसके पिता ने उसके खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण यानि कि हैबियस कॉर्पस की याचिका प्रस्तुत की। इसकी सुनवाई करते समय कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,” बच्चों के लिए यह जानना जरूरी है कि जीवन प्रतिक्रिया, प्रतिध्वनि और प्रतिबिंब से बना है।वे अपने माता – पिता से आज जैसा व्यवहार कर रहे हैं बिलकुल वैसा ही भविष्य में उन्हें अनुभव करना पड़ेगा।मनुस्मृति का उदाहरण देते हुए अदालत ने अपने आदेश में कहा, ” यहां तक कि मनुस्मृति के अनुसार कोई भी व्यक्ति जीवन के 100 साल में भी अपने माता- पिता के द्वारा उन्हें जन्म देने से लेकर उनका पालन पोषण करके उन्हें बड़ा आदमी बनाने तक जो भी परेशानियां उन्होंने उठाई है उनका ऋण नहीं चुका सकता। इसलिए हमेशा वही करने की कोशिश करे जिससे आपके माता – पिता और शिक्षक प्रसन्न हों क्योंकि तभी आपको आपके द्वारा की गई कोई भी धार्मिक पूजा से कुछ फल प्राप्त होगा।
11 मई, 2022: दिल्ली हाईकोर्ट के वैवाहिक बलात्कार के मामले में अलग – अलग फैसले सुनने को मिले। एक न्यायधीश ने कहा कि ” पति – पत्नी के बीच होने वाला यौन …. पवित्र है ” ।एक अन्य न्यायधीश ने कहा कि यौन की उम्मीद उचित है और शादी का एक निष्ठुर पहलू है।” दूसरे न्यायधीश ने कहा कि ,” अपनी सहमति को वापिस लेने का अधिकार एक महिला की स्वतंत्रता और उसके जीने के अधिकार का मूल रूप है।” हालांकि बेंच ने कहा कि यह मामला ” कानून पर पर्याप्त प्रश्न उठाता है और इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की आवश्यकता है।” आई पी सी 375 की धारा के तहत ,एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है, के साथ किए यौन कृत्य को बलात्कार नहीं माना जा सकता।
26 मार्च, 2022: दिल्ली दंगो के दौरान “घृणित भाषण ” के कारण ,केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के खिलाफ अपराधिक कार्यवाही की सुनवाई करते समय , दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा,” यदि आप मुस्कान के साथ कुछ कह रहे हैं , तो उसमें अपराधिक मामला नहीं बनता। अगर आप कुछ आपत्तिजनक कह रहे हैं तो निश्चित रूप से अपराध का मामला बनता है।आपको जांच करनी होगी और संतुलन बिठाना होगा।नहीं तो मुझे लगता है कि चुनाव के दौरान सभी राजनेताओं के खिलाफ हजारों एफ आई आर दर्ज की जा सकती हैं।” इस मामले में सी ए ए के विरोध में किए गए आंदोलन और दिल्ली दंगो के दौरान दो भाजपा नेताओं के भाषण शामिल थे।ठाकुर ने कहा था ,” देश के गद्दारों को ,गोली मारो सालों को।”एक रैली में भाषण के दौरान प्रवेश वर्मा ने कहा था ,” लाखों विरोधकर्ता जो सी ए ए विरोधी आंदोलन के दौरान दिल्ली के शाहिनबाग में जमा हुए हैं वे उनके घरों में घुसकर उनकी बहनों और बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे और उन्हें मार देंगे।”
फरवरी 2022: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम ( पास्को) के तहत “यौन उत्पीड़न क्यों होता है” विषय से संबंधित कई विवादास्पद बयान देने की की वजह से बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायधीश पुष्पा गणेदीवाला ने इस्तीफ़ा दे दिया। उन्हें अतिरिक्त न्यायधीश के रूप में कार्यकाल के विस्तार से इंकार कर दिया गया और उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायधीश के रूप में नियुक्त किया गया। जनवरी और फरवरी 2021 में दिए गए ढेर सारे निर्णयों में जज ने कानून की ऐसी व्याख्या की कि एक नाबालिग के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में यौन करने के इरादे से दोनों का स्किन टू स्किन संपर्क होना जरूरी है। एक छोटी लड़की का हाथ पकड़ना और मर्द का पैंट की ज़िप खोलना ” यौन आक्रमण” अधिनियम के तहत दी गई परिभाषा में नहीं आते हैं।