धरती पर नर्क

जून 2025 तक गाज़ा भूख और तबाही का सुनसान इलाका बन चुका है, जहाँ लोग भुखमरी और बेघर होने के अंतहीन दुःस्वप्न में फंसे हैं। इज़राइल ने योजनाबद्ध तरीके से गाज़ा के खेतों, बाग़ों और जलस्रोतों को नष्ट कर उसकी कृषि रीढ़ तोड़ दी है, जिससे गाज़ा की आत्मनिर्भर खाद्य व्यवस्था समाप्त हो गई और 22 लाख फिलिस्तीनी मानव-निर्मित अकाल की चपेट में आ गए हैं। यह आपदा दशकों से जारी योजनाबद्ध आर्थिक बर्बादी का परिणाम है, जो अब प्रलयकारी रूप ले चुकी है और हालिया हमलों ने इस पीड़ा को और बढ़ा दिया है।

गाज़ा की कृषि जीवनरेखा का विनाश
2025 के हाई-रेजोल्यूशन सैटेलाइट डेटा से एक भयावह तस्वीर सामने आती है: सितंबर 2024 तक, गाज़ा की 64–70% पेड़ वाली फसल भूमि (5,305–5,795 हेक्टेयर) और 58% ग्रीनहाउस (7,219 यूनिट) नष्ट या क्षतिग्रस्त हो चुके थे। अप्रैल 2025 तक, FAO और UNOSAT की रिपोर्ट में बताया गया कि गाज़ा की 80% से अधिक कृषि भूमि (15,053 में से 12,537 हेक्टेयर) पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है और केवल 4.6% ज़मीन ही अब भी खेती योग्य है। लगभग 70% कृषि कुएं, 96% मवेशी और 99% मुर्गियाँ नष्ट हो चुकी हैं, जिससे स्थानीय खाद्य उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया है।
यह सिर्फ़ युद्ध का असर नहीं है — यह जानबूझकर की गई कार्रवाई है। सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में इज़राइली सैनिक धुएँ के ग्रेनेड से ग्रीनहाउस जलाते और जलाने वाले हथियारों से फसलें राख करते दिखते हैं — ये सब गाज़ा को भूखा मारने की रणनीति का हिस्सा है। ये तरीके गाज़ा की कृषि, खासकर उसकी साइट्रस इंडस्ट्री को निशाना बनाने की लंबे समय से चली आ रही नीति की याद दिलाते हैं, ताकि फिलिस्तीनी आत्मनिर्भरता को कुचला जा सके।
गाज़ा के साइट्रस विरासत का गला घोंटना
1960 के दशक में गाज़ा के संतरे और नींबू के बाग़ उसकी कृषि का आधार थे — वे उसकी 30% कृषि भूमि पर फैले थे और एक-तिहाई से ज़्यादा मज़दूरों को रोज़गार देते थे। खासकर प्रसिद्ध ‘जाफ़ा संतरा’ यूरोप और मध्य पूर्व में निर्यात होता था, और साइट्रस उद्योग गाज़ा की GDP में 45% योगदान देता था। गाज़ा का बंदरगाह कारोबार से गुलज़ार था और साइट्रस फिलिस्तीनी गौरव का प्रतीक था।
1967 में इज़राइल के कब्ज़े के बाद, यह उद्योग निशाना बना। इज़राइल ने गाज़ा के साइट्रस निर्यात को अपने बंदरगाहों (जैसे अशदूद) से भेजवाया, जहाँ “सुरक्षा जांच” के नाम पर हफ्तों की देरी होती थी। संतरे धूप में सड़ते थे, बिक नहीं पाते थे और किसान कर्ज में डूब जाते थे। इज़राइल ने मिस्र के साथ व्यापार के रास्ते बंद कर दिए और युद्ध से क्षतिग्रस्त गाज़ा के बंदरगाह की मरम्मत से भी इनकार कर दिया, जिससे सीधे बाज़ार तक पहुँच खत्म हो गई।

1980 के दशक तक, इज़राइल ने किसानों पर अजीब नियम थोपे — जैसे टमाटर की डंठल हटाना या साइट्रस को छोटे डिब्बों में फिर से पैक करना — जिससे चेकपोस्ट पर देरी के दौरान फसलें खराब हो जाती थीं। साथ ही, इज़राइल ने अपने किसानों को सब्सिडी दी, सस्ते फलों से बाज़ार भर दिए और गाज़ा के उत्पादकों को नुकसान पहुँचाया।
1967 से 1990 के बीच गाज़ा के साइट्रस निर्यात में 60% से अधिक की गिरावट आई और बाग़ 8,000 हेक्टेयर से घटकर 3,000 हेक्टेयर से भी कम रह गए। आज ज़्यादातर बाग़ या तो बुलडोज़र से मिटा दिए गए हैं या बमबारी में तबाह हो चुके हैं — इनका नुकसान एक सांस्कृतिक और आर्थिक ज़ख्म है।
पानी को हथियार बनाना
गाज़ा के पानी पर इज़राइल का नियंत्रण उसकी कृषि तबाही को और बढ़ा रहा है। 1967 से, इज़राइल ने गाज़ा का भूजल अपनी बस्तियों की ओर मोड़ दिया, जिससे फिलिस्तीनियों की कुएँ और सिंचाई तक पहुँच सीमित हो गई। अत्यधिक दोहन और प्रतिबंधों के कारण जलस्तर में खारापन आ गया, और 2025 तक गाज़ा का 95% पानी न खेती के लायक रहा न पीने के। मौजूदा संघर्ष में गाज़ा के 70% कृषि कुएँ नष्ट हो गए, जिससे किसान सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं और बचे हुए खेत भी बेकार हो गए हैं।

हालिया रिपोर्टें दिखाती हैं कि इज़राइल ने गाज़ा के जल ढांचे को जानबूझकर निशाना बनाया है। 18 मार्च 2025 को संघर्षविराम टूटने के बाद, इज़राइल की नाकाबंदी ने डीसैलिनेशन प्लांट्स और वॉटर पंप्स के लिए ईंधन की आपूर्ति रोक दी, जिससे 90% घरों में पानी की भारी कमी हो गई। 23 मार्च को, इज़राइली बलों ने रफ़ा में पांच एंबुलेंस और एक संयुक्त राष्ट्र वाहन सहित मानवीय सहायता वाहनों पर हमला कर दिया, जिससे 15 राहतकर्मियों की मौत हो गई और पानी और भोजन का वितरण और बाधित हो गया।
भुखमरी झेलती आबादी
गाज़ा के 22 लाख लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। इनमें 50% से अधिक लोग IPC चरण 4 (आपातकालीन) की स्थिति में हैं, जो बहुत कम भोजन पर किसी तरह ज़िंदा हैं, जबकि 25% IPC चरण 5 (आपदा) में हैं, जहाँ उनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर गाज़ा में तुरंत अकाल की चेतावनी दी है, जहाँ सहायता पूरी तरह रोकी जा रही है। 90% से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं — जैसे पाँच वर्षीय ओसामा अल-रक़ाब की दुर्बल तस्वीरें दुनिया की अंतरात्मा को झकझोर रही हैं।
यह दशकों से जारी वंचना का ही परिणाम है। मौजूदा युद्ध से पहले भी गाज़ा के 71.5% परिवार खाद्य असुरक्षित थे — इसकी वजह थी इज़राइल की नाकाबंदी। 2008 में ही इज़राइली अधिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे गाज़ा की अर्थव्यवस्था को “बर्बादी की कगार” पर बनाए रखना चाहते थे — और अब यह नीति गाज़ा को उस कगार से धक्का दे चुकी है।
हाल की घटनाओं ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है। 18 मार्च से इज़राइल की बढ़ी हुई बमबारी और नाकाबंदी के कारण 77 दिनों तक कोई भी सहायता नहीं पहुँच सकी, जब तक कि 18 मई को सीमित आपूर्ति शुरू नहीं हुई। मई के बाद से केवल 6,000 टन गेहूं का आटा ही गाज़ा पहुँच पाया है — जो ज़रूरत से बहुत कम है। अमेरिका और इज़राइल समर्थित गाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) पर यह आरोप लगे हैं कि उसने भूखे फिलिस्तीनियों को राहत केंद्रों पर बुलाकर वहाँ इज़राइली गोलीबारी करवाकर दर्जनों लोगों को मरवाया। UNRWA ने इस राहत मॉडल को “मौत का जाल” कहा है, जहाँ सामूहिक हत्याएं हो रही हैं।
जमीनी सच्चाई
गाज़ा की गलियाँ खुद पूरी कहानी बयान करती हैं। विस्थापित लोग मलबे के ढेर के बीच टेंटों में रह रहे हैं, क्योंकि गाज़ा का 82% हिस्सा या तो इज़राइली सैन्य नियंत्रण में है या वहाँ से लोगों को जबरन हटाया जा रहा है। मार्च से अब तक 6.4 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं — कुछ तो 10 बार तक। 2 जून को, खान यूनिस में एक UNRWA स्कूल शरणस्थल पर हुए इज़राइली हवाई हमले में 30 विस्थापित लोग मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
स्वास्थ्य सेवाएं ढह चुकी हैं। गाज़ा की 564 स्वास्थ्य इकाइयों में से केवल 38% ही काम कर रही हैं और 47% ज़रूरी दवाएं अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं। सिर्फ़ मई के आखिरी हफ्ते में ही पाँच साल से कम उम्र के 2,700 से अधिक बच्चों में गंभीर कुपोषण पाया गया। मछुआरे अपने परिवारों का पेट पालने के लिए जान की बाज़ी लगाकर समुद्र में जाते हैं — जहाँ इज़राइली गोलीबारी में कई मारे जा चुके हैं।

तबाही की विरासत
गाज़ा की कृषि तबाही — उसके संतरे के बाग़, जल स्रोत और खेतों का नाश — 1967 के बाद इज़राइल की नीतियों का जानबूझकर किया गया विस्तार है। 80% कृषि भूमि और 77.8% कृषि ढांचे का नुकसान गाज़ा के अस्तित्व और उसकी पहचान को खतरे में डाल रहा है। अब तक 1.75 लाख संरचनाएं क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और 5.3 करोड़ टन मलबा जमा हो चुका है — पुनर्निर्माण में 22 साल लग सकते हैं। यह वास्तव में धरती पर नर्क है — एक भूख से मचाई गई त्रासदी, जो दशकों की योजनाबद्ध तबाही और आज की हिंसा से बनी है।
यह आलेख मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था तथा इसका हिन्दी अनुवाद अंशिका भारद्वाज ने किया है।