2021 में, केंद्र सरकार ने भारत में सैनिक स्कूल चलाने के लिए निजी भागीदारी के लिए दरवाजे खोल दिए। उस वर्ष अपने वार्षिक बजट में, सरकार ने पूरे भारत में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की योजना की घोषणा की थी ।
एसएसएस निर्दिष्ट मापदंड – भूमि, भौतिक और आईटी बुनियादी ढांचे, वित्तीय संसाधन, कर्मचारी इत्यादि – वाले किसी भी स्कूल को संभावित रूप से नए सैनिक स्कूलों में से एक के रूप में अनुमोदित किया जा सकता है। अनुमोदन नीति दस्तावेज़ के अनुसार, बुनियादी ढाँचा ही एकमात्र निर्दिष्ट मानदंड था जो किसी स्कूल को अनुमोदन के योग्य बनाता है। इस सीमा ने संघ परिवार से जुड़े स्कूलों और उसके जैसी विचारधारा वाले संगठनों को आवेदन करने में सक्षम बनाया है।
केंद्र सरकार की प्रेस विज्ञप्तियों और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाबों से एकत्रित जानकारी एक चिंताजनक प्रवृत्ति दिखाती है। हमारी जाँच के परिणामस्वरुप पता चलता है कि अब तक हुए चालीस सैनिक स्कूल समझौतों में से कम से कम 62% राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों, भारतीय जनता पार्टी के राजनेताओं, उसके राजनीतिक सहयोगियों और मित्रों , हिंदुत्व संगठनों और अन्य हिंदू धार्मिक संगठनों से जुड़े स्कूलों को आवंटित किए गए हैं ।
सरकार को उम्मीद है कि नए पीपीपी मॉडल से सशस्त्र बलों के लिए भर्ती पूल को बढ़ावा मिलेगा । राजनीतिक दलों और दक्षिणपंथी संस्थानों को सैन्य पारिस्थिति के तंत्र में लाने वाली पहल ने चिंताएं बढ़ा दी हैं।
सैनिक स्कूल शिक्षा प्रणाली के इतिहास में, यह पहली बार है कि सरकार ने निजी क्षेत्र को एसएसएस से संबद्ध होने, आंशिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने और अपनी शाखाएँ चलाने की अनुमति दी है । 12 अक्टूबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट की एक बैठक का नेतृत्व किया जिसने स्कूलों को “एक विशेष कार्यक्षेत्र के रूप में चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जो रक्षा मंत्रालय के मौजूदा सैनिक स्कूलों से अलग होगा।”
नीति दस्तावेज़ के अनुसार , सरकार एसएसएस के माध्यम से कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की 50% संख्या के लिए योग्यता और साधन के आधार पर 50% (प्रति वर्ष 40000/- रुपये की ऊपरी सीमा तक ) की वार्षिक शुल्क सहायता प्रदान करती है। जिसका अर्थ है, जिस स्कूल में 12वीं कक्षा तक कक्षाएं हैं, उसके लिए एसएसएस अधिकतम 1.2 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की सहायता प्रदान करने की पेशकश करता है। स्कूलों को दिए जाने वाले अन्य प्रोत्साहनों में “12वीं कक्षा में छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर सालाना प्रशिक्षण अनुदान के रूप में 10 लाख रुपये की राशि दी जाती है।”
सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन के बावजूद, ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ‘ ने पाया कि उच्च माध्यमिक के लिए वार्षिक शुल्क 13,800 रुपये प्रति वर्ष से लेकर 2,47,900 रुपये तक है , जो नए सैनिक स्कूलों की फीस संरचनाओं में एक महत्वपूर्ण असमानता का संकेत देता है।
नए सैनिक स्कूल कौन चलाएगा?
एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल, जो नामित नहीं होना चाहते, ने कहा, “सिद्धांत रूप में, पीपीपी मॉडल एक अच्छा विचार है। लेकिन मेरी आशंका उस तरह के संगठनों को लेकर है जो ये अनुबंध जीतेंगे। यदि अधिकांश स्वामित्व भाजपा से संबंधित व्यक्तियों/संगठनों के हाथों में है, तो यह पूर्वाग्रह , प्रदान की जाने वाली शिक्षा की प्रकृति को प्रभावित करेगा। अगर, नियमित सैनिक स्कूलों की तरह, इन छात्रों को भी एनडीए और सशस्त्र बलों के लिए अन्य प्रवेश परीक्षाओं के लिए आवेदन करना होगा, तो उन्होंने जिस तरह की शिक्षा प्राप्त की है, वह निश्चित रूप से सशस्त्र बलों के दृष्टिकोण को प्रभावित करेगी । ”
आरटीआई प्रतिक्रियाओं के अनुसार, कम से कम 40 स्कूलों ने 05 मई, 2022 और 27 दिसंबर, 2023 के बीच सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं। ‘ द रिपोर्टस कलेक्टिव ‘ की ध्यानपूर्वक की गई शोध से पता चलता है कि 40 स्कूलों में से 11 सीधे तौर पर भाजपा राजनेताओं के स्वामित्व में हैं या उनकी अध्यक्षता वाले ट्रस्टों द्वारा प्रबंधित, या भाजपा के मित्रों और राजनीतिक सहयोगियों से संबंधित हैं। आठ का प्रबंधन सीधे तौर पर आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त, छह स्कूलों का हिंदुत्व संगठनों या कट्टर -दक्षिणपंथी विद्रोहियों और अन्य हिंदू धार्मिक संगठनों से घनिष्ठ संबंध है। कोई भी स्वीकृत स्कूल ईसाई या मुस्लिम संगठनों या भारत के किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा नहीं चलाया जाता है।
पार्टी के सदस्यों और मित्रों के लिए स्वीकृत सैनिक स्कूल
गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, बड़ी संख्या में इन नए सैनिक स्कूलों में भाजपा नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी देखी जाती है ।अरुणाचल के सीमावर्ती शहर तवांग में तवांग पब्लिक स्कूल राज्य में स्वीकृत एकमात्र सैनिक स्कूल है। स्कूल का स्वामित्व राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के पास है । स्कूल प्रबंध समिति के पूर्व सचिव हितेंद्र त्रिपाठी, जो स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में भी कार्य करते हैं, ने स्कूल समिति के अध्यक्ष के रूप में खांडू की भूमिका की पुष्टि की। खांडू के भाई सेरिंग ताशी, जो तवांग से भाजपा विधायक हैं, स्कूल के प्रबंध निदेशक हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ने भाजपा से उनके संबंधों के कारण उनके स्कूल का पक्ष लिया है, त्रिपाठी ने कहा, “मुझे उस दावे में कोई सच्चाई नहीं दिखती क्योंकि संबंधित अधिकारियों द्वारा तीन गहन निरिक्षण किए गए थे ।” हालाँकि, ताशी और खांडू ने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया है।
गुजरात के मेहसाणा में, श्री मोतीभाई आर. चौधरी सागर सैनिक स्कूल दूधसागर डेयरी से संबद्ध है, जिसके अध्यक्ष मेहसाणा के पूर्व भाजपा महासचिव अशोककुमार भावसंग भाई चौधरी हैं। पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह ने वर्चुअली स्कूल का शिलान्यास किया था । गुजरात के बनासकांठा में बनास सैनिक स्कूल, बनास डेयरी के तहत गल्बाभाई नानजीभाई पटेल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है। इस संगठन का नेतृत्व थराद से भाजपा विधायक और गुजरात विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष शंकर चौधरी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के इटावा में शकुंतलम इंटरनेशनल स्कूल मुन्ना स्मृति संस्थान द्वारा चलाया जाता है, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है, जिसकी अध्यक्ष भाजपा विधायक सरिता भदौरिया हैं। उनके बेटे आशीष भदौरिया, जो स्कूल का कामकाज देखते हैं, ने कहा, “हमारे पास सैनिक स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं है। हम इसे आगामी सत्र से शुरू करेंगे।” उन्होंने दावा किया, ”चयन प्रक्रिया बहुत व्यापक थी । ” जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी से सम्बंधित होने के कारण उनके आवेदन को मंजूरी दी गई है? तो उन्होंने कहा, ‘आपको यह सरकार से पूछना चाहिए।’
जांच में पाया गया कि इस नए पीपीपी मॉडल से लाभान्वित होने वाले लोगों में कई भाजपा राजनेता भी शामिल हैं। इस लंबी सूची में अलग-अलग राज्यों के बीजेपी नेता हैं ।
हरियाणा में, रोहतक का श्री बाबा मस्तनाथ आवासीय पब्लिक स्कूल अब एक सैनिक स्कूल है। पूर्व भाजपा सांसद महंत चांदनाथ ने इसकी स्थापना की थी और वर्तमान में इसका संचालन उनके उत्तराधिकारी महंत बालकनाथ योगी द्वारा किया जाता है, जो राजस्थान के तिजारा से मौजूदा भाजपा विधायक हैं।
महाराष्ट्र के नव स्वीकृत स्कूलों में अहमदनगर का पद्मश्री डॉ. विट्ठलराव विखे पाटिल स्कूल शामिल है । इस संस्था के अध्यक्ष पूर्व कांग्रेस विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल हैं, जो 2019 में भाजपा में शामिल हुए थे। राजस्थान में सीकर जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष, हरिराम रणवा उस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं जो भारतीय पब्लिक स्कूल का प्रबंधन करता है। सांगली में एस के इंटरनेशनल स्कूल, जिसे सैनिक स्कूल से जोड़ा गया है, की स्थापना भाजपा के सहयोगी सदाभाऊ खोत ने की थी, जो 2014 की देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे। मध्य प्रदेश के कटनी में जिस सिना इंटरनेशनल स्कूल को मंजूरी मिली है, उसकी अध्यक्ष मध्य प्रदेश में बीजेपी विधायक संजय पाठक की पत्नी निधि पाठक हैं।
उपर्युक्त स्कूलों में से कुछ को सैनिक स्कूल बनने की मंजूरी मिल गई है। सैनिक स्कूल, देश के कई अन्य सरकारी स्कूलों की तरह, मुख्य रूप से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पाठ्यक्रम का पालन करते हैं । इन स्कूलों में कुछ अतिरिक्त विषय, जैसे नैतिक मूल्य, देशभक्ति, सांप्रदायिक सद्भाव और व्यक्तित्व विकास भी पढ़ाए जाते हैं ।
भाजपा के करीबी अडानी ग्रुप के तहत एक फाउंडेशन द्वारा संचालित स्कूल को भी सैनिक स्कूल से जोड़ा गया है ।
आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के अडानी वर्ल्ड स्कूल को भी सैनिक स्कूल के साथ जोड़ दिया गया है । स्कूल कृष्णापट्टनम बंदरगाह के पास स्थित है, जो पूर्वी तट पर अडानी समूह द्वारा संचालित एक गहरे पानी का बंदरगाह है। स्कूल के मालिक अडानी कम्युनिटी एम्पावरमेंट फाउंडेशन है । फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रीति अडानी ने हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया है।
सैनिक स्कूलों का भगवाकरण
निजी सैनिक स्कूलों को चलाने का अधिकार आरएसएस संस्थानों और उससे जुड़े कई हिंदू दक्षिणपंथी समूहों को भी दिया गया । विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान आरएसएस की शैक्षिक शाखा है। भारत भर में पहले से मौजूद विद्या भारती स्कूलों में से सात को सैनिक स्कलों से जोड़ दिया गया है । उनमें से तीन बिहार में स्थित हैं, और एक-एक मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल और दादरा और नगर हवेली में स्थित हैं। भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास, आरएसएस की सामाजिक सेवा शाखा, राष्ट्रीय सेवा भारती भी स्कूलों को चलाने वाले समूह का हिस्सा है। होसंगाबाद में उनके स्कूल, सरस्वती ग्रामोदय हायर सेकेंडरी स्कूल को मंजूरी मिली।
विद्या भारती पर अक्सर इतिहास को बदलने और मुस्लिम विरोधी पाठ्यक्रम चलाने का आरोप लगाया जाता है । विद्या भारती अपने मिशन को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है। आरएसएस ने अपने अधीन स्कूलों की बढ़ती संख्या को संचालित करने के लिए 1978 में विद्या भारती की स्थापना की। इसके अंतर्गत 12,065 औपचारिक स्कूल हैं, जिनमें 3,158,658 छात्र हैं, जो संभवतः इसे भारत में निजी स्कूलों के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक बनाता है। जैसा कि उनकी वेबसाइट पर उल्लेख किया गया है, वे “एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना चाहते हैं जो हिंदुत्व के लिए प्रतिबद्ध हो और देशभक्ति के उत्साह से ओत-प्रोत हो।”
नए नीतिगत बदलावों ने सैनिक स्कूलों को चलाने वाले वैचारिक रूप से विकृत निजी भागीदारों को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं । पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन ने कहा, ” सशस्त्र बलों के लिए यह अच्छा नहीं है । ” उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि ऐसे संगठनों को अनुबंध देने से सशस्त्र बलों के चरित्र और लोकाचार पर असर पड़ेगा। मेनन वर्तमान में तक्षशिला संस्थान में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं।
एक लेख में , मेनन ने “शिक्षा के एकतरफा वैचारिक झुकाव वाले संस्करण को बढ़ावा देने के लिए संघ और निजी पार्टियों के बीच विकसित होने वाले सांठगांठ के संभावित खतरे पर प्रकाश डाला, जो संविधान में निहित मूल्यों से बहुत दूर है।”
‘आरएसएस, स्कूल टेक्स्ट एंड द मर्डर ऑफ महात्मा गांधी: द हिंदू कम्युनल प्रोजेक्ट ‘ पुस्तक के सह-लेखक आदित्य मुखर्जी को यह चौंकाने वाला लगा कि ऐसे स्कूलों को रक्षा मंत्रालय से प्रायोजन और आधिकारिक समर्थन प्राप्त हुआ। “लोकतंत्र में, विद्या भारती जैसे स्कूलों का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए क्योंकि वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय संस्थानों, विशेषकर रक्षा संस्थानों से संबद्ध करके, सरकार देश के लिए जो खतरा पैदा कर रही है उसे बयां नहीं किया जा सकता । मुखर्जी ने ‘ द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ‘ को बताया, ”यह निश्चित रूप से रक्षा बलों को बहुसंख्यकवादी, सांप्रदायिक दृष्टिकोण से संक्रमित करेगा ।”
‘ द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ‘ के साथ एक साक्षात्कार में , विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के महासचिव अवनीश भटनागर ने कहा, “हम इन आवेदनों को केंद्रीय रूप से प्रबंधित नहीं करते हैं। प्रत्येक स्कूल व्यक्तिगत स्तर पर आवेदन करता है। स्कूल समिति को पता होगा कि क्या उनका पक्ष लिया गया था। मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता।”
हालाँकि, विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव ने कहा , “अभी के लिए, हमने केवल कुछ स्कूलों के साथ प्रयास किया है। लेकिन, हम और अधिक विद्या भारती स्कूलों को आवेदन करने और एसएसएस से जोड़ने की योजना बना रहे हैं।
सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित भोंसाला मिलिट्री स्कूल, नागपुर को भी सैनिक स्कूल के रूप में चलाने की मंजूरी दी गई। स्कूल की स्थापना 1937 में हिंदू दक्षिणपंथी विचारक बीएस मुंजे ने की थी। 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट और 2008 के मालेगांव विस्फोटों की जांच के दौरान, महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने भोंसाला मिलिट्री स्कूल की जाँच – पड़ताल की थी , जहां विस्फोट के आरोपियों को कथित तौर पर प्रशिक्षित किया गया था।
बीएमएस की तरह ही, कई अन्य हिंदू धार्मिक ट्रस्टों, जिनमें से कुछ की स्थापना हिंदुत्व समर्थकों द्वारा की गई थी, को अपने मौजूदा ढांचे में सैनिक स्कूल चलाने की मंजूरी मिल गई है। इसमें हिंदुत्व नेता साध्वी ऋतंभरा के ऊपर बताए गए दोनों स्कूल शामिल हैं।
अपने भाषण के कारण दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का कारण बनने वाली ऋतंभरा और उनके भाषणों को इतिहासकार तनिका सरकार ने “मुस्लिम विरोधी हिंसा भड़काने का सबसे शक्तिशाली साधन” बताया । लिब्रहान आयोग जिसने अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच की थी ने आरोपी ऋतंभरा सहित 68 लोगों पर देश को “सांप्रदायिक कलह के कगार पर ले जाने” का आरोप लगाया है।
संघ परिवार में साध्वी ऋतंभरा का अहम स्थान है और वे कई भाजपा नेताओं की करीबी हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिसंबर 2023 में उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के लिए वृंदावन की यात्रा की थी । जनवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लड़कियों के लिए समविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल का उद्घाटन किया । समारोह के दौरान, राजनाथ सिंह ने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए ऋतंभरा की सराहना की।समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजनाथ सिंह को उद्धृत करते हुए लिखा था, “दीदी मां [ऋतंभरा] ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने समाज को अपना परिवार माना है । ”
हरियाणा के कुरूक्षेत्र में श्रीमती केसरी देवी लोहिया जयराम पब्लिक स्कूल, हिंदू संन्यासियों के समाज, भारत साधु समाज (बीएसएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के स्वामित्व में है।गुजरात के जूनागढ़ में श्री. ब्रह्मानंद विद्या मंदिर जिसे सैनिक स्कूल की मान्यता प्राप्त हुई है, भगवतीनंदजी एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा संचालित है । इसके प्रबंध न्यासी – मुक्तानंद ‘बापू’ – 2019 से भारत साधु समाज के अध्यक्ष भी रहे हैं।
श्री सारदा विद्यालय, एर्नाकुलम, केरल एक हिंदू धार्मिक संगठन आदि शंकर ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, जो श्रृंगेरी शारदा पीठम की एक इकाई है । इसे एक सनातन हिंदू मठ माना जाता है जिसे 8 वीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक और विद्वान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था।
‘ द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ‘ ने रक्षा मंत्रालय और सैनिक स्कूल सोसायटी को विस्तृत प्रश्न भेजे। रिमाइंडर्स के बावजूद हमें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। परम शक्ति पीठ की संस्थापक, साध्वी ऋतंभरा और इसके महासचिव संजय गुप्ता के साथ बैठक की व्यवस्था करने का अनुरोध भी अनुत्तरित रहा।
यह लेख “केंद्र ने 62% नए सैनिक स्कूलों को संघ परिवार, भाजपा राजनेताओं और सहयोगियों को सौंप दिया ” आस्था सव्यसाची द्वारा लिखा गया है और पहले ‘ द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ‘ पर प्रकाशित हों चुका है|