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भविष्य में वैश्विक तापमान वृद्धि अब तक की सोच से अधिक गंभीर हो सकती है: नई स्टडी का निष्कर्ष

  • June 21, 2025
  • 1 min read
भविष्य में वैश्विक तापमान वृद्धि अब तक की सोच से अधिक गंभीर हो सकती है: नई स्टडी का निष्कर्ष

जब भारत, विशेषकर उत्तर भारत, भीषण गर्मी और लू की चपेट में है, जिससे लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है, उसी बीच एक नए वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि भविष्य में तापमान में वृद्धि अब तक की आशंका से कहीं अधिक गंभीर हो सकती है।

इस साल पृथ्वी ने अब तक का दूसरा सबसे गर्म मई अनुभव किया। इसके बाद जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक अध्ययन ने स्पष्ट किया है कि वे जलवायु मॉडल जो ग्रीनहाउस गैसों (GHG) में वृद्धि से कम तापमान वृद्धि दिखाते हैं, वे उपग्रह मापों से मेल नहीं खाते। ओस्लो स्थित सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट रिसर्च (CICERO) द्वारा किए गए इस नए अध्ययन के अनुसार, “यदि समाज ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो भविष्य में तापमान में वृद्धि अब तक की सोच से अधिक गंभीर होगी।”

CICERO ने NASA लैंगली रिसर्च सेंटर और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के प्रीस्टली सेंटर फॉर क्लाइमेट फ्यूचर्स के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर यह दिखाया है कि ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि से कम तापमान वृद्धि दर्शाने वाले मॉडल उपग्रह मापों से मेल नहीं खाते। इसका मतलब यह है कि जो मॉडल ग्रीनहाउस गैसों के प्रति अधिक तीव्र तापीय प्रतिक्रिया दिखाते हैं, वे ज्यादा वास्तविक हैं। अध्ययन के लेखकों ने बताया कि अगर दुनिया मौजूदा तरीके से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रखती है, तो इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग पहले से अनुमानित स्तर से भी ज्यादा हो सकती है।

“इसलिए, वैश्विक तापमान को 2 डिग्री से नीचे रखने का कोई भी अवसर पाने के लिए हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में और अधिक कटौती करनी होगी,” CICERO के रिसर्च डायरेक्टर और अध्ययन के प्रमुख लेखक गुन्नार मायर ने कहा।

अध्ययन के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसों में खासकर CO₂ की बढ़ोतरी से पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। भले ही ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया को वैज्ञानिक अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन वे यह तय नहीं कर पाए हैं कि CO₂ और दूसरी गैसों के बढ़ने से तापमान में कितनी बढ़ोतरी होगी। इस पूरे असमंजस की सबसे बड़ी वजह यह है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती है, बादल कैसे प्रतिक्रिया देंगे, यह स्पष्ट नहीं है। बादल काफी जटिल होते हैं और ये गर्मी के प्रति कई तरीकों से प्रतिक्रिया कर सकते हैं। ये प्रतिक्रिया ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ा सकती है, लेकिन कितना इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

सामान्य स्थिति में, पृथ्वी जितनी ऊर्जा सूरज से लेती है, उतनी ही वापस अंतरिक्ष में छोड़ देती है। लेकिन अब ग्रीनहाउस गैसें बढ़ रही हैं, जिससे यह संतुलन बिगड़ रहा है। 2001 से अब तक के सैटेलाइट डेटा बताते हैं कि पृथ्वी अब ज्यादा सूरज की गर्मी सोख रही है और ज्यादा ऊष्मा छोड़ रही है।

जलवायु मॉडल यह समझने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं कि वायुमंडल, जिसमें बादल भी शामिल हैं, ग्रीनहाउस गैसों से होने वाली गर्मी पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। अध्ययन में बताया गया है कि नए जलवायु मॉडल अब भी यह दिखाते हैं कि जब ग्रीनहाउस गैसों में एक समान बढ़ोतरी होती है, तो तापमान कितना बढ़ेगा इसमें काफी अंतर हो सकता है।

सबसे आम तरीका यह समझने का है कि अगर वातावरण में CO₂ की मात्रा दोगुनी हो जाए, तो तापमान में कितनी बढ़ोतरी होगी — इसी के आधार पर ग्लोबल वार्मिंग का अनुमान लगाया जाता है। ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी से धरती कितनी गर्म होगी, इसका अंदाजा लगाने का सबसे आम तरीका यह है कि जब हवा में CO₂ की मात्रा दोगुनी हो जाए, तो तापमान कितना बढ़ता है, इसका अनुमान लगाया जाए। विशेष रूप से बादलों में होने वाले परिवर्तन इस अनिश्चितता में बड़ी भूमिका निभाते हैं कि जलवायु प्रणाली ग्रीनहाउस गैसों के प्रति कितनी संवेदनशील है।

संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा जलवायु रिपोर्ट (IPCC, 2021) के अनुसार जलवायु संवेदनशीलता औसतन 3°C मानी जाती है। यह आमतौर पर 2 से 5°C और ज़्यादातर मामलों में 2.5 से 4°C के बीच हो सकती है। ये अनुमान वैज्ञानिक समझ, अतीत की जलवायु परिस्थितियों (जैसे हिम युग और गर्म अवधियों) के अध्ययन और 1850 से अब तक के रिकॉर्ड पर आधारित हैं।

CERES उपग्रह यह मापता है कि पृथ्वी कितनी सूरज की ऊर्जा सोखती है और उसके मुकाबले कितनी गर्मी (लंबी तरंग वाली ऊर्जा) अंतरिक्ष में वापस भेजती है। डेटा से पता चलता है कि पृथ्वी अब पहले से ज्यादा सूरज की ऊर्जा सोख रही है — इसका एक कारण बर्फ और बर्फीली सतह का घट जाना है, और दूसरा कारण बादलों में बदलाव है। साथ ही, सतह का तापमान बढ़ने की वजह से पृथ्वी ज्यादा गर्मी भी छोड़ रही है।

उपग्रह से मिले आंकड़ों की तुलना 37 जलवायु मॉडलों के नतीजों से की गई। अध्ययन में पाया गया कि जलवायु मॉडल की संवेदनशीलता और पृथ्वी द्वारा ज्यादा सोखी गई सूरज की ऊर्जा और छोड़ी गई गर्मी के बीच सीधा संबंध है। जिन जलवायु मॉडलों की संवेदनशीलता कम है, वे सूरज की सोखी गई ऊर्जा और पृथ्वी से निकली गर्मी में बहुत छोटे बदलाव दिखाते हैं, और ये मॉडल सैटेलाइट डेटा के नतीजों को ठीक से नहीं दिखा पाते। इसका मतलब है कि IPCC द्वारा तय की गई सीमा के निचले स्तर पर जलवायु संवेदनशीलता होने की संभावना कम है, जबकि ज़्यादा संवेदनशीलता होने की संभावना ज़्यादा है। इसका मतलब है कि ग्रीनहाउस गैसों से कम गर्मी होने की संभावना अब कम मानी जा सकती है, और भविष्य में ज्यादा गर्मी होने के अनुमान अब ज्यादा सही लगते हैं।

जिन मॉडलों की जलवायु संवेदनशीलता 2.9°C से कम है, वे CERES उपग्रह द्वारा मापी गई सूरज की ऊर्जा की बढ़ोतरी से काफी कम बढ़ोतरी दिखाते हैं। मॉडल जिनकी जलवायु संवेदनशीलता 2.5°C से कम है, वे सैटेलाइट डेटा को दोहराने में असफल रहते हैं — भले ही यह मान लिया जाए कि ये मॉडल प्रदूषण कम होने का असर ठीक से नहीं दिखा रहे हों। यह दर्शाता है कि उपग्रह डेटा, विशेष रूप से CERES डेटा, कितना महत्वपूर्ण है।

मोहम्मद इमरान खान का यह लेख मूल रूप से न्यूज़क्लिक में प्रकाशित हुआ था और इसे यहां पढ़ा जा सकता है।


यह आलेख मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था तथा इसका हिन्दी अनुवाद अंशिका भारद्वाज ने किया है।

This article by Mohammed Imran Khan was originally published in NewsClick and can be read here.

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